Death of David Reimer : आपने ट्रेजेडी और अहंकार की कई कहानियां सुनी होगी, लेकिन मेरा दावा है जो कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं उसमें डेविड की जिदंगी की ट्रेजेडी और जॉन मनी का 'वैज्ञानिक अहंकार' जैसा आपने कभी पहले नहीं सुना होगा. भारत में सेम सेक्स मैरेज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये कहानी जानना और जरूरी हो जाता है. डेविड रीमर जो एक बूचड़खाने में मजदूर का काम करता था. ऐसा क्या हुआ कि 4 मई 2004 को उसने आत्महत्या कर ली और एक सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. जॉन मनी को उसकी मौत का जिम्मेदार ठहराया गया. आइए आज यही कहानी जानते हैं.


1965 में डेविड रीमर का जन्म हुआ. उसके साथ ही उसका जुड़वा भाई भी पैदा हुआ. जन्म के आठ महीने बाद जब उनकी मां ने देखा कि उन दोनों को पेशाब करने में परेशानी हो रही है तो डॉक्टर को दिखाया. एक डॉक्टर ने उन दोनों के फिमोसिस का निदान करने की बात कही. फाइमोसिस या फिमोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें लिंग की ऊपरी स्किन (Foreskin) बहुत ज्यादा टाइट हो जाती है और नीचे करने पर वह पीछे की तरफ नहीं हट पाती है. जिन पुरुषों का खतना नहीं होता है, उनमें इस बीमारी के होने की संभावना बहुत अधिक होती है. यह एक रूटीन ऑपरेशन था. हालांकि ये सफल नहीं हुआ और डेविड रीमर के लिंग में कई दिक्कतें आने लगी.


इस प्रक्रिया में रीमर के लिंग को काफी नुकसान पहुंचा और इसे पुनर्निर्माण के लिए एक और सर्जरी की जरूरत थी. उस वक्त सर्जरी की प्रक्रिया आज की तरह एडवांस नहीं थी. डेविड रीमर के माता पिता परेशान थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है और यहीं से शुरू होती है रीमर की जिंदगी की ट्रैजेडी...


रीमर की जिंदगी में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के एक सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. जॉन मनी की एंट्री होती है. वो रीमर के माता-पिता को अपने बेटे को पूरी तरह से लड़की के रूप में बड़ा करने के लिए राजी कर लेते हैं. दरअसल सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. जॉन मनी इस थ्योरी के प्रतिपादक थे कि बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से तटस्थ पैदा होते हैं और उनके जीवन के पहले साल में उन्हें किसी भी लिंग को सौंपा जा सकता है.




डॉ. जॉन मनी ने रीमर के पिता से आग्रह किया कि रीमर को अपने अंडकोष को हटाने और योनि का निर्माण करने के लिए जल्द से जल्द ऑपरेशन करने की अनुमति दी जाए. इसके पीछे डॉ. जॉन मनी ने अपने थ्योरी को दहराया जिसमें वो मानते थे कि एक बच्चा पैदा होने के दो साल बाद  'लिंग-पहचान द्वार' यानी जेंडर आइडेंटीटी गेट पास करता है और उस वक्त उसका जो जेंडर होता है वो पूरी उम्र रहता है. वह उसे मान लेता है. 


डॉ. जॉन मनी ने रीमर के पिता से आग्रह किया कि इससे पहले कि जेंडर आइडेंटीटी गेट टाइमलाइन खत्म हो जाए इस ऑपरेशन का होना बेहद जरूरी है. उन्होंने यह भी सुझाया कि, जब रीमर 11 या 12 साल का हो जाए, तो उसे महिला हार्मोन दिए जा सकते हैं. बार-बार जॉन मनी द्वारा कहने पर रीमर के माता-पिता ने अन्य डॉक्टरों की सलाह के विरुद्ध 22 महीने के रीमर के लिए क्लिनिकल कैस्ट्रेशन ( अंडकोष को हटाना) और, महिला जननांग के निर्माण की अनुमति देने पर सहमति जता दी. माता-पिता के इस फैसले के साथ ही डेविड रीमर की जिंदगी का कष्ट भी शुरू हो गया.


