Sixth Ocean: अफ्रीका की धरती में धीरे-धीरे बढ़ रही दरार, दुनिया में छठवें महासागर के निर्माण का वैज्ञानिकि जता रहे अनुमान
Sixth Ocean: इथियोपिया के रेगिस्तान में सबसे अधिक 35 मील लंबी दरार खुल चुकी है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अफ्रीका महाद्वीप दो भागों में बंट सकता है और छठे महासागर अस्तित्व में आ सकता है.
Sixth Ocean: भू-वैज्ञानिकों को अब छठे महासागर का आभास होने लगा है, उम्मीद जताई जा रही है कि अफ्रीका महाद्वीप दो भागों में विभाजित हो सकता है और छठा महासागर बन सकता है. अफ्रीका में बनने वाले छठवें महासागर की अवधारणा काफी दिलचस्प है, जिसपर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. पृत्वी का करीब 71 फीसदी भाग पानी से ढंका है और कुल पांच महासागर हैं.
दुनिया में अभी तक प्रशांत, अटलांटिक, भारतीय, दक्षिणी और आर्कटिक महासागर हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भूवैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अफ्रीकी महाद्वीप में एक दुर्लभ भूवैज्ञानिक घटना हो रही है, जो नए महासागर के निर्माण का कारण बन सकती है. अफ्रीका में यह प्रक्रिया अफार त्रिभुज में विकसित हो रही है. अफार त्रिभुज एक भूवैज्ञानिक घटना है जहां तीन टेक्टोनिक प्लेटें- न्युबियन, सोमाली और अरब प्लेटें मिलती हैं. यह अफार क्षेत्र से लेकर पूर्वी अफ्रीका तक फैला हुआ है. यहां पर धरती में धीरे-धीरे दरार बढ़ती जा रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, टेक्टोनिक प्लेटें धीरे-धीरे अलग होने की वजह से ऐसा हो रहा है और यह घटना लाखों वर्षों से हो रही है.
इथोपिया में 35 मील लंबा खुल चुका है दरार
साल 2005 में इथोपिया में यह घटना सामने आई, जहां पर साफ तौर पर वैज्ञानिकों ने पाया कि धरती दो भागों में विभाजित हो रही है. इथियोपिया के रेगिस्तान में सबसे अधिक 35 मील लंबी दरार खुल चुकी है. इससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अफ्रीका महाद्वीप दो भागों में बंट सकता है और दुनिया में छठे महासागर का निर्माण हो सकता है. यह पूरी तरह से प्राकृतिक घटना है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के विस्तार के दौरान भी लाखों-करोड़ों वर्ष पहले इसी तरह की प्राकृतिक घटनाएं हुई हैं.
सृष्टि का हो रहा विस्तार
भू-वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 50 लाख से एक करोड़ साल में टेक्टोनिक की वजह से अफ्रीका महाद्वीप दो भागों में विभाजित हो जाएगा, जिससे एक नया महासागर बेसिन बन जाएगा. इसतरह की प्राकृतिक घटना वैज्ञानिक शोध का विषय है. बताया जाता है कि पृथ्वी के विस्तार का यह एक हिस्सा है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सृष्टि रचना का सिद्धांत ही विस्तार पर निर्भर है. बिग-बैंग थियरी में भी कुछ इसी तरह की बात कही गई है.
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