Sri Lanka’s State Of Emergency: इस वक्त दो करोड़ 20 लाख की आबादी वाला भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका गंभीर गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट (Economic Crisis) में फंसा हुआ है. यहां बीते सात दशकों में ये सबसे खराब स्थिति है. इस देश के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) के अपनी सरकार के खिलाफ विद्रोह का सामना नहीं कर पाए और देश छोड़कर भाग खड़े हुए. उनके जाने के कुछ घंटों बाद ही कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) ने देशव्यापी आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर डाली. इससे पहले पिछले हफ्ते ही विक्रमसिंघे ने द्वीप राष्ट्र दिवालिया (Bankrupt) होने की घोषणा की थी. हालांकि यह पहली दफा नहीं है जब इस देश में आपातकाल लगाया गया है. इस देश के इतिहास में आपातकालों का दौर पहले भी रहा है. देखा जाए तो इस देश ने लगभग चार दशक तक आपातकाल का दंश झेला है. इस देश के इसी काले इतिहास के पन्ने आज हम पलटने जा रहे हैं जहां सत्ता ने अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए बार-बार आपातकाल का सहारा लिया. 


भागे राष्ट्रपति ने भी लगाया था आपातकाल


श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने 6 मई को आपातकाल की स्थिति घोषित की थी. यह कदम उन्होंने अभूतपूर्व आर्थिक संकट के लिए उन्हें दोषी ठहराने वाले नाराज प्रदर्शनकारियों की देशव्यापी हड़ताल के बाद 'सार्वजनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने' के लिए उठाया था. हालांकि लगभग दो सप्ताह बाद 21 मई इसे हटा लिया गया था. इससे पहले राष्ट्रपति ने 1 अप्रैल को आपातकाल घोषित किया था. तब हजारों प्रदर्शनकारी बिजली कटौती और आवश्यक वस्तुओं की कमी के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. प्रदर्शनकारियों ने राजधानी कोलंबो (Colombo) में राष्ट्रपति के निजी आवास में घुसने की कोशिश की. यह आपातकाल 14 अप्रैल को हटा लिया गया था. गौरतलब है कि राजपक्षे ने संकटग्रस्त राष्ट्र में आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी को रोकने के लिए बीते साल 2021 में 30 अगस्त को भी इस उपाय का सहारा लिया था. हालांकि इसे कुछ ही हफ्तों में आपातकाल हटा लिया गया.


श्रीलंका का पहला आपातकाल


श्रीलंका में पहली बार आपातकाल 1958 में लगाया गया था जब देश ने सिंहली भाषा नीति (Sinhala Only Language Policy) को अपनाया था. इसमें इस भाषा को ही पूरे देश की एक भाषा होने की बात थी. ब्रितानियों से इस देश को 1948 में आजादी मिली थी. इसके बाद जैसे इस द्वीप देश में आपातकाल का एक दौर सा चल पड़ा था. इसके बाद के 74 सालों में कई बार यहां आपातकाल लगाया जा चुका है. यहां 14 वीं सदी में सिंहली साम्राज्य का दबदबा रहा है. सिंहली शासन में श्रीलंका की राजधानी  श्रीजयवर्धनापुरा कोटे (Sri Jayawardenepura Kotte)थी. ये अब इस देश की प्रशासनिक राजधानी है. पुर्तगाली यहां 16 वीं शताब्दी में आए. इस साम्राज्य का इतना रौब था कि यहां तब पुर्तगालियों को भी मुंह की खानी पड़ी थी और उन्होंने अपनी राजधानी कोलंबो बना ली. 


1971 के बाद से कई दफा रहा आपातकाल का दौर


वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना के (Janatha Vimukthi Peramuna) विद्रोह के दौरान देश कई बार आपातकाल की स्थिति में था. इस देश ने एक ऐसे दौर का सामना भी किया है, जब लंबे वक्त यहां आपातकाल लगा रहा. सबसे लंबा दौर 27 साल के आपातकाल का रहा. यह साल 1983 जुलाई में शुरू हुआ था. श्रीलंका को इतना लंबा आपातकालआपातकाल लिट्टे (LTTE) आंदोलन की वजह से  झेलना पड़ा था. इससे यहां गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे. तमिल विरोधी इन दंगों के कारण श्रीलंका 27 वर्षों से लगातार आपातकाल की स्थिति में था. अगस्त साल 2011 तक यहां ये स्थिति बनी रही थी. हालांकि देश को इससे साल 1989 और 2001 में कुछ वक्त के लिए थोड़ी राहत मिली थी. इस वक्त और साल 2022 में लगाए आपाताकाल में एक बात एक सी है कि ये दोनों आपातकाल जुलाई महीने में लगे हैं. 


साल 2018 में भी लगा था आपातकाल


राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से पहले साल 2018 राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना (Maithripala Sirisena) के वक्त में भी श्रीलंका को आपातकाल का सामना करना पड़ा था. तब देश के कुछ भागों में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़के थे. तब हिंसा को रोकने के लिए आपाताकाल का सहारा लिया गया था. इस दौरान दो लोग मारे गए थे. यहां हालात अब भी ऐसे हैं कि आपातकाल से देश और जनता को छुटकारा नहीं मिल पा रहा है.


श्रीलंका में आपातकाल के कायदे


आपातकाल का मतलब है किसी भी देश पर संकट का आना. दुनिया के सभी देशों में इससे निपटने के लिए नियम-कायदे हैं. श्रीलंका में यहां के संविधान के अनुच्छेद 155 के तहत ये अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है. यहां भी हमारे देश की तरह देश को आंतरिक, बाहरी या आर्थिक खतरा होने की आशंका में राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं. श्रीलंका के 1947 सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश (1947 Public Security Ordinance-PSO) में इसे लागू करने के कानूनी अधिकारों का उल्लेख है. ये अध्यादेश राष्ट्रपति को आपातकाल के लिए नियम बनाने का भी हक देता है. जब साल 2005 में श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगामार का कत्ल हुआ था तब इस अध्यादेश में नए नियमों का समावेश भी किया गया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव और आलोचना झेलने के बाद श्रीलंका सरकार ने आपातकाल के अध्यादेश में कुछ बदलाव और संशोधन भी किया, जो नाकाफी ही साबित हुआ. यहां आपातकाल के नियम एक महीने तक मान्य होते हैं. अगर राष्ट्रपति को एक महीने या उससे ज्यादा वक्त तक आपातकाल लगाना हो तो उसे 14 दिनों में देश की संसद की मंजूरी लेना जरूरी होता है. संसद में प्रस्तुत न होने की स्थिति में आपातकाल हट जाता है. 


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