लड़कियों की तरह पाला पोसा गया


जॉन मनी के निर्देशों के अनुसार, रीमर के माता-पिता ने उसे यह कहकर बड़ा किया कि वह एक लड़की के रूप में पैदा हुआ था. अब उसका नाम बदलकर ब्रेंडा कर दिया गया, उसे लड़कियों वाले कपड़े पहनाए जाने लगे और खेलने के लिए गुड़िया आदि दी गई. रीमर के साथ इतना कुछ हुआ है इसके बारे में किसी  अन्य को परिवार के बाहर पता नहीं था. यहां तक ​​​​कि उसके जुड़वां भाई को भी यह विश्वास दिलाया गया था कि रीमर एक छोटी लड़की है और उसकी बहन है.




The True Story of John नामक किताब में इस बारे में लिखा कि डेविड रीमर से ब्रेंडा रीमर बनाए जाने के बाद उस बच्चे ने शुरू में एक लड़की के रूप में खुद को वर्गीकृत किये जाने का विरोध किया. पहली बार जब उसको लड़कियों की पोशाक पहनाई गई, तो उसने उसे फाड़ने की कोशिश की. उसे बैठकर पेशाब करना नहीं पसंद था. स्कूल में उसे भयानक समस्याओं का सामना करना पड़ा, जहां अन्य बच्चों ने तुरंत उसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान लिया जो सामान्य यौन श्रेणियों में फिट नहीं बैठता था. जब वह 10 साल की थी, तब उसने घोषणा की कि वह बड़ी होकर किसी पुरुष से नहीं, बल्कि एक महिला से शादी करना चाहती है.


कपड़े उतारकर एक-दूसरे के जननांगों का निरीक्षण करने को कहते थे


लेखक ने लिखा है कि, डेविड रीमर और उसके भाई ब्रायन रीमर को अक्सर 'काउंसलिंग' के लिए जॉन मनी से मिलना होता था. इस दौरान मनी जुड़वा बच्चों के यौन विकास के बारे में जांच करते थे. लगभग छह साल की उम्र से, मनी द्वारा उनसे उनकी यौन इच्छाओं और प्राथमिकताओं के बारे में पूछताछ की जाती थी. इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें अन्य बच्चों और वयस्कों की यौन संबंध बनाते हुए नग्न तस्वीरें दिखाई जाती थी. लेखक का दावा है कि जॉन दोनों बच्चों से अपने कपड़े उतारने और एक-दूसरे के जननांगों का निरीक्षण करने के लिए कहते थे.


1972 में, जब डेविड रीमर सात वर्ष का हुआ तो, मनी ने इस मामले पर अपना पहला निष्कर्ष प्रकाशित किया. इसे एक जबरदस्त सफलता के रूप में चित्रित किया गया. किताब का नाम था- 'मैन एंड वुमन, बॉय एंड गर्ल'...1973 में, न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू ने मैन एंड वुमन, बॉय एंड गर्ल को 'सामाजिक विज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण किताब के रूप में वर्णित किया.


हालांकि जहां दुनिया डॉ मनी के इस काम को कामयाबी के तौर पर देख रही थी तो वहीं डेविड रीमर एक लड़की की जिंदगी जीते हुए खुश नहीं था. जैसे-जैसे रीमर बड़ा हुआ और युवावस्था के करीब पहुंचने लगा उसका अपने लड़के वाले शरीर से अलगाव और अधिक असहनीय हो गया.


इसी बीच उसके माता-पिता और दूसरे बड़े लोग डॉ मनी के साथ मिलकर उसपर अंडाशय-रस (oestrogen) (स्‍त्री के शरीर में उत्‍पन्‍न होने वाला विशेष हार्मोन जिसके प्रभाव से वह कामुक रूप से आकर्षक तथा गर्भधारण के लिए तत्‍पर हो जाती है) लेने का दवाब बनाने लगे. वो क्लीनिक की छत पर गया और कहा कि अगर उसे डॉ मनी से फिर मिलवाया गया तो वो आत्महत्या कर लेगा. इसके बाद मनी और रीमर कभी नहीं मिले.


