Shinzo Abe State Funeral: दुनिया के नेता अभी एक हफ्ते पहले ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राजकीय अंतिम संस्कार के लिए लंदन में जुटे थे. अब उनमें से कई एक और राजकीय अंतिम संस्कार के लिए दुनिया के दूसरी तरफ यानी कि पूर्वी एशिया जा रहे हैं. ये कार्यक्रम 27 सितंबर को जापान (Japan) के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) का है. बीती 8 जुलाई को नारा शहर में चुनावी प्रचार कार्यक्रम के दौरान शिंजो आबे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 


इसमें एक बात जो बेहद अजीब है वो ये कि हर दिल अजीज आबे के देशवासी उनके इस अंतिम संस्कार का विरोध कर रहे हैं. इसके पीछे की वजह इस प्रक्रिया में होने वाला भारी खर्च बताया जा रहा है तो दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री आबे की मौत के तरीके जैसी कुछ वजहें, जिससे वहां के लोग उन्हें ये आखिरी सम्मान देने के पक्ष में नहीं दिखते हैं. यही वजह है कि आबे का अंतिम संस्कार इस शांति प्रिय देश में विवाद का विषय बना हुआ है.


राजकीय अंतिम संस्कार की भारी लागत


शिंजो आबे के राजकीय अंतिम संस्कार में पहुंचने के लिए दुनिया के नेता और राष्ट्रध्यक्ष उतावले हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे जापानी इस कार्यक्रम को लेकर उदासीन हैं. इस बड़े स्तर पर होने वाले आयोजन की अनुमानित लागत 11.4 मिलियन डॉलर आंकी गई है. जापानी मुद्रा में देखा जाए तो ये खर्चा 1.65 बिलियन येन बैठता है. जापान में बीते कुछ हफ्तों से राजकीय अंतिम संस्कार का विरोध बढ़ता जा रहा है.


जापान के एक अखबार ‘योमिउरी शिंबुन के सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि देश की आधी से अधिक आबादी इस राजकीय अंतिम संस्कार को करने के खिलाफ है. विरोध भी ऐसा कि इस सप्ताह की शुरुआत में टोक्यो (Tokyo) में प्रधानमंत्री ऑफिस के पास एक शख्स ने खुद को आग के हवाले कर दिया. सोमवार को लगभग 10,000 प्रदर्शनकारियों ने अंतिम संस्कार को वापस लेने की मांग करते हुए राजधानी की सड़कों पर मार्च किया.


यहां अब तक 4 लाख से अधिक लोगों ने इस आयोजन को रोकने के लिए ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं. देश की कई राजनैतिक पार्टियों ने इस राजकीय अंतिम संस्कार में शिरकत करने से इंकार कर दिया है. गौरतलब है कि जापान में पूर्व पीएम के अंतिम संस्कार का खर्चा सरकार और उस नेता की राजनैतिक पार्टी के बीच मिल बांट कर उठाया जाता था, लेकिन आबे के शाही अंतिम संस्कार का पूरा खर्चा यहां की सरकार उठा रही है. ये खर्चा कम से कम 100 करोड़ रुपये तक पहुंचेगा. 


जापान के सहयोगी देश हैं उत्सुक


जहां शिंजो आबे के देश में उनके 27 सितंबर को किए जाने वाले राजकीय अंतिम संस्कार को लेकर हंगामा हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ ये यह आयोजन दुनिया भर से जापान के सहयोगियों को आकर्षित कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) इसमें शामिल नहीं होंगे, लेकिन उपराष्ट्रपति कमला हैरिस (Kamala Harris) इसमें शामिल होंगी. इसमें दुनिया के 190 देशों के प्रतिनिधियों के शामिल होने की उम्मीद है. 


सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग (Lee Hsien Loong) आ रहे हैं. तो ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथोनी अल्बनीज (Anthony Albanese) उनके तीन पूर्ववर्तियों के साथ जापान पहुंच रहे हैं. भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) रानी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए, लेकिन वो आबे को श्रद्धांजलि देने के लिए टोक्यो के लिए उड़ान भर रहे हैं. आखिर जिस नेता को आखिरी विदाई देने के लिए दुनिया भर के नेता पहुंच रहे हैं. उनके देश में ही लोग इसका विरोध कर रहे हैं. ये हंगामा शिंजो आबे के स्टेट्स के बारे में बगैर कहे बहुत कुछ कहता है. 


इस देश में ये सामान्य घटना नहीं है


जापान में एक राजकीय अंतिम संस्कार (State Funeral) सामान्य घटना नहीं है. यहां भी राजकीय अंत्येष्टि  शाही परिवार के सदस्यों के लिए आरक्षित है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जापान में 1967 में केवल एक बार ही इस देश के राजनेता शिगेरु योशिदा को यह सम्मान दिया गया था. इतने लंबे वक्त के बाद आबे का राजकीय अंतिम संस्कार किया जाना एक बड़ी बात है.


शिजो आबे को राजकीय अंतिम संस्कार न दिए जाने के पीछे यहां की जनता कानून का तर्क भी दे रही है. दरअसल जनता के साथ यहां की विपक्षी पार्टियों का कहना है साल 1947 में युद्ध के बाद बने संविधान में राजकीय विदाई देने का कोई मतलब नहीं है. इस बात को लेकर जापान की संसद में भी जोरदार बहस हुई है. सत्तारूढ़ पार्टी कहा कि आबे को ये सम्मान देना कानूनी तौर पर सही है. ये देश की संविधान की खिलाफत नहीं करता है.


कुछ हद तक यह विरोध उसकी मौत के तरीके के कारण भी हैं. बीते 8 जुलाई को नारा शहर में चुनावी प्रचार कार्यक्रम के दौरान शिंजो आबे पर हमला किया गया था. जापान ने उनके लिए शोक मनाया था. जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक आबे कभी भी बेहद लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन कुछ ही लोग होंगे जो इस बात से इंकार करेंगे कि उन्होंने देश को स्थिरता और सुरक्षा का माहौल दिया था. इसलिए देखा जाए तो उनके राजकीय अंतिम संस्कार करने का फैसला भी उनके कद का प्रतिबिंब है.


क्यों है आबे को हक


यकीनन, दूसरे विश्व  युद्ध के बाद से किसी अन्य राजनेता का दुनिया में जापान की स्थिति पर इतना असर नहीं पड़ा जितना की शिंजो आबे का है. आबे ने देश के अमेरिका जैसों देशों के साथ रिश्तों को मजबूती दी. साल 2011 में आई भयंकर सुनामी के बाद जापान को आर्थिक सुधार की राह पर ले जाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.


आबे को शाही विदाई देने के बारे में जापान की संसद में पीएम फ़ुमियो किशिदा (Fumio Kishida) ने कई ऐसी वजहें गिनाई जो आबे को इस सम्मान का हकदार बनाते थे. उन्होंने कहा कि आबे की मौत के बाद दुनियाभर के कई देशों से शोक संदेश  भेजे गए हैं. इस राजकीय अंतिम संस्कार के जरिए देश इन संदेशों का जवाब दे पाएगा. उन्होंने कहा कि आबे को एक चुनावी अभियान में गोली मारी गई थी. इस तरह से देखा जाए तो वो लोकतंत्र पर शहीद होने वाले सिपाही है. उनकी आखिरी विदाई पूरे सम्मान से होना जरूरी है. 


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