Saudi Arabia-Israel Relations: अरब मुल्कों और इजरायल के बीच दुश्मनी का लंबा इतिहास रहा है लेकिन धीरे-धीरे रिश्ते पटरी पर लौटने भी शुरू हुए हैं. संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सूडान, मोरक्को और बहरीन ने इजरायल के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत की है. लेकिन ऐसा लग रहा है, जैसे मिडिल ईस्ट के बड़े खिलाड़ी सऊदी अरब और इजरायल के रिश्ते अभी सामान्य नहीं होने वाले हैं. दोनों के बीच फलस्तीन को लेकर तनाव पैदा हो गया है.


दरअसल, सऊदी अरब ने शनिवार को जॉर्डन में देश के वर्तमान राजदूत नायेफ अल-सुदैरी को फलस्तीन का अनिवासी राजदूत बनाया. राजदूत को यरुशलम में काउंसल जनरल के तौर पर भी काम करना है. इजरायल के साथ रिश्तों को सामान्य करने को लेकर चल रही चर्चा के बीच इस नए पद का ऐलान किया गया. कहा गया कि यरुशलम में राजदूत के लिए राजनयिक बेस भी होगा. सऊदी अरब को मालूम था कि इजरायल की तरफ से इसका विरोध होगा और ऐसा ही हुआ है.


यरुशलम में स्थायी तौर पर नहीं रहेंगे राजदूत: इजरायल


अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल ने फलस्तीनी अथॉरिटी में सऊदी अरब के राजदूत के लिए यरुशलम के लिए राजनयिक बेस के विचार को खारिज किया है. इजरायली विदेश मंत्री एली कोहेन ने कहा है कि नए राजदूत नायेफ अल-सुदैरी फलस्तीन अथॉरिटी के साथ मुलाकात कर सकते हैं. मगर उन्हें यहां स्थायी तौर पर रहने नहीं दिया जाएगा. उन्होंने इस मुद्दे पर कहा, 'क्या यरुशलम में कोई अधिकारी बैठेगा? हम इसकी बिल्कुल भी इजाजत नहीं देंगे.'


जॉर्डन से हैंडल होते हैं फलस्तीन के मामले


दूसरी ओर, राजदूत नायेफ अल-सुदैरी ने हाल ही में फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के राजनयिक सलाहकार मजदी अल-खालिदी को अपने क्रेडेंशियल भी सौंप दिए हैं. जॉर्डन की राजधानी अम्मान में मौजूद सऊदी अरब के दूतावास से ही फलस्तीनी के मामले निपटाए जाते हैं. सऊदी अरब ने एक बार फिर ये दिखा दिया है कि वह फलस्तीन का समर्थक है. उसका मानना है कि फलस्तीन एक देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर आना चाहिए और यरुशलम को इसकी राजधानी बनाया जाए. 


क्या मिडिल ईस्ट में बिगड़ेंगे हालात? 


2020 में 'अब्राहम अकॉर्ड' के जरिए यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को जैसे चार अरब मुल्कों ने इजरायल के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत की. इसे मिडिल ईस्ट में शांति के तौर पर देखा गया. अब्राहम अकॉर्ड को उसके अंजाम तक पहुंचाने वाला अमेरिका अब इजरायल और सऊदी अरब की सुलह कराने में जुटा हुआ है. सऊदी अरब फलस्तीन का समर्थक है और यही बात इजरायल को खटकती है. इजरायल किसी भी कीमत पर फलस्तीन के तौर पर एक नया देश बनने नहीं देना चाहता है. 


फिलहाल ऐसे हालात नहीं बन रहे हैं, जिनकी वजह से सऊदी अरब और इजरायल फलस्तीन के मुद्दे पर बुरी तरह भिड़ जाएं. अरब के कुछ मुल्कों के साथ तो इजरायल ने रिश्ते बना ही लिए हैं. ऐसे में उम्मीद यही जताई जा रही है कि अगर हालात काबू से बाहर होंगे, तो भी बाकी के मुल्क इसे संभाल लेंगे. लेकिन इजरायल ने जिस तरह राजदूत को लेकर बयान दिया है, उससे सऊदी अरब नाराज हो सकता है. इसका सीधा असर दोनों के बीच रिश्तों को सामान्य करने के लिए चल रही बातचीत पर देखने को मिल सकता है. 


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