Gotabaya Rajapaksa: 40 हजार तमिलों को उतारा मौत के घाट, सैन्य अधिकारी से लेकर राष्ट्रपति तक, अब हुए फरार
Sri Lanka Crisis: गोटबाया राजपक्षे 21 साल की आयु में सेना में शामिल हुए और दो दशकों तक सेना में सेवा के दौरान उन्होंने लेफ्टिनेंट-कर्नल के पद तक सफर तय किया.
Sri Lanka Political Crisis: श्रीलंका में आर्थिक संकट (Sri Lanka Economic Crisis) के कारण हालात नाजुक बने हुए हैं. प्रर्दशनकारियों ने प्रधानमंत्री के घर को आग लगा दी और राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर उसमें तोड़फोड़ की. इस बीच खबर आ रही है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) देश छोड़कर मालद्वीप (Maldives) पहुंच गए हैं. बताया जा रहा है कि गोटबाया राजपक्षे आज अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं. राजपक्षे देश की आजादी के बाद के इतिहास में श्रीलंका (Sri Lanka) के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों में से एक थे.
अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के विपरीत जिन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के रूप में लगभग 20 वर्षों तक श्रीलंका की राजनीति पर हावी रहे, गोटाबाया ने राजनीति से दूरी बनाई रखी. बता दें कि गोटबाया राजपक्षे 21 साल की आयु में सेना में शामिल हुए और दो दशकों तक सेना में सेवा के दौरान उन्होंने लेफ्टिनेंट-कर्नल के पद तक सफर तय किया. जल्दी रिटायरमेंट लेते हुए वह संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी में काम किया.
राजनीति में की एंट्री
गोटबाया का राजनीति में प्रवेश तब हुआ जब 2005 में महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने और उन्हें रक्षा सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. उन्हें लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के खिलाफ युद्ध का प्रभारी बनाया गया. LTTE ने 26 साल के संघर्ष के बाद 2009 में एक क्रूर सरकारी हमले के बाद हार मान ली. दावा किया जाता है कि इस हमले में 40 हजार तमिल नागरिक मारे गए थे. सरकार ने जिसका विरोध किया.
इस नरसंहार के बावजूद सिंहली बौद्धों (Sinhalese Buddhist) ने गोटबाया को युद्ध के नायक के तौर देखा. गोटबाया समेत अन्य लोगों पर तमिलों की हत्या, उन्हें यातनाएं देने और इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले आलोचकों के लापता होने कई गंभीर आरोप लगाए गए. जिनका गोटबाया लगातार खंडन करते रहे. हांलाकि, 2015 में महिंदा राजपक्षे की सत्ता खो देने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
2019 में सत्ता में की वापसी
तममा आरोपों के बावजूद गोटबाया राजपक्षे ने नवंबर 2019 को बड़े अंतर के साथ चुनाव जीता. चुनाव में मिली जीत के बाद उन्होंने सभी श्रीलंकाई लोगों (Sri Lankans) का प्रतिनिधित्व करने का वादा किया, चाहे उनकी जातीय और धार्मिक पहचान कुछ भी हो. अगस्त 2020 में उनकी पार्टी ने संसद में अपना बहुमत बढ़ाकर दो-तिहाई कर दिया, जिससे राष्ट्रपति की शक्ति को सीमित करने वाले कानूनों को निरस्त करने की अनुमति मिली. उन्होंने महिंदा को प्रधानमंत्री और अपने कई रिश्तेदारों को मंत्री बनाया. लेकिन गोटबाया परिवार के पास सत्ता अधिक दिनों तक टिक नहीं सकी.
गलत आर्थिक फैसलों के चलते मुश्किल में घिरा श्रीलंका
कोरोना महामारी और गलत आर्थिक फैसलों के चलते श्रीलंका आर्थिक संकट (Economic Crisis) में घिर गया. आवश्यक वस्तुओं की कमी और प्रचंड मुद्रास्फीति ने इस साल विरोध के महीनों में हजारों लोगों को सड़कों पर ला दिया. 9 मई को उनके समर्थकों की भीड़ द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के बाद महिंद्रा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री के रूप में पद छोड़ दिया. प्रदर्शनकारियों ने गोटाबाया राजपक्षे के आवास में धावा बोला और कोलंबो में प्रधानमंत्री के आवास में भी आग लगा दी. उस समय दोनों अपने आवास में नहीं थे.
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