Continents rising : पृथ्वी के नीचे उठ रहीं लहरों और बढ़ते महाद्वीपों को लेकर वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है. इंग्लैंड के साउथहैम्प्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने प्लेट टेक्टोनिक्स का अध्ययन किया है. इसमें कहा गया कि टेक्टोनिक प्लेटें अक्सर टूट जाती हैं और इससे पृथ्वी के भीतर शक्तिशाली लहरें उठती हैं. इस घटना के कारण महाद्वीपीय सतहें ऊपर उठती हैं, कभी-कभी ये एक किलोमीटर से भी अधिक तक उठ जाती हैं. साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख लेखक टॉम गर्नन कहते हैं कि वैज्ञानिकों को पता है कि महाद्वीपीय दरारें विशाल चट्टानों को उठाती हैं, जैसे कि पूर्वी अफ़्रीकी रिफ्ट वैली और इथियोपियाई पठार को अलग करने वाली दीवारें हैं. ये खड़ी चट्टानें अक्सर महाद्वीपों के मजबूत और स्थिर केंद्रों से उठने वाले आंतरिक पठारों को घेरती हैं. लेकिन ये दोनों ही लैंडस्केप फीचर्स आमतौर पर 1 से 10 करोड़ साल के अंतर पर बनती हैं. इसलिए कई वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका निर्माण अलग-अलग हुआ है, जिन्हें अलग-अलग प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ा है. 


भारत का पश्चिमी घाट भी उठा ऊपर
नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, टॉम गर्नन कहते हैं कि स्टडी के लिए धरती के आखिरी सुपरकॉन्टीनेंट के टूटने के बाद बनी खाई दीवार की जांच पड़ताल की. इनमें से एक दीवार भारत में है, जिसे पश्चिमी घाट कहते हैं. यह 2000 किलोमीटर लंबी है. ब्राजील में हाईलैंड प्लैट्यू जो 3000 किलोमीटर लंबी है. दक्षिण अफ्रीका में सेंट्रल प्लैट्यू है, यह 6000 किलोमीटर लंबी है. यानी इन पठारों के नीचे के हिस्से कई किलोमीटर ऊपर उठे हैं. जिसके पीछे मैंटल में चली लहर है.


हर दस लाख साल में ये 15 से 20 किलोमीटर बढ़ते हैं
शोध में वैज्ञानिकों ने दावा किया टीम ने टोपोग्राफिक नक्शों से इन जगहों का मिलान किया था. तब पता चला कि ये महाद्वीपों के ऊपर उठते समय अलग होने की वजह से बने हैं, क्योंकि ऊपर उठने वाले महाद्वीपों से डिस्टर्बेंस होती है. इसकी वजह से तेज लहरें उठती हैं. ये लहरें अंदर दौड़ती हैं. इनकी वजह से ही ये पठार ऊपर उठते हैं, लेकिन बहुत धीमी गति से. हर दस लाख साल में ये 15 से 20 किलोमीटर बढ़ते हैं. इनकी वजह से पठारों का आकार बदलता रहता है. गर्नन कहते हैं कि इन महाद्वीपों के टूटने से न केवल पृथ्वी की गहरी परतें प्रभावित होती हैं, बल्कि इसके प्रभाव महाद्वीपों की सतह पर भी दिखाई देते हैं, जिन्हें पहले स्थिर माना जाता था.