कोलंबो: श्रीलंका में रविवार को हुए आठ सिलसिलेवार धमाकों में मरने वालों का आंकड़ा 310 के पार पहुंच चुका है. इस आतंकी हमले के घावों पर मरहम लगाने में जुटे इस द्वीप देश के लिए चिंता की खबर यह है है कि अभी और धमाकों का खतरा टला नहीं है. श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि अब भी कुछ लोग विस्फोटकों के साथ घूम रहे हैं जिन्हें पकड़ने की कोशिशें जारी हैं.


मंगलवार शाम एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान एबीपी न्यूज के सवाल पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने कहा कि अब भी कुछ लोग विस्फोटकों के साथ बाहर हैं, उन्हें पकड़ने की कोशिश जारी है. वहीं एबीपी न्यूज के एक अन्य सवाल के जवाब में श्रीलंकाई प्रधानमंत्री ने इस बात की भी तस्दीक की कि रविवार को हुए हमले के निशाने पर भारतीय उच्चायोग और कुछ अन्य भारतीय संपत्तियां भी थी, उन्होंने कहा कि हमारे पास मौजूद रिपोर्ट यही बताती हैं. खुफिया सूत्रों के मुताबिक कोलंबो स्थित भारतीय दूतावास के अलावा ताज समुद्र होटल भी था. हालांकि आतंकी अतिरिक्त सुरक्षा इंतजामों के मद्