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Shinzo Abe Death: क्यों खलेगी दिल्ली को शिंजो आबे की कमी, महका था जिनके वक्त में जापान-भारत की दोस्ती का रिश्ता,जानिए यहां

Japan’s PM Shinzo Abe And India: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री रहे दिवंगत शिंजो आबे के वक्त भारत-जापान (Japan) के रिश्ते बेहद मैत्रीपूर्ण रहे हैं. उनका जाना भारत को बहुत खलेगा.

Japan’s PM Shinzo Abe's Relations With India: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) के कार्यकाल के वक्त भारत के जापान (India-Japan) के साथ रिश्ते बेहद मैत्रीपूर्ण रहे हैं. कहा जाता है कि इन दोनों देशों के दोस्ती के रिश्तों को परवान चढ़ाने और उसे आकार देने में आबे की अहम भूमिका रही है. आज वही शिंजो आबे मौत के आगोश में समा गए हैं. भारत के लिए उनकी इस मौत को पचा पाना आसान नहीं है. जापान के आबे भारत को बहुत याद आने वाले हैं उनकी कमी देश के सियासतदानों को तो खलेगी ही भारत का जनमानस भी उन्हें याद करेगा. आखिर ऐसा क्या था उनके और भारत के बीच रिश्ता, यहां हम उन बातों पर एक नजर डालेंगे.

जिसने दिया था दोस्ती को एक नया आयाम

बीमारी की वजह से जब आज से दो साल पहले साल 2020 में दिवंगत जापानी प्रधानमंत्री ये अपने पद से इस्तीफा दे दिया था तब भी देश की राजधानी के गलियारों में उनकी जाने की कमी खल रही थी. अब वहीं आबे हमेशा के लिए चले गए हैं. जापान जब उनकी लीडरशिप में था तो भारत के साथ जापान के संबंध पूरी तरह से नए कलेवर में उतर आए थे. शिंजो आबे भारत के लिए कितने महत्वपूर्ण थे इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि उनकी मौत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत में एक दिन के राष्ट्रीय शोक का एलान किया है.

राजनीति रही थी खून में

आबे एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखते थे. उनके दादा नोबुसुके किशी (Nobusuke Kishi) पीएम (1957-60) थे, तब उनके पिता शिंटारो आबे (Shintaro Abe) विदेश मंत्री (1982-86) थे. उन्होंने अपने परदादा ईसाकू सातो ( Eisaku Sato) के सबसे लंबे वक्त 2,798 दिनों तक पीएम रहने के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए सबसे लंबे वक्त तक पीएम रहने का रिकॉर्ड कायम किया था. आबे पहली बार 2006 में जापान के पीएम बने थे, लेकिन बीमारी के चलते 2007 में इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद साल 2012 से लेकर अगस्त 2020 तक वह जापान के पीएम पद पर रहे थे. 

भारत में शिंजो आबे
साल 2006-07 में अपने पहले कार्यकाल में आबे ने भारत का दौरा किया था और संसद को संबोधित किया.अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने तीन बार भारत का दौरा किया. इसमें पहला दौरा जनवरी 2014 दिसंबर, दूसरा 2015 और तीसरा सितंबर 2017 में किया था. यह भारत में  किसी भी जापानी प्रधान मंत्री द्वारा सबसे अधिक किए गए दौरे रहे. वह 2014 में गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि बनने वाले पहले जापानी पीएम थे. यह भारत के संबंध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है - उनकी मेजबानी एक ऐसी सरकार कर रही थी जो मई 2014 में चुनाव लड़ने जा रही थी. जापान के नेता के तौर पर उन्हें  डॉ मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) के नेतृत्व वाले यूपीए (UPA) और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए दोनों ने लुभाया था.

भारत-जापान संबंधों का कायाकल्प

जापान और भारत के बीच वैश्विक साझेदारी की नींव 2001 में रखी गई थी और वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए 2005 में सहमति बनी थी. आबे ने साल 2012 से इन संबंधों में तेजी लाने का श्रेय आबे को ही जाता है. अगस्त 2007 में, जब आबे पहली बार प्रधान मंत्री के रूप में भारत आए,तो उन्होंने अब मशहूर "दो समुद्रों का संगम (Confluence of the Two Seas) "भाषण दिया था. इसके तहत उन्होंने  हिंद-प्रशांत ( Indo-Pacific) अवधारणा (Concept ) की नींव रखी. उनका यही कॉन्सेप्ट अब भारत-जापान संबंधों के लिए एक मजबूत और अहम स्तंभ बन गया है. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान आबे ने इस रिश्ते को और आगे बढ़ाने में मदद की.

