रूस-यूक्रेन का जंग दूसरे साल में पहुंच गया है. युद्ध के बीच रूस ने अमेरिका और यूरोपीय देशों पर जोरदार हमला बोला है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने रायसीना डायलॉग में एक सवाल के जवाब में युद्ध का ठीकरा अमेरिका पर फोड़ दिया है.
लावरोव ने कहा कि दूसरे देशों में घुसपैठ करने को लेकर कोई अमेरिका से सवाल क्यों नहीं पूछता है? उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका और नाटो से कोई नहीं पूछता है कि वो अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में जो कर रहे हैं वो सही है?
इधर, रूसी रिपोर्ट में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दोमीर जेलेंस्की को लेकर एक पोल खोल रिपोर्ट जारी की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध से पहले जेलेंस्की अमेरिका और यूरोप के दांव को नहीं समझ पाए और लोकल मुद्दे को ग्लोबल बना दिया.
युद्ध के शुरुआत में कई अमेरिकी और यूरोपीय कंपनी रूस से कारोबार समेटने की घोषणा की थी, लेकिन पिछले एक साल में इस पर अमल नहीं हो पाया है. यूक्रेन को भले पश्चिम के कुछ देशों का समर्थन मिल रहा हो, लेकिन एशिया और मिडिल-ईस्ट के कई देशों ने समर्थन नहीं दिया है.
एक साल बाद कहां खड़ा है यूक्रेन?
युद्ध की वजह से यूक्रेन में अब तक 1.4 करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. इनमें बच्चे और बुजुर्गों की संख्या काफी ज्यादा है. जंग मे यूक्रेन को करीब 8 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है.
रूसी हमले की वजह से यूक्रेन में अब तक 30 हजार से ज्यादा आम लोगों की मौत की आधिकारिक पुष्टि हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन के 1 लाख सैनिक अब तक युद्ध में जान गंवा चुके हैं.
जंग के बीच दिसंबर 2022 में कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ने एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में कहा गया युद्ध में अब तक यूक्रेन का 138 अरब डॉलर (11 लाख करोड़ रुपए) का इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया है.
वहीं रूस के हमले की वजह से 1100 अस्पताल, 3000 से ज्यादा एजुकेशन इंस्टीट्यूट और 1,49,300 रिहायशी इमारतें या तो पूरी तरह तबाह हो चुकीं हैं. रूस ने हमला कर लुहांस्क और डोनेस्क जैसे जगहों को कब्जा कर लिया है.
रूस ने अब तक युद्ध में क्या खोया?
कीव इंडिपेंडेंट के मुताबिक 3 मार्च तक रूस के 1 लाख 51 हजार सैनिक मारे जा चुके हैं. यूक्रेन के सैन्य प्रमुख शनिवार को बताया कि रूस के 10 हजार सैनिकों ने सरेंडर करने की बात कही है.
यूक्रेन ने दावा किया है कि अब तक 3405 रूसी टैंक को मार गिराया गया है, जबकि 301 प्लेन और 289 हेलिकॉप्टर भी शूट किए गए हैं. यूक्रेन ने 2402 आर्टिलरी सिस्टम और 2061 यूएवी को भी खत्म करने की बात कही है.
युद्ध का असर सबसे अधिक रूसी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. जंग से लेकर अब तक मास्को एक्सचेंज का मुख्य सूचकांक एक तिहाई से अधिक गिर गया है. हाल ही में यूरोपीय संघ ने 10वीं बार रूस पर प्रतिबंध लगाया है.
युद्ध क्यों शुरू हुआ था?
यूक्रेन और रूस के बीच विवादित क्षेत्रों को लेकर पिछले 2 साल से तनाव चल रहा था. रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया इलाके पर भी कब्जा कर लिया था. यूक्रेन ने दावा किया था कि रूसी उसके 14 हजार नागरिकों की हत्या कर दी है.
दोनों देश के बीच तनाव बढ़ ही रहा था कि इसी बीच यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की बात सामने आई. रूस इससे बौखला गया. रूस ने यूक्रेन को चेतावनी दी कि वे नाटो में शामिल न हो और मामले आपसी बातचीत से सुलझाए.
यूक्रेन ने भी स्वतंत्रता की बात कह कर रूस की चेतावनी को खारिज कर दिया. इसके बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सैन्य ऑपरेशन का आदेश दे दिया. 24 फरवरी 2022 को रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर हमला शुरू कर दिया.
अमेरिका और यूरोप की चाल क्यों?
अब तक इस युद्ध में अमेरिका और यूरोपीय देशों का कोई नुकसान नहीं हुआ है, जबकि यूक्रेन बर्बादी की कगार पर पहुंच चुका है. इस तरह के युद्ध को शीत युद्ध कहते हैं. यूक्रेन से पहले श्रीलंका और अफगानिस्तान इसकी चपेट में आ चुका है.
युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर जॉन जे. मियरशाइमर ने द इकोनॉमिस्ट में एक ओपिनियन लिखा था. उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के लिए पश्चिमी देश और अमेरिका जिम्मेदार है.
हाल ही में मलेशिया ने भी यूक्रेन संकट के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहरा दिया है. चीन और रूस पहले से जो बाइडेन पर उकसावे का आरोप लगाते रहे हैं.
इस चाल को नहीं समझ पाए जेलेंस्की?
1. बात दुनिया की, लेकिन सपोर्ट कुछ देश का ही- कीव से लौटने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि रूस ने यूक्रेन पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर हमला किया.
यूक्रेन में लोकतंत्र बचाने के लिए पूरी दुनिया को आगे आना होगा. किसी देश की अखंडता को ऐसे ही नहीं खत्म किया जा सकता है. बाइडेन ने कहा कि मैं दावे से कहता हूं कि पुतिन के लिए कीव दूर है.
अमेरिकी राष्ट्रपति अपने इस भाषण में दुनिया से समर्थन मांग रहे थे, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी बाइडेन को सफलता नहीं मिली है. एशिया के किसी भी देश ने यूक्रेन को सपोर्ट नहीं किया है. मिडिल ईस्ट के देशों ने भी इससे दूरी बना ली है.
अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन समेत नाटो के कुछ देश ही यूक्रेन की संप्रभुता की बात करते दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, इन देशों ने जेलेंस्की के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि यूक्रेन को नाटो में शामिल कर लिया जाए.
अमेरिका ने कूटनीतिक पहल करने के बजाय अन्य देशों से यूक्रेन को सिर्फ समर्थन देने की कोरी अपील कर दी. बाइडेन की यह अपील न तो भारत और न ही इजरायल जैसे देशों पर असर किया.
2. कंपनियों ने बाजार समेटने का ऐलान किया पर कारोबार जारी- न्यूयॉर्क टाइम्स ने रूस में स्थित अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों को लेकर एक पड़ताल की है. इनमें उन कंपनियों को शामिल किया गया है, जिसने युद्ध शुरू होने के बाद मॉस्को से कारोबार समेटने की बात कही थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मैकडॉनल्ड्स और रेनॉल्ट जैसी कंपनियों ने तो अपना कारोबार समेट लिया, लेकिन अभी भी सैकड़ों ऐसी कंपनियां हैं, जो कारोबार कर ही रही है. ये सभी कंपनियां रूस को मुनाफा भी दे रही है.
फ्रांस की ऑचन कंपनी फूड सेक्टर में काम करती है और रूस में इसके 230 सुपरमार्केट हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये कंपनी रूसी सैनिकों को भी खाने का सामान पहुंचा रही है. कंपनी ने बातचीत में कहा कि अभी इसे बंद करने का कोई इरादा नहीं है.
हाल ही में रूसी राष्ट्रपति वोल्दोमीर जेलेंस्की ने ऑचन की कार्यशैली पर सवाल उठाया था. कंपनी ने एक बयान में कहा है कि आम नागरिकों को जरूरी सामानों की आपूर्ति की जा रही है.
येल यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च संस्था ने डेटा इकट्ठा कर बताया कि युद्ध से पहले रूस में अमेरिका और पश्चिमी देशों की 1600 कंपनियां काम कर रही थी. युद्ध शुरू होने के बाद 1200 कंपनियों ने वहां से कारोबार समेट लिया, लेकिन 400 कंपनियां अभी भी काम कर रही है.
3. यूएन में वीटो पावर भी बेदम- रूस के खिलाफ यूक्रेन कई बार संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव ला चुका है, लेकिन प्रस्ताव पारित होने के बाद भी रूस पर कोई एक्शन नहीं हो रहा है.
रूस पर अब तक सिर्फ आर्थिक प्रतिबंध ही लगा है, लेकिन इसका कोई ज्यादा नुकसान रूस को नहीं हुआ है. रूस का विकास दर में सिर्फ 3-4 फीसदी की कमी का ही अनुमान लगाया गया है. पहले यह अनुमान 7-8 फीसदी तक था.
यूक्रेन के समर्थन में यूएन में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन है, जिसके पास वीटो पावर है. इसके बावजूद रूस पर कोई एक्शन नहीं हो पा रहा है.
हाल ही में अमेरिका में रूस को सुरक्षा परिषद से बाहर करने की मांग उठी है. बाइडेन सरकार इसे भी अब तक अमल में नहीं लाई है.
रूस के साथ बेलारूस, सीरिया और कोरिया जैसे छोटे-छोटे देश हैं. अमेरिका ने हाल ही में दावा किया है कि चीन भी रूस को समर्थन करने की तैयारी कर रही है.
वहीं यूक्रेन के साथ अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे शक्तिशाली देश हैं. यूएन में यूक्रेन के पक्ष में 141 देशों ने वोटिंग किया था.
भारत समेत 32 देश इस मामले में किसी का भी पक्ष नहीं लिया है.