किम और मून की ऐतिहासिक मुलाकात से जगी शांति की उम्मीदें, फिर भी उत्तर कोरिया पर है ‘शक’
पहले से तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार उसे उत्तर कोरिया से सीधे डीएमजेड में बनी 'मिलिट्री डिमार्केशन लाइन' पारकर दक्षिण कोरिया की सीमा में दाखिल होना था. लेकिन वो दाखिल तो हुआ लेकिन मून से हाथ मिलाकर वो मून को अपनी सीमा में ले गया.
नई दिल्ली: किम जोंग उन जब डीएमजेड में मून जे-इन से मिला तो करीब ही देश-विदेश के बड़ी तादाद में जुटे मीडियाकर्मी के लिए बने प्रेस-सेंटर में मुस्कराहट दौड़ गई. कुछ स्थानीय पत्रकारों की आंखों में तो ये मंजर देखकर आंसू तक छलक आए. क्योंकि दक्षिण कोरिया का हरेक शख्स उत्तर कोरिया से अपने लगाव को कभी नहीं भूल सकता, फिर भले ही वो पत्रकार ही क्यों ना हो. लेकिन अगले पल ही मुस्कराहट हंसी में बदलने लगी. क्योंकि मून से वार्ता के दौरान किम को आलस आने लगा था, कई बार ऐसा लगा कि कहीं उसे झपकी ना आ जाए. लेकिन अगले ही पल वो एकाग्र हो जाता था, क्योंकि उसे पता था कि उसकी हर हरकत को कैमरे अपने लेंस में कैद कर रहे हैं.
दुनिया के सबसे सनकी समझे जाने वाले शासक ने जैसे ही दुनिया के सबसे किलेबंदी वाले बॉर्डर से अपना एक कदम दक्षिण की तरफ बढ़ाया, पूरी दुनिया मानों खुशी से झूम उठी. लेकिन एतेहिासिक 'इंटर-कोरियन समिट 2018' की सफलता के बाद भी दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिले जो उत्तर कोरिया और उसके सनकी तानाशाह किम जोंग उन पर जल्द विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं.
किम की पहचान सनकी के साथ-साथ अपरिपक्व की भी
किम जोंग उन की पहचान अभी तक एक सनकी के साथ-साथ अपरिपक्व शासक की मानी जाती थी. वो मलेशिया में अपने भाई की हत्या करवा देता है, वो अपने फूफा का बेरहमी से कत्ल करवा देता है क्योंकि उसे शक था कि वे उसके खिलाफ साजिश रच रहे थे. वो मीटिंग में झपकी ले रहे जनरल को मरवा देता है. दुनिया को ठेंगा दिखाकर वो परमाणु परीक्षण करता है, बैलेस्टिक मिसाइल के टेस्ट कर वो दुनिया की नींद उड़ा देता है. लेकिन जब 27 अप्रैल को वो अपने देश और राजधानी से बाहर निकलकर पड़ोसी देश, दक्षिण कोरिया से सटे डिमिलिट्राइज़ जोन यानि डीएमजेड पहुंचता है तो खिलखिलाकर हंसता हुआ दिखाई पड़ता है (ठीक वैसा ही जैसा कि वो अपने देश के पुराने वीडियो में दिखाई देता था, हाईड्रोजन बम और मिसाइलों को देखते और सराहते हुए).
कोरियाई शिखर सम्मेलन और उसके बाद जारी किए 'पनमुनजोम घोषणा-पत्र' के अगले ही दिन एक बड़ा विरोध प्रदर्शन राजधानी सियोल में हुआ. प्रदर्शनकारी हालांकि ज्यादातर पूर्व राष्ट्रपति (सुश्री) पार्क के थे जिन्हें हाल ही में अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना पड़ा है. लेकिन फिर भी दक्षिण कोरिया की पुरानी पीढ़ी के लोग ना तो उत्तर कोरिया और ना ही उसके किसी शासक पर विश्वास करते हैं. सियोल की भागती-दौड़ती जिंदगी पर मानों विराम लग गया हो. सियोल की गगनचुंबी इमारतें, हाईटेक (5जी) और चकाचौंध से भरी जिंदगी के पीछे एक अजीब सा अविश्वास दिखाई पड़ता है. हालांकि लोगों का ये भी मानना है कि वे अब उत्तर कोरिया के डर के साए में नहीं जी सकते और इस (परमाणु और मिसाइलों के) माहौल में जीना सीख गए हैं.
युवा पीढ़ी मुलाकात को लेकर उत्हासित
लेकिन युवा पीढ़ी उत्तर कोरिया को लेकर उत्साहित है. उन्हें लगता है कि किम जोंग उन और उनके लोकप्रिय राष्ट्रपति, मून जे-इन के बीच हुई बैठक से ना केवल कोरियाई प्रायद्वीप (यानि उत्तर और दक्षिण कोरिया) में शांति स्थापित होगी बल्कि भविष्य में दोनों देशों का एकीकरण भी हो सकता है (जैसा कि जर्मनी का हुआ था).