यही वजह रही की गुजरात के सीएम के तौर में कई बार जापान का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने सितंबर 2014 में पड़ोस के बाहर अपनी पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए जापान को चुना.  मोदी और आबे द्विपक्षीय संबंधों को "विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी" में अपग्रेड करने पर सहमत हुए. ये संबंध बढ़े और इसमें नागरिक परमाणु ऊर्जा (Civilian Nuclear Energy) से लेकर समुद्री सुरक्षा, बुलेट ट्रेन से लेकर गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, एक्ट ईस्ट नीति ( Act East policy) से लेकर इंडो-पैसिफिक रणनीति तक के मुद्दे शामिल हो गए. 

जब मोदी 2014 में जापान गए थे, तब भी भारत-जापान परमाणु समझौता अनिश्चित (Indo-Japan Nuclear Deal ) था, टोक्यो एक गैर-परमाणु-प्रसार-संधि ( Non-Nuclear-Proliferation-Treaty ) सदस्य देश के साथ इस  समझौते के बारे में संवेदनशील था. आबे की सरकार ने जापान में परमाणु विरोधी तेजतर्रार लोगों को 2016 में समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मना लिया. यह समझौता अमेरिका (America) और फ्रांसीसी ( French) परमाणु फर्मों के साथ भारत के सौदों के लिए महत्वपूर्ण था, जो या तो स्वामित्व में थे या जापानी फर्मों में हिस्सेदारी रखते थे. आबे ने यामानाशी (Yamanashi) में अपने पैतृक घर में मोदी की मेजबानी की थी और जापान की तरफ से इस तरह का सम्मान पाने वाले मोदी पहले ऐसे विदेशी नेता रहे. इसके बाद आबे ने अहमदाबाद में एक रोड शो किया था.  

डिफेंस और  इंडो-पैसिफिक

जब 2008 से सुरक्षा समझौता हुआ था, अबे के तहत दोनों पक्षों ने विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक (2+2) करने का फैसला किया और अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते पर बातचीत चल रही थी. ये एक तरह से सैन्य रसद समर्थन समझौता था. नवंबर 2019 में, पहली विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई थी. साल 2015 में रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए थे, जो युद्ध के बाद जापान के लिए एक असामान्य समझौता था. 

आबे के कार्यकाल के दौरान, भारत और जापान इंडो-पैसिफिक आर्किटेक्चर में करीब आए. आबे ने अपने 2007 के भाषण में दो समुद्रों के संगम के अपने दृष्टिकोण को साफ किया था जब क्वॉड (Quad) का गठन किया गया था. यह जल्द ही ध्वस्त हो गया, लेकिन अक्टूबर 2017 में, जैसे ही प्रशांत (Pacific), हिंद महासागर (Indian Ocean) और डोकलाम (Doklam) में भारत की सीमाओं में चीनी आक्रामकता बढ़ी, यह आबे का ही जापान था जो आगे आया और जिसने वास्तव में क्वाड को पुनर्जीवित करने के विचार को जीवंत किया. जब नवंबर 2017 में भारतीय, जापानी, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिकी अधिकारी पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia summit) के मौके मनीला में मिले तब क्वॉड को पुनर्जीवित किया गया.

भारत-चीन गतिरोध

गौरतलब है कि साल 2013 से ही भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच चार बार सार्वजनिक तौर सीमा विवाद को लेकर बहस और गतिरोध हुआ. चीन और भारत के बीच अप्रैल 2013, सितंबर 2014, जून-अगस्त 2017, और मई 2020 में भी सीमा विवाद होता रहा. इस दौरान भी आबे का जापान हर बार भारत के पक्ष में खड़ा दिखा. यहां तक की डोकलाम संकट और मौजूदा गतिरोध के दौरान जापान ने यथास्थिति को बदलने के लिए चीन के खिलाफ बयान भी दिए. 

इंफ्रास्ट्रकचर

साल 2015 में आबे की यात्रा के दौरान ही भारत ने शिंकानसेन प्रणाली -बुलेट ट्रेन ( Shinkansen System-Bullet Train ) 2022 में चलाने का फैसला किया. आबे के नेतृत्व में ही भारत और जापान ने एक्ट ईस्ट फोरम ( Act East Forum ) का भी गठन किया. इसके तहत चीन पर नजर गड़ाए बैठा था पूर्वोत्तर की उन परियोजनाओं पर काम करना शुरू किया गया. 

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