Salman Rushdie Attacked: इस्लामिक देशों में कानून सख्त लेकिन कुरआन में ईशनिंदा के लिए दंड का आदेश नहीं
Blasphemy Law: सलमान रुश्दी पर हमला हुआ और एक बार फिर ईशनिंदा कानून पर चर्चा शुरू हो गई है. ऐसे में आज इस स्टोरी में हम आपको बताते हैं आखिर इस्लाम ईशनिंदा को लेकर क्या कहता है.
Salman Rushdie Stabbed: सलमान रुश्दी खबरों में हैं. इस बार अपनी 'विवादित लेखनी' की वजह से नहीं बल्कि उनपर हुए जानलेवा हमले की वजह से वो चर्चा में हैं. रुश्दी पर बीती शुक्रवार रात 8.30 बजे उस वक्त हमला हुआ जब वो न्यू यॉर्क के ग्रामीण इलाके में स्थित चौटौक्वा इंस्टीट्यूशन में समरटाइम लेक्चर सीरीज में भाषण देने पहुंचे थे.
सलमान रुश्दी हमेशा से एक 'विवादित लेखक' के रूप में जाने जाते हैं. उनको कई बार जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी है. उनपर सबसे बड़ा आरोप उनकी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' को लेकर लगा है. यह किताब 1988 में आई थी और इस किताब का कई मुस्लिम बहुल देशों में भारी विरोध हुआ. इस किताब के लिए उनपर ईशनिंदा के आरोप लगे थे. ईरान तो इतना खफा था कि देश के शीर्ष नेता उनको सिर काटने की धमकी दे चुके थे. इतना ही नहीं उन्होंने ऐसा करने वालों को इनाम देने का भी वादा किया था.
अब सलमान पर हुए इस हमले के तार ईरान से जुड़े हैं या नहीं ये तो जांच का विषय है लेकिन जब-जब बात ईशनिंदा की आती है तो सवाल उठता है कि आखिर ईशनिंदा क्या है और मुस्लिम बहुल देशों में इसको लेकर क्या कानून हैं? यहां ये जानना भी महत्वपूर्ण है कि ईशनिंदा को लेकर कुरआन क्या कहता है. तो आइए जानते हैं...
क्या है ईशनिंदा
ईशनिंदा जिसे अंग्रेजी में BLASPHEMY कहते हैं, इसे आसान शब्दों में समझें तो किसी धर्म या मजहब की आस्था का मजाक बनाना है. इसका मतलब है कि जब कोई व्यक्ति किसी धर्म के प्रतीकों, चिह्नों, पवित्र वस्तुओं का अपमान करता है तो उसे ईशनिंदा माना जाता है.
ईशनिंदा करने वाले की हत्या की खबरें कई बार सुनाई देती है. शार्ली एब्डो ने फरवरी 2006 में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छापा था, जिसे इस्लाम में ईशनिंदा माना जाता है. इसके बाद पत्रिका के दफ़्तर पर दो हमलावरों ने हमला कर 12 लोगों को जान ले ली थी. ऐसी ही एक वीभत्स घटना तब सामने आई थी जब फ्रांस में एक शिक्षक की गला काटकर हत्या कर दी गई थी. शिक्षक ने अपने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाया था.
ऐसी घटनाओं के बाद यह महत्वरूर्ण हो जाता है कि हम ईशनिंदा को लेकर मुस्लिम देशों के कानून के बारे में जान लें. ईशनिंदा को लेकर सख्त कानून वाले देशों में पाकिस्तान, साऊदी अरब, ईरान और इटली तक शामिल हैं. अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान के बाद पाकिस्तान में दुनिया का दूसरा सबसे सख्त ईशनिंदा कानून है.
पाकिस्तान में सख्त कानून
जब बात ईशनिंदा की होती है तो सबसे पहले याद आता है वो किस्सा जो भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का है. पाकिस्तान के शेखपुरा में, ईशनिंदा के लिए मौत की सजा पाने वाली पहली महिला आसिया बीबी थी. जून 2009 में, आसिया ने साथी कृषि श्रमिकों को पानी पीने के लिए दिया. उन्होंने उससे पानी लेने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि वह एक ईसाई थी और उनका मानना था कि पानी उसके छूने मात्र से दूषित हो गया है. आसिया बीबी और वहां दूसरे श्रमिकों के बीच इस बात को लेकर बहस हुई. दोनों ही पक्षों ने अपने धर्म का बचाव किया. कथित तौर पर, इस दौरान आसिया ने पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया.
आसिया के इस कथित बयान के कुछ दिन बाद उनके घर के बाहर भीड़ जमा हो गई. बाद में उन पर ईशनिंदा का आरोप लगा. आसिया बीबी आठ साल जेल में रहीं. लेकिन फिर पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने उन्हें निर्दोष क़रार देते हुए बरी कर दिया. इस फैसले का विरोध पाकिस्तान में जगह-जगह हुआ.