कोरियाई शिखर सम्मलेन को कवर करने आए दुनियाभर के 41 देशों के 900 पत्रकार (जिसमें एबीपी न्यूज की टीम भी शामिल थी) और कोरिया के 1800 मीडियाकर्मियों के लिए सियोल से करीब 40 किलोमीटर दूर, किंटैक्स में एक बड़ा प्रेस सेंटर बनाया गया था. वहां पर कोरिया की मीडिया को जितना बेसब्री से इस समिट का इंतजार था उतना ही विदेशी मीडिया से इस सम्मलेन को लेकर उनकी राय जानना था. विदेशी मीडिया की राय और विचार को दक्षिण कोरिया में प्रमुखता से दिखाया गया. अधिकतर विदेशी मीडिया को भी पूरी उम्मीद थी कि समिट से प्रायद्वीप में शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण का रास्ता साफ हो जायेगा.
बैठक के दौरान 'वन कोरिया नाउ' के बैनर लगे दिखे
डीएमजेड में हुई इस ऐतिहासिक बैठक के दौरान सब जगह 'वन कोरिया नाउ' के बैनर लगे थे तो दोनों कोरिया देशों का एक ही नक्शा बना था. यानि कि दोनों कोरियाई देशों के एकीकरण का सपना.
पनमुनजोम घोषणा-पत्र को साफ तौर से कोरियाई प्रायद्वीप में 'शांति, समृद्घि और एकीकरण' के लिए दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने जारी किया है. लेकिन पुरानी पीढ़ी को किम जोंग उन पर विश्वास ना होने करने के कई कारण हैं. पहला तो ये कि पिछले 70 सालों में दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्ष पहले भी दो बार मिले थे. वर्ष 2000 और 2007 में, और दोनों ही बार ठीक इसी तरह का 'डैकलेरेशन' जारी किया था. लेकिन दोनों ही बार उत्तर कोरिया के शासकों ने उसे दुनिया को धत्ता बताते हुए खुद ब खुद रद्द कर दिया था. गौरतलब है कि उत्तर कोरिया में अभी तक कुल तीन शासक हुए हैं और उनमें भी किम जोंग उन के दादा और पिता शामिल हैं, किम जोंग उन (2011- अब तक), पिता किम इल जोंग (1994-2012) और दादा किम इल सन (1948-1994).
दक्षिण कोरिया के लोग मानते हैं कि किम जोंग उन भी अपने पिता और दादा जैसा ही सनकी तानाशाह है. लेकिन उसमें अपने बाप-दादा से भी ज्यादा एक बड़ी कमी है, और वो है उसकी उम्र और उसका जिंदगी को देखना का अनुभव. किम जोंग की उम्र महज 34 साल है. इसलिए लोग उसे ज्यादा खतरनाक मानते हैं.
हाथ मिलाकर मून को अपनी सीमा में ले गया किम
हालांकि किम जोंग उन डीएमजेड की 'पीस-बिल्डिंग' में जिस गर्मजोशी से राष्ट्रपति मून से मिला, उसे देखकर सभी को लगा है कि वो बदल गया है. लेकिन डीएमजेड में दाखिल होने के समय में अगर उसके कदमों को गौर से देखें तो लगने लगा है कि वो अपनी चालबाजियों से बाज़ नहीं आया है. पहले से तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार उसे उत्तर कोरिया से सीधे डीएमजेड में बनी 'मिलिट्री डिमार्केशन लाइन' पारकर दक्षिण कोरिया की सीमा में दाखिल होना था. लेकिन वो दाखिल तो हुआ लेकिन मून से हाथ मिलाकर वो मून को अपनी सीमा में ले गया. देखने में ये मामूली बात लगती हो लेकिन सामरिक तौर से किम ने ऐसा दांव खेला कि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति उसे मना नहीं कर पाए और उसकी चाल में फंस कर उत्तर कोरिया की सीमा में दाखिल हो गए.
शाम होते होते पनमुनजोम घोषणापत्र जारी कर दिया गया. लेकिन जानकारों की मानें तो गौर से देखने पर पता चलता है कि ये घोषणा-पत्र ठीक वैसा ही था जैसा कि वर्ष 2000 और 2007 में जारी किया गया था (और कुछ समय बाद रद्द कर दिया गया था). तो क्या मून 'प्लेजरिज़म' के दोषी हैं.
दक्षिण कोरिया के आम लोगों को किम की नियत पर 'शक'
जिन भी आम लोगों से दक्षिण कोरिया में बात की वे यही बात उल्टा आप से पूछने लगते हैं कि किम शांति के लिए क्यों तैयार हो गया. इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है. क्या वाकई अमेरिका का डर और दुनिया की आर्थिक पाबंदियां इसका कारण हैं. या कारण कुछ और तो नहीं. कुछ लोग तो अपने ही राष्ट्रपति की मंशा पर सवाल खड़े करने लगते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं मून किम के लिए काम कर रहा है. वो भला क्यों? वो इसलिए क्योंकि कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन उत्तर कोरिया के शरणार्थी हैं. कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान उनके माता-पिता कुछ समय के लिए दक्षिण कोरिया आ गए थे. लेकिन उसके बाद वो वापस नहीं जा पाए. कुछ लोग तो इसी वजह से उन्हें उत्तर कोरिया का 'जासूस' तक करार देते हैं.
लेकिन हकीकत जो भी हो पूरी दुनिया को उम्मीद है कि इस बैठक के बाद कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की स्थापना हो जायेगी. अगले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की मीटिंग के बाद तस्वीर और साफ होने की उम्मीद है.