Explained: विद्रोह, बवाल और आपातकाल... राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के श्रीलंका से भागने के बाद अब आगे क्या होगा?
Sri Lanka Crisis: श्रीलंका के 44 साल के इतिहास में ये दूसरी बार है,जब कार्यकारी राष्ट्रपति का पद बीच में ही खाली होने जा रहा है. यहां 1993 में रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या के बाद ऐसी स्थिति बनी थी.
Gotabaya Rajapaksa Resign: आर्थिक संकट (Economic Crisis) से जूझ रहे श्रीलंका में देश के नेतृत्व संभालने को लेकर भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है. इस देश के 44 साल के इतिहास में ये दूसरा मौका है जब यहां कार्यकारी राष्ट्रपति (Executive Presidency) का पद कार्यकाल के बीच (Midstream) में ही खाली होने जा रहा है. पहली बार इस तरह के हालात 1993 में बने थे, जब लिट्टे (LTTE) ने वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा (Ranasinghe Premadasa) की हत्या कर दी थी. उस वक्त प्रधानमंत्री रहे डिंगीरी बंडारा विजेतुंगा (Dingiri Bandara Wijetunga) को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया था.
एक बार फिर भारत के पड़ोसी देश में यही स्थिति बनी हुई है. इस वक्त श्रीलंका (Sri Lanka) राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ( Gotabaya Rajapaksa) के इस्तीफे का इंतजार कर रहा है. उन्होंने वादा किया था कि वह 13 जुलाई को राष्ट्रपति पद छोड़ देंगे. गौरतलब है कि इस पद पर अपना दावा ठोकने के लिए विभिन्न राजनीतिक खेमों की जोरदार कोशिशें जारी है तो उधर गो गोटा गो (Go Gota Go) के नारे लगाने वाले हजारों प्रदर्शनकारी (Protesters) यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं कि मौजूदा व्यवस्था में शामिल कोई भी शख्स इस पद पर दोबारा न बैठ पाए. प्रदर्शनकारियों की मांग राजपक्षे और विक्रमसिंघे में से किसी को भी सत्ता में न रहने देने की है.
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) दोनों ने 9 जुलाई को कहा था कि वो दोनों इस्तीफा देंगे, लेकिन दोनों में से किसी ने ऐसा नहीं किया है, हालांकि गोटाबाया के देश छोड़ने के बाद अब पीएम रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया है. इस देश में पीएम तभी कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं. जब राष्ट्रपति उन्हें नियुक्त करें, उनका कार्यालय खाली हो, या स्पीकर के परामर्श से मुख्य न्यायाधीश को लगे कि राष्ट्रपति कार्य करने में असमर्थ हैं. इनके बगैर पीएम राष्ट्रपति की शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. श्रीलंका के स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्धने (Mahinda Yapa Abeywardena) ने घोषणा की है कि राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने संविधान के अनुच्छेद 37.1 के तहत पीएम रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर कार्य करने की शक्तियां प्रदान की हैं. लेकिन अब वह अनिश्चित काल के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं, क्योंकि अनुच्छेद 37.1 कोई समय सीमा निर्धारित नहीं करता है.
यहां आलम यह है कि 12 जुलाई की शाम को ही श्रीलंका की सेना (Sri Lankan Army) को राज्य प्रसारक (State Broadcaster) रूपवाहिनी कॉर्पोरेशन (Rupavahini Corporation) के ऑफिस के बाहर तैनात कर दिया गया. यह कदम अधिक विरोध की आशंका और लगातार कुछ गो गोटा गो प्रदर्शनकारियों के उन्हें देश के टेलीविजन (StateTelevision) पर राष्ट्र को लाइव संबोधित करने की अनुमति देने की मांग को लेकर उठाया गया है.
क्या कहता है श्रीलंका का संविधान?
