भारत के बेहद अहम पड़ोसी देश को चीन ने की थी 'ख़रीदने' की कोशिश, नतीजा कुछ और निकला
कल एक जानकारी सामने आई थी कि चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज की पेशकश की है. लेकिन श्रीलंका के इस कदम से साफ है कि वो अब और चीनी कर्ज के मूड में नहीं है.
मनीला: श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) के साथ कुल 45.5 करोड़ डॉलर के तीन कर्ज समझौतों पर गुरुवार को हस्ताक्षर किए, जिससे हायर एजुकेशन, ट्रंसपोर्ट और शहरी इलाके में तकनीकी सहायता से जुड़ी कर्ज की परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाएगा. कल एक जानकारी सामने आई थी कि चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज की पेशकश की है. लेकिन श्रीलंका के इस कदम से साफ है कि वो अब और चीनी कर्ज के मूड में नहीं है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट में कहा गया कि एडीबी मुख्यालय के अपने पहले दौरे के दौरान सिरीसेना ने इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए. वे फिलिपिंस के पांच दिनों के दौरे पर मंगलवार को यहां पहुंचे. इस कर्ज में 14.5 करोड़ डॉलर से एक परियोजना शुरू की जाएगी, जिमसें चार यूनिवर्सिटी में साइंस और टेक्नॉलजी फैकल्टी का विकास किया जाएगा. वहीं, 30 करोड़ डॉलर का खर्च कोलंबो इंटरनेशनल एयरोपर्ट को देश के एक्सप्रेसवे नेटवर्क से जोड़ने के लिए एक 5.3 किलोमीटर लंबे एलिवेटेड सड़क के निर्माण पर किया जाएगा.
इसके अलावा के 1 करोड़ डॉलर का कर्ज श्रीलंका की शहरी परियोजनाओं के डिजायन को बनाने में सुधार में मदद के लिए एक फैकल्टी की स्थापना के लिए किया जाएगा. मनीला स्थित मुख्यालय वाले बैंक ने कहा है कि इस साल एडीबी श्रीलंका को कुल 81.5 करोड़ डॉलर का कर्ज देगा, जिसमें ये तीन कर्ज भी शामिल हैं.
चीन ने की है लोन की पेशकश पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अपने बोझ के तले दबा देने वाली चीन को लेकर कल ये ख़बर आई थी कि ये भारत के एक और पड़ोसी देश को कर्ज़ के बोझ में ढंक देना या यूं कहें कि उसे 'ख़रीद लेना' चाहता है. ड्रैगन की चौथी सबसे बड़े वित्तिय संस्था बैंक ऑफ चाइना ने श्रीलंका को 300 मिलियन डॉलर के कर्ज़ का ऑफर दिया है. चीन की इस संस्था ने कहा है कि इस ऑफर को बढ़ाकर एक बिलिनय डॉलर तक का किया जा सकता है.सूत्रों के हवाले से बाहर आई इस जानकारी में ये भी कहा गया था कि श्रीलंका की सरकार इस कर्ज़ को लेने का मन बना रहा है. लेकिन श्रीलंका द्वारा आज लिए गए ताज़ा लोन के बाद ऐसा लगता नहीं कि श्रीलंका अब चीनी कर्ज लेगा. लोन लेने पीछे की वजह ये है कि देश में मची राजनीतिक उथल-पुथल का असर इसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. इसकी वजह से इसकी आर्थिक रेटिंग गिरा दी गई है और अंतरराष्ट्रीय वित्तय संस्थानों से कर्ज़ लेने में इसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
ये ख़बर न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने अपने सूत्रों के हवाले से की है. हालांकि, एजेंसी का कहना है कि उसे अभी तक श्रीलंका के वित्त मंत्रालय और बैंक ऑफ चाइना का आधिकारिक पक्ष नहीं मिला है. भारत के सबसे करीबी पड़ोसियों में शामिल श्रीलंका अपने लोन नहीं भर पा रहा है. इसी की वजह से चीन ने पहले ही इसके हंबनटोटा बंदरगाह को 99 सालों के लिए अपने कब्ज़े में ले लिया है.
बीआरआई के तहत दुनिया को घेरता चीन आपको बता दें कि बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) चीन के इतिहास की सबसे महत्वकांक्षी योजना है. इसके तहत 'ड्रैगन' विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है. पश्चिमी जगत की मीडिया के अनुसार चीन इस परियोजना में खरबों रुपयों का निवेश दो वजहों से कर रहा है. एक तो विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करने के अलावा चीन इसके सहारे अपनी धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में भी नई जान फूंकना चाहता है. वहीं दूसरा, उनका ये भी मानना है कि पहले से विश्वभर में हो रहे चीनी निवेश और बढ़ते प्रभुत्व को बीआरआई के रूप में बस एक नया नाम दे दिया गया है.
ब्रिटेन के भरोसेमंद मीडिया हाउस में शुमार द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट में लिखा है कि जब शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने उसके बाद उन्होंने एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने की एक महत्कांक्षी परियोजना की घोषणा की. इसी परियोजना को परिभाषित करने के लिए मौटे तौर पर बीआरआई का नाम स्वीकार किया गया जिसके तहत वो सारी आर्थिक और भू-राजनीतिक बातें आ जाएं जो चीन के नेतृत्व में हो रही हैं. बेल्ट एंड रोड जिसे चीनी भाषा में या डाई यी लू कहेंगे, चीन का 21वीं सदी का सिल्क रोड है. इसका मतलब व्यापार के उन जमीनी गलियारों और समुद्री मार्ग से है जिसके रास्ते व्यापार को आसान बनाने की तैयारी है. हालांकि, ये साफ नहीं है कि चीन ने ये ताज़ा लोन बीआरआई के तहत ऑफर किया है या नहीं.
कितने देश हैं इसका हिस्सा दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर पू्र्वी यूरोप और अफ्रीका तक कुल 71 देश बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा हैं. इसमें विश्व की आधी आबादी और एक चौथाई जीडीपी शामिल है. बीआरआई की परिभाषा को इतान खुला रखा गया है कि इसके तहत ट्रंप के थीम पार्क से लेकर चोंगक्विंग के जैज कैंप तक आ जाता हैं. वही, पनामा से मेडागास्कर और साउथ अफ्रीका से न्यूजीलैंड तक ने इसे अपना समर्थन दिया है.
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