रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ ही बदलते घटनाक्रमों के बीच भारत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक 4 मई से शुरू हो रही है. दो दिन चलने वाली इस बैठक में भारत, चीन, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, तजाखिस्तान और उज्बेकिस्तान हिस्सा लेंगे.
एससीओ की बैठक इस बात से भी अहम हो गई है क्योंकि इसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और चीन के विदेश मंत्री भी हिस्सा लेने आ रहे हैं. इस बैठक पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की नजर है.
इससे पहले इस ग्रुप में शामिल देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक भी 28 अप्रैल को हुई है. जिसमें ऐसा कुछ हुआ जिसकी वजह से अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज तालिबान नाराज हो गया है.
भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के रक्षा मंक्षी शामिल हुए थे. इस दौरान रूस के रक्षा मंत्री जनरल सर्गेई शोइगू ने कहा कि अफगानिस्तान में आतंकी संगठन फिर से मजबूत हो रहे हैं. ये पड़ोसी देशों के लिए बड़ा खतरा हैं खासकर मध्य एशिया के लिए.
इसी बैठक में भारत की ओर से ग्रुप में शामिल सभी आठ देशों से आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ने की अपील भी की गई. लेकिन उधर रूस के रक्षा मंत्री की ओर से आए इस बयान पर तालिबान नाराज हो गया.
दरअसल रूस के रक्षा मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान में इस समय कई आतंकी संगठन फिर से सिर उठा रहे हैं जो कि पड़ोसी देशों के लिए खतरा हैं. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में अफगानिस्तान मुख्य एजेंडे में होना चाहिए. केवल आपसी सहयोग से ही इस चुनौती से निपटा जा सकता है जिससे अभी अफगानिस्तान अकेले जूझ रहा है.
रूस की ओर से आए इस बयान पर दो दिन बाद तालिबान की ओर से आई प्रतिक्रिया में इन बातों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. तालिबान की ओर से कहा गया कि अफगानिस्तान को पड़ोसी देशों के लिए खतरा कहने की बात एकदम गलत है.
तालिबान ने कहा कि रूस की सरकार को समझना चाहिए कि बीते दो सालों में अफगानिस्तान की ओर से इलाके या विश्व, किसी के लिए खतरा पैदा नहीं हुआ है. तालिबान की इस्लामिक सरकार यहां पर खुद ही आईएसआईएस के लड़ाकों को पूरी क्षमता के साथ हराने में कामयाब रही है.
दो साल पहले अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को हटाकर सत्ता में आई तालिबान ने दावा कि वो एक जिम्मेदार सरकार चला रहे हैं और वे अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने देंगे. तालिबान ने कहा कि दुख है कि हाल ही में कुछ घटनाएं हुई हैं जिनके पीछे दूसरे देश के लोग शामिल हैं. लेकिन सरकारी अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभा रही है.
दो साल पहले अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के जाने के बाद तालिबान जब सत्ता में आया था तो भारत ने इसका विरोध किया था. उस समय माना जा रहा था कि ये भारत के लिए बड़ा झटका हो सकता है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति की समझ रखने वाले लोगों को लग रहा था कि पाकिस्तान तालिबानी लड़ाकों का इस्तेमाल भारत की सीमा पर आतंक फैलाने के लिए कर सकता है.
लेकिन तालिबान ने सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान को ज्यादा तवज्जो नहीं दी उल्टे उसने पाकिस्तान को उसकी जमीन पर कब्जा करने के आरोप में धमका भी दिया. आज हालात ये हैं कि अफगानिस्तान के संबंध पाकिस्तान की तुलना में भारत के कहीं ज्यादा अच्छे हैं. हालांकि भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध पहले की तरह ही मजबूत हैं.
रूस का रुख भारत के लिए कठिन परीक्षा
एससीओ की बैठक में रूस ने जिस तरह का रुख अभी तक अपनाया है भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है साथ ही ये कठिन कूटनीतिक परीक्षा भी है. एक ओर उसने भारत की धरती से तालिबान को छेड़ा दिया तो दूसरी ओर चीन पर उसका रुख पूरी तरह से नरम और बचाव करने वाला है. रूस के रक्षा मंत्री जनरल शर्गेई शोइगु ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में अमेरिका को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साथ ही उन्होंने कहा कि क्वॉड (QUAD) और ऑकस (AUKUS) जैसे समूह सिर्फ चीन को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं.
बता दें कि क्वाड (QUAD) यानी 'चतुर्भुज सुरक्षा संवाद' नाम का एक समूह बनाया गया है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका के साथ भारत भी शामिल है. साल 2007 में इसका समूह को बनाने का विचार जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने रखा था. लेकिन उस समय चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया पीछे हट गया था. 10 साल बाद यानी साल 2017 में इसका गठन हो गया. इसका उद्देश्य मानवीय सहायता और आपदा राहत है. लेकिन ये भारत के लिए बहुत अहम है.
दरअसल चीन के लिए हिमालय में जमीन हड़पने से ज्यादा अहम समुद्री इलाके हैं. क्योंकि चीन का पूरा व्यापार इसी पर निर्भर है. चीन अगर सीमा पर किसी भी तरह की गड़बड़ी करता है तो भारत इन क्वाड के साथ मिलकर समुद्र में चीन की व्यापारिक गतिविधियां रोक सकता है.