पिता ने बताया सच


डॉ मनी के जिंदगी से चले जाने के बाद रीमर थोड़ा आजाद हुआ. 14 साल की उम्र में उसने एक लड़की के रूप में रहना पूरी तरह से बंद कर दिया. मार्च 1980 में, रीमर के पिता ने उसे आइसक्रीम खिलाने के लिए ले गए, और उसे बताया कि वो एक लड़का है लड़की नहीं.




अपने 16वें जन्मदिन तक, रीमर ने अपना नाम ब्रेंडा से बदलकर फिर डेविड रख लिया था. वो पुरुष हार्मोन ले रहा था और अपने स्तनों को शल्य चिकित्सा द्वारा हटा चुका था. उसने निष्क्रिय पुरुष जननांग के निर्माण के लिए एक ऑपरेशन भी कराया. हालांकि अबतक उसकी मनोस्थिति काफी बिगड़ चुकी थी. अपने लिंग के बारे में सच्चाई जानने से भी रीमर की पीड़ा कम नहीं हुई. 21 साल की उम्र से पहले उसने दो बार खुद को मारने की कोशिश की.


शादी के बाद थोड़ी स्थिति सुधरी मगर...


रीमर की स्थिति थोड़ी बेहतर तब हुई जब 1990 में उसने शादी की. हालांकि कुछ समय बाद ही रीमर पर डॉ मनी के एक्सपेरिमेंट की कहानी पब्लिक हो गई. दरअसल मिल्टन डायमंड नामक एक अन्य सेक्सोलॉजिस्ट और डॉ मनी के प्रतिद्वंद्वी ने इस बात को सार्वजनिक कर दिया.


उसने अन्य लोगों के साथ मिलकर मनी के एक्पेरिमेंट पर विस्तार से नोट्स बनाए और रीमर, उसकी पत्नी और उसकी मां का साक्षात्कार कर 1997 में इसपर अपना लेख प्रकाशित किया.  मिल्टन डायमंड की जानकारी के बाद वैज्ञानिक समुदाय के भीतर काफी बवाल हुआ.


रीमर को यह स्वीकारोक्ति बहुत देर से मिली कि मनी की परिकल्पना गलत थी. वो हमेशा से लड़का ही था. रीमर का काफी नुकसान पहले ही हो चुका था. 2002 में जब उसकी पत्नी ने उससे तलाक मांगा तो वो और परेशान हो गया और साल 2004 में उसने आत्म हत्या कर जिंदगी खत्म कर ली. उस वक्त वो 38 साल का था.


डॉ मनी की थ्योरी क्या कहती है


डॉ मनी की थ्योरी में उन्होंने दावा किया कि एक बच्चा पैदा होने के वक्त जिस लिंग में पैदा होता है उस पहचान के बजाय उस लिंग पहचान को अपनाएगा जिसके साथ उसका पालन-पोषण हुआ है. डॉ मनी ने ये दावा किया कि डेविड रीमर के माता-पिता ने उसे एक लड़की के रूप में पाला और वो लड़की की तरह हो गया. यह उनके सिद्धांत का समर्थन करता है. मनी ने "जेंडर रोल" शब्द को परिभाषित और गढ़ा और बाद में इसे जेंडर आइडेंटिफिकेशन/रोल तक विस्तारित किया. 




उनके अधिकांश करियर में, उनके प्रशंसकों ने उन्हें शुद्धतावादी प्रतिक्रियावादियों से लड़ने वाले एक साहसी व्यक्ति के रूप में देखा. उन्होंने खुद को यौन मुक्ति के रक्षक के रूप में प्रचारित किया. समलैंगिकों और अन्य यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए और सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने के लिए वो काम करते रहे.


हालांकि जब रीमर मामले की सच्चाई उजागर हुई, तो सेक्सोलॉजिस्ट अचानक उन रूढ़िवादियों की तुलना में कहीं अधिक दमनकारी लगने लगे, जिनसे वह नफरत करते थे.