दुर्भाग्य से, जब पाकिस्तान में धार्मिक हिंसा की बात आती है, तो आसिया बीबी का मामला केवल एक मामला नहीं. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर, सलमान तासीर की उनके ही एक पुलिस गार्ड ने ईशनिंदा कानूनों के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने की वजह से हत्या कर दी थी. उनके अलावा पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहे शाहाबाज़ भट्टी की इस्लामाबाद में घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई. भट्टी पाकिस्तान के ईशनिंदा कानूनों के मुखर आलोचक थे.
अब पाकिस्तान के प्रोफेसर जुनैद हफीज की कहानी किसे नहीं पता. दिसंबर 2019 में उनको ईशनिंदा के लिए मौत की सजा सुनाई गई. उनपर आरोप था कि उन्होंने फेसबुक पर पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया है.
पाकिस्तान में पिछले तीन दशकों में 1500 से अधिक लोग ईशनिंदा कानून के आरोप झेल रहे हैं. 1990 के बाद से, कम से कम 70 लोगों की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई है जिनपर इस्लाम का अपमान करने का आरोप लगा था. जिन लोगों को मारा गया उनमें प्रोफेसर जुनैद हफीज का वकील भी शामिल है.
सऊदी अरब
जिन मुस्लिम बहुल देशों में ईशनिंदा को लेकर सख्त कानून हैं उनमें सुन्नी बहुल देश सऊदी अरब भी है. यहां इस्लामी कानून शरिया लागू है. यहां ईशनिंदा के लिए मौत की सजा है. सऊदी अरब में 2014 में नया कानून बनाया गया. इस कानून के मुताबिक 'नास्तिकता का किसी भी रूप में प्रचार करना और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत जिन पर ये देश स्थापित है उनके बारे में सवाल उठाना दहशतगर्दी माना जाएगा.' ऐसे लोगों को मार दिया जाता है.
ईरान
पाकिस्तान और साऊदी की तरह ही ईरान में भी ईशनिंदा को लेकर सख्त कानून है. 2012 में ईरान में नए सिरे से दंड संहिता लागू की गई. इसमें ईशनिंदा के लिए एक नई धारा जोड़ी गई थी. नई धारा के मुताबिक धर्म को न मानने वाले और धर्म का अपमान करने वाले लोगों के लिए मौत की सजा तय की गई है. नई संहिता की धारा 260 के तहत कोई भी व्यक्ति अगर पैगंबर-ए-इस्लाम या किसी और पैगंबर की निंदा करता है तो उसे मौत की सजा दी जाएगी.
इतनी ही नहीं इसी धारा के तहत शिया फिरके के 12 इमामों और पैगंबर इस्लाम की बेटी की निंदा करने की सजा भी मौत है.
32 बहुसंख्यक मुस्लिम देशों में ईशनिंदा को लेकर सख्त कानून
ईशनिंदा को अपराध घोषित करने वाले 71 देशों में 32 बहुसंख्यक मुस्लिम देश हैं. इन देशों के कानूनों के मुताबिक सजा अलग-अलग है. ईशनिंदा के लिए ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ब्रुनेई, मॉरिटानिया और सऊदी अरब में मौत की सजा है. गैर-मुस्लिम देशों में सबसे कठोर ईशनिंदा कानून इटली में है, जहां अधिकतम सजा तीन साल की जेल है.
दुनिया के 49 मुस्लिम-बहुल देशों में से आधे में धर्मत्याग पर प्रतिबंध लगाने वाले अतिरिक्त कानून हैं, जिसका अर्थ है कि लोगों को इस्लाम छोड़ने के लिए दंडित किया जा सकता है.
कुरआन में ईशनिंदा पर सजा देने की बात कहीं नहीं
इस्लाम मानने वालों के पवित्र ग्रंथ कुरआन में बेअदबी को अपराध नहीं माना गया है. इसमें कई ऐसे आयत हैं जो शांति, अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करते हैं. कुरआन के अध्याय 2, आयत 256 में, कहा गया है, "धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं है."
वहीं, अध्याय 4, आयत 140 मुसलमानों से केवल ईशनिंदा वाली बातचीत नहीं करने का आग्रह करता है. इसमें कहा गया है- "जब आप खुदा को अस्वीकार करने की बात किसी से सुनें तो उनके साथ न बैठें."
कुरआन हमें बताता है कि पैगंबरों के समकालीन विरोधियों ने ठीक वही काम किया था, जिसे आज ईशनिंदा कहा जा रहा है. सदियों से पैगंबरों की आलोचना उनके समकालीन लोगों द्वारा की जाती रही है. पैगंबर के लिए समकालीन लोगों ने झूठा, मूर्ख और साजिश रचने वाला जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया लेकिन पैगंबर ने उन्हें सजा नहीं दी बल्कि प्रेम का संदेश दिया जो इस्लाम की बुनियाद में है.