इसी तरह अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर ऑकस (AUKUS) नाम का संगठन बनाया है. जिसका उद्देश्य त्रिपक्षीय सुरक्षा है. इस ग्रुप के गठन पर अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से चीन का बिना नाम लिए कहा गया कि तेजी से उभरते खतरों से निपटा जा सकेगा. इसके तहत तीनों देश ऑर्टिफिशयल इंटेलीजेंस, साइबर वार, क्वांटम कंप्यूटिंग एवं परमाणु पनडुब्बी निर्माण जैसे क्षेत्रों में खुफिया एवं उन्नत तकनीक साझा करेंगे.
भारत में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में रूस के रक्षा मंत्री ने इन ग्रुपों पर जमकर निशाना साधा और चीन का खुलकर समर्थन किया. शर्गेई शोइगु ने कहा अमेरिका और उसके सहयोगी देश एशिया-प्रशांत इलाके में बहुपक्षीय दुनिया के खिलाफ हैं. वो क्वाड और ऑकस के जरिए इस इलाके में नॉटो जैसा प्रयोग करना चाहते हैं.
रूस के रक्षा मंत्री ने कहा चीन को घेरने के लिए इस तरह के संगठन बनाए जा रहे हैं और इसके लिए खुले या मुक्त एशिया-प्रशांत की थ्योरी पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अमेरिका और उसके साथी देश एक ऐसी कूटनीति पर काम कर रहे हैं ताकि रूस और चीन के बीच भी युद्ध को भड़काया जा सके.
रूस ने कहा कि यूक्रेन के साथ युद्ध अमेरिका और पश्चिमी देशों के अपराधों का नतीजा है. यूक्रेन के जरिए ये देश रूस को हराना और डिगाना चाहते थे ताकि चीन को भी डराया जा सके. दरअसल ये देश पूरी दुनिया में एकाधिकार चाहते हैं.
रूस के रुख से भारत क्या समझे
रूस की ओर आया क्वाड को लेकर आया भारत के लिए परेशानी का सबब है. भारत ने हमेशा स्वतंत्र और अपने हित वाली विदेश नीति की बात करता आया है. यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने पश्चिमी देशों और अमेरिका के दबाव को दरकिनार कर दिया था. दूसरी ओर रूस को भी कई बार नसीहत दी है. लेकिन रूस ने जिस तरह से क्वाड पर निशाना साधा है वो भारत के लिए रूस के साथ संबंधों पर एक बार फिर से समीक्षा करने के लिए मजबूर कर दिया है. ये चुनौती ऐसे समय आई है जब चीन के साथ सीमा पर तनाव चरम पर है. लेकिन रूस अभी तक इस मुद्दे पर चीन को एक बार भी नहीं टोका है.
राजनाथ सिंह ने क्या कहा
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ के सदस्य देशों से आतंकवाद के सभी रूपों को खत्म करने की दिशा में सामूहिक रूप से काम करने के लिए अपील की. भारत के रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि किसी भी तरह का आतंकवादी कृत्य या किसी भी रूप में इसका समर्थन मानवता के खिलाफ एक बड़ा अपराध है. जहां यह खतरा है वहां शांति और समृद्धि नहीं रह सकती.
राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को निशाने पर लेते हुए कहा, यदि कोई राष्ट्र आतंकवादियों को आश्रय देता है, तो यह न केवल दूसरों के लिए बल्कि स्वयं उसके लिए भी खतरा पैदा करता है. यदि एससीओ को एक मजबूत और अधिक विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय संगठन बनाना चाहते हैं, तो हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने की होनी चाहिए.
राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत क्षेत्रीय सहयोग के एक मजबूत ढांचे की कल्पना करता है जो सभी सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है. सिंह ने सदस्य राज्यों के बीच अंतर को बढ़ाने के लिए एससीओ अध्यक्ष के रूप में भारत द्वारा शुरू की गई दो रक्षा-संबंधी गतिविधियों को भी छुआ. इससे पहले, राजनाथ सिंह ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में एससीओ को एक विकसित और मजबूत क्षेत्रीय संगठन के रूप में वर्णित किया. यह रेखांकित करते हुए कि भारत इसे सदस्य देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में देखता है.
शंघाई सहयोग संगठन कैसे बना
15 जून 2001 को शंघाई सहयोग संगठन बनाया गया था. इसमें अभी 8 सदस्य हैं जिसमें भारत, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं.
इसके चार कई देश अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया इस समूह में शामिल होना चाहते हैं. वहीं इसमें 6 देश 'साझेदार के तौर पर भी हैं जिनमें अर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्किए शामिल हैं. साल 2021 में ईरान को इसमें शामिल करने के लिए प्रक्रिया शुरू की गई है. इसके साथ ही इजिप्ट, कतर और सऊदी अरब को संवाद साझीदार के तौर पर भी शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है.
साल 2001 में गठन के बाद क्षेत्रीय सुरक्षा पर इस संगठन का ध्यान ज्यादा केंद्रित रहा है. आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक कट्टरता से निपटने के लिए इसमें चर्चाएं होती रही हैं. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस संगठन की अहमियत बढ़ी है. साल 2005 से यह समूह संयुक्त राष्ट्र महासभा में पर्यवेक्षक के तौर भी काम कर रहा है. साल 2010 में संयुक्त राष्ट्र और एससीओ के बीच आपसी सहयोग पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं. इसके साथ ही यूनेस्को, विश्व पर्यटक संघ, अंतरराष्ट्रीय प्रवसन संघ, संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और अपराध नियंत्रण की शाखा के साथ मिलकर काम कर रहा है.