श्रीलंका के संविधान (Constitution) में निर्धारित उत्तराधिकार के प्रावधानों के तहत जब राष्ट्रपति का कार्यालय खाली हो जाता है तो अनुच्छेद 40 के तहत, संसद द्वारा चुने गए नए राष्ट्रपति का पद खाली होने और पद ग्रहण करने के बीच प्रधानमंत्री कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है. वह इस पद पर तब -तक रहता है जब -तक कि संसद (Parliament) अपने सदस्यों में से एक उम्मीदवार को राष्ट्रपति के लिए चुन नहीं लेती. देश राष्ट्रपति के इस्तीफा देने की स्थिति में यहां अनुच्छेद 40 का प्रावधान प्रासांगिक होता है. इस अनुच्छेद के तहत, अगर राष्ट्रपति का पद पांच साल का वक्त खत्म होने से पहले खाली हो जाता है, तो संसद को अपने सदस्यों में से एक को राष्ट्रपति के रूप में चुनना होता है. यही उत्तराधिकारी राष्ट्रपति के पद पर उसके शेष कार्यकाल तक रहता है. इसके लिए नियम है कि यह चुनाव राष्ट्रपति का पद खाली होने के एक महीने के अंदर होता है. इसके लिए गुप्त मतदान होता है, और उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत हासिल करना होता है. इस चुनाव के लिए श्रीलंका के संसद अध्यक्ष ने चुनाव की तारीख 20 जुलाई घोषित की है. गौरतलब है कि मई के दूसरे सप्ताह में राष्ट्रपति गोटाबाया ने रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) को प्रधानमंत्री बनाया था. उन्हें इस पद पर श्रीलंका को आर्थिक मंदी से उबरने में मदद करने के लिए लाया गया था, लेकिन हाल के दिनों में उन्हें प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे के ऐसे दोस्त के तौर पर लिया, जो उन्हें बचाने की भरसक कोशिश कर रहा है. देश में भोजन और ईंधन की कमी की परेशानी को दूर करने में नाकामयाब रहने पर विपक्षी दलों ने भी विक्रमसिंघे की आलोचना की. गौरतलब है कि पीएम विक्रमसिंघे ने संसद में अपने पहले भाषण में चेतावनी दी थी कि स्थिति बेहतर होने से पहले और भी खराब हो जाएगी, लेकिन विपक्षी दलों ने संसद में पीएम की कही इस बात को भी सिरे से नकार दिया.
विक्रमसिंघे की राह आगे कितनी होगी आसान
फिलवक्त रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है.उन्होंने देश में इमरजेंसी (Emergency) की लगाने की घोषणा कर दी है. गौरतलब है कि विक्रमसिंघे ने 9 जुलाई को खुद ट्वीट (Tweet) किया था कि वह सर्वदलीय सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देंगे. लेकिन वास्तव में उन्होंने मंगलवार शाम तक इस्तीफा (Resign) नहीं दिया था. संविधान के तहत देखा जाए तो यदि प्रधानमंत्री का पद भी खाली है,तो संसद का अध्यक्ष कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है. लेकिन अगर विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री रहते हुए ही अगर राजपक्षे वास्तव में इस्तीफा देते हैं, तो वह कम से कम तब -तक राष्ट्रपति रहेंगे, जब तक कि संसद किसी और को इस पद के लिए नहीं चुन लेती.
सोमवार 11 जुलाई को विक्रमसिंघे ने एक बयान में कहा कि "कोई भी संविधान से आगे नहीं जा सकता है, और कोई भी संसद को बाहर से काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. मैं यहां संविधान की रक्षा करने के लिए हूं, लोगों को सुनना चाहिए, लेकिन संविधान के अनुसार काम करना चाहिए. श्रीलंका को एक सर्वदलीय सरकार की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हमें इसके लिए काम करना होगा. कुछ श्रीलंकाई मीडिया संगठनों ने रिपोर्ट किया है कि श्रीलंका में पोदुजाना पेरामुना -एसएलपीपी (Sri Lanka Podujana Peramuna-SLPP) का बहुमत है, जो कि राजपक्षे परिवार की पार्टी है. यह पार्टी विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति कार्यालय में आने का समर्थन करती है. इससे साफ है कि वह भी चुनाव में एक उम्मीदवार होंगे. गौरतलब है कि विक्रमसिंघे खुद एक मनोनीत सांसद (MP) हैं,और उनकी यूनाइटेड नेशनल पार्टी -यूएनपी (United National Party -UNP) का संसद में कोई निर्वाचित सदस्य नहीं है.
