Sri Lanka Economic Crisis: हाल के समय में एशिया के दो देश इकोनॉमिक क्राइसिस से गुजर रहे हैं. इनमें सबसे पहले है श्रीलंका (Sri Lanka) और फिर पाकिस्तान (Pakistan). दरअसल, भारत के दोनों पड़ोसी मुल्कों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है. हालांकि श्रीलंका में इकोनॉमिक क्राइसिस पिछले ही साल से चरम सीमा पर है. उनका विदेशी मुद्रा भंडार पूरी तरह से खत्म होने के कगार पर है. इसके बाद से वहां पर मुद्रस्फीति में भी बढ़ोतरी देखने को मिली. पिछले साल सितंबर में श्रीलंका का मुद्रस्फीति 73.7 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी थी.
इस समय श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से बेल आउट 2.9 मिलियन डॉलर के पैकेज मिलने की उम्मीद है, इसको देखते हुए श्रीलंका ने गुरुवार (16 फरवरी) को बिजली की कीमतों में 66 फीसदी की बढ़ोतरी की है. बिजली में बढ़ोतरी की घोषणा देश के इलेक्ट्रिसिटी और एनर्जी मिनिस्टर कंचना विजेसेकेरा ने की है.
पिछले साल 75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी
श्रीलंका की सरकार ने पिछले साल भी बिजली की कीमतों में 75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी. वहीं पिछले महीने जनवरी में श्रीलंका में इनफ्लेशन 54 फीसदी के ऊपर पहुंच गया है. इसके बाद बिजली की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने देश की जनता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है.
श्रीलंका में अगर आयकर की बात की जाए तो उसमें भी सरकार 36 फीसदी की बढ़ोतरी पहले से ही कर चुकी हैं. इलेक्ट्रिसिटी और एनर्जी मिनिस्टर कंचना विजेसेकेरा ने संवाददाताओं से कहा कि हम जानते हैं कि यह जनता, विशेष रूप से गरीबों के लिए कठिन होगा. श्रीलंका इकोनॉमिक संकट में फंस गया है और हमारे पास लागत-प्रतिबिंबित मूल्य निर्धारण की ओर बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
MF के शर्तो को पूरा करने के करीब
श्रीलंका के इलेक्ट्रिसिटी और एनर्जी मिनिस्टर ने कहा कि हमें उम्मीद है कि प्राइस बढ़ने वाले कदम के साथ श्रीलंका IMF की शर्तों को पूरा करने के करीब पहुंच गया है. वहीं कीमतों की बढ़ोतरी को लेकर सीलोन विद्युत बोर्ड के एक अधिकारी ने मूल्य वृद्धि के पैमाने की पुष्टि की.
IMF पिछले सात दशकों में अपने सबसे खराब इकोनॉमिक संकट से उबारने के लिए सितंबर में श्रीलंका को 2.9 बिलियन डॉलर का कर्ज देने पर सहमत हुआ, लेकिन यह सौदा शर्तों के साथ आया था, जिसमें टैक्स रेट को बढ़ाना, सब्सिडी को हटाना और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्ज में कटौती करना शामिल था. राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार, जिसने इकोनॉमिक मिसमैनेजमेंट के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध का सामना किया था.