वाशिंगटन: कोरोना वायरस महामारी के बीच एक उम्मीद जगी थी कि हाईड्रॉक्सीक्लोक्वीन के जरिए कोरोना के मरीज का इलाज किया जा सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन के साथ और इसके बिना हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के इस्तेमाल से न तो उन्हें वेंटिलेटर पर भेजने का खतरा कम हुआ और न ही जान के खतरे में कमी आई है. 'मेड' नामक जर्नल में प्रकाशित यह एनालिसिस अमेरिका में कोरोना मरीजों पर हाईड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के प्रभाव से जुड़े नतीजों पर आधारित पहला एनालिसिस है.


जान के खतरे में नहीं आई कमी


रिसर्चर्स ने कहा, "अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस के मरीजों पर किए गए अध्ययन में सामने आया कि हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा, एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन के साथ और इसके बिना दिए जाने पर न तो वेंटिलेटर पर जाने और न ही जान के खतरे में कमी आई है."


807 कोरोना मरीजों का किया गया आकलन


इस रिसर्च में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक भी शामिल थे. वैज्ञानिकों के अनुसार देशभर के वेटरन्स अफेयर्स मेडिकल सेंटरों में भर्ती 807 कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों के डेटा का आकलन किया गया. उन्होंने कहा कि लगभग आधे मरीज जबतक अस्पताल में रहे तब तक उन्हें कभी भी हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा नहीं दी गई


86 फीसदी मरीजों का वेंटिलेटर पर रखना पड़ा


शोध में कहा गया है कि 198 मरीजों को हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई और 214 मरीजों को हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन दोनों दवाएं एक साथ दी गईं. शोध में ये भी कहा गया है कि इनमें से 86 प्रतिशत मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने से पहले हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई, लेकिन फिर भी उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा. इसके अलावा उनकी जान जाने का खतरा भी कम नहीं हुआ.


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