तो फिर राष्ट्रपति बनने का मौका किसके पास है ?
विक्रमसिंघे की यूएनपी के पूर्व सदस्य रहे साजिथ प्रेमदासा (Sajith Premadasa) ने अपनी अलग पार्टी समागी जन बालवेगया -एसजेबी (Samagi Jana Balawegaya -SJB) के चीफ हैं. उन्होंने खुद को "अंतरिम-(Interim)" राष्ट्रपति के लिए विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर आगे रखा है और घोषणा की है कि वह देश का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने देश को वर्तमान आर्थिक और राजनीतिक संकट से बाहर निकलने का रास्ता खोजने का भी दावा किया है. गौरतलब है कि सदन के 225 सदस्यों में से 50 सदस्य एसजेबी के हैं. हालांकि यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रेमदासा मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं, जिसके तहत संवैधानिक तौर पर देश के राष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद उस पद पर प्रधानमंत्री तुरंत राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेते हैं, या फिर प्रेमदासा की तैयारी संसद में राष्ट्रपति पद के लिए बहुमत साबित करने को लेकर है.
पहले कभी राष्ट्रपति पद इस तरह से खाली हुआ है?
श्रीलंका के कार्यकारी राष्ट्रपति के 44 वर्षों के इतिहास में ये दूसरी बार है कि ये पद कार्यकाल के बीच में ही खाली होने जा रहा है. श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने (J R Jayewardene) थे, जो 1978 में एक नए संविधान के जरिए इस प्रणाली को लाए थे. वह 1989 तक राष्ट्रपति बने रहे. उनके बाद एसजेबी नेता साजिथ प्रेमदासा के पिता रणसिंघे प्रेमदासा को राष्ट्रपति बनाया गया था. रणसिंघे जे आर जयवर्धने के यूएनपी सहयोगी रहे थे. जब साल 1993 में मई दिवस की रैली के दौरान लिट्टे के आत्मघाती हमलावर ने प्रेमदासा की हत्या कर दी थी. इसके बाद पहली बार राष्ट्रपति कार्यालय खाली हुआ था. तब उस वक्त प्रधानमंत्री रहे डिंगिरी बंडारा विजेतुंगा (Dingiri Bandara Wijetunga) कार्यवाहक राष्ट्रपति (Acting President) बनाए गए थे और वह तब -तक इस पद पर रहे थे जब-तक संसद ने प्रेमदासा के उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं किया था. इसके बाद 7 मई, 1993 में प्रेमदासा के शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए संसद द्वारा सर्वसम्मति से चुने जाने के बाद विजेतुंगा को तीसरे कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई. उन्होंने 1994 में जल्द ही एक संसदीय चुनाव का एलान कर डाला, हालांकि इसमें विपक्षी एसएलएफपी (SLFP) ने जीत हासिल की. उसके बाद ऐसा कभी नहीं हुआ कि श्रीलंका में राष्ट्रपति का पद खाली रहा है.
ये आश्चर्य की बात है कि इस दौरान चंद्रिका कुमारतुंगा (Chandrika Kumaratunga) प्रधानमंत्री बनीं और काफी पावर में होने के बाद भी विजेतुंगा ने उन्हें सरकार चलाने दी. उस साल के बाद में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव करवाया, लेकिन यह चुनाव विजेतुंगा नहीं लड़ा. इस चुनावी अभियान के दौरान यूएनपी उम्मीदवार गामिनी दिसानायके (Gamini Dissanayake) की हत्या कर दी गई. इसके बाद उनकी पत्नी सिरिमा ( Sirima) ने उनकी जगह ले ली. हालांकि, कुमारतुंगा ने एसएलएफपी के उम्मीदवार के तौर पर 62 फीसदी से अधिक मतों के साथ निर्णायक जीत हासिल की. कुमारतुंगा को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया. दूसरे कार्यकाल में वह एसएलएफपी (SLFP) के महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) के बाद इस पद पर आसीन हुईं. मैथिरिपाला सिरिसेना (Maithiripala Sirisena) ने जनवरी 2015 का राष्ट्रपति चुनाव जीता और नवंबर 2019 में गोटबाया राजपक्षे ने उनकी जगह ली.
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