एक्सप्लोरर
Advertisement
श्रीलंका सियासी संकटः संसद भंग करने का फैसला कोर्ट ने पलटा, सिरिसेना को झटका, विक्रमसिंघे को मिली मजबूती
सिरिसेना के सामने जब साफ हो गया कि रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर प्रधानमंत्री बनाए गए महिंद्रा राजपक्षे के पक्ष में संसद में बहुमत नहीं है तो उन्होंने संसद भंग कर दी थी. साथ ही, उन्होंने पांच जनवरी को संसद का मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश जारी कर दिया था.
कोलंबोः श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को मंगलवार को उस समय जोरदार झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के उनके विवादित फैसले को पलटते हुए पांच जनवरी को प्रस्तावित मध्यावधि चुनाव की तैयारियों पर रोक लगा दी. कोर्ट के इस फैसले से बर्खास्त श्रीलंकाई सरकार और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को मजबूती मिली है. मुख्य न्यायाधीश नलिन पेरेरा की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की एक पीठ ने संसद भंग करने के सिरिसेना के नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ दायर तकरीबन 13 और उसके पक्ष में दायर पांच याचिकाओं पर दो दिन की अदालती कार्यवाही के बाद यह व्यवस्था दी. राष्ट्रपति ने विवादित कदम उठाते हुए कार्यकाल पूरा होने के तकरीबन दो साल पहले ही संसद भंग कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद भंग करने का सिरिसेना का फैसला सात दिसंबर तक निलंबित रहेगा और अदालत अगले महीने कोई अंतिम व्यवस्था देने से पहले राष्ट्रपति के फैसले से जुड़ी तमाम याचिकाओं पर विचार करेगी.
कोर्ट के फैसले का मतलब है कि संसद बुलाई जा सकती है और यह पता लगाने के लिए शक्ति परीक्षण कराया जा सकता है कि 225 सदस्यीय संसद में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे के पास बहुमत है या नहीं. कोर्ट के फैसले के बाद संसद अध्यक्ष कारू जयसूर्या ने बुधवार को संसद का सत्र बुलाया है.
जयसूर्या के कार्यालय से जारी विज्ञप्ति में कहा गया, ''अध्यक्ष की ओर से एतद द्वारा सूचना दी जाती है कि संसद की बैठक कल 14 नवंबर को सुबह 10 बजे होगी. सभी सम्मानित सदस्य सत्र में शामिल हों.''
सिरिसेना के सामने जब साफ हो गया कि रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर प्रधानमंत्री बनाए गए महिंद्रा राजपक्षे के पक्ष में संसद में बहुमत नहीं है तो उन्होंने संसद भंग कर दी थी. साथ ही, उन्होंने पांच जनवरी को संसद का मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश जारी कर दिया था. इससे देश अभूतपूर्व संकट में फंस गया.
कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी कि सिरीसेना के फैसले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर अब चार, पांच और छह दिसंबर को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट की आज की व्यवस्था से 67 साल के राष्ट्रपति की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को चोट पहुंच सकती है.
यूनाइटेड नेशनल पार्टी और जनता विमुक्ति पेरामुना समेत प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सिरिसेना के फैसले के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं. याचिकाकर्ताओं में स्वतंत्र चुनाव आयोग के एक सदस्य रत्नाजीवन हुले भी शामिल हैं. उन्होंने राष्ट्रपति के कदम के खिलाफ मौलिक अधिकार से जुड़ी याचिकाएं दायर कीं.
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश अटार्नी जनरल जयंता जयसूर्या ने सिरिसेना के कदम को उचित ठहराया और कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियां साफ और सुस्पष्ट हैं और उन्होंने संविधान के प्रावधानों के अनुरूप संसद भंग की है. जयसूर्या ने सभी याचिकाएं रद्द करने का आग्रह किया और कहा कि राष्ट्रपति के पास संसद भंग करने की शक्तियां हैं.
सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था पर प्रतिक्रिया देते हुए विक्रमसिंघे ने कहा, ''लोगों ने अपनी पहली लड़ाई जीत ली है.'' उन्होंने ट्वीट किया, ''आओ हम आगे बढ़ें और अपने प्रिय देश में लोगों की संप्रभुता फिर स्थापित करें.''
श्रीलंका में मचा है सियासी कोहराम, इसके अहम किरदारों की भूमिका पर डालें एक नजर और जानें पूरा मामला
हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें ABP News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ लाइव पर पढ़ें बॉलीवुड, लाइफस्टाइल, न्यूज़ और खेल जगत, से जुड़ी ख़बरें Khelo khul ke, sab bhool ke - only on Games Live
और देखें
Advertisement
ट्रेंडिंग न्यूज
Advertisement
Advertisement
टॉप हेडलाइंस
इंडिया
टेलीविजन
महाराष्ट्र
बिजनेस
Advertisement
अभिषेक श्रीवास्तव, जर्नलिस्टस्वतंत्र पत्रकार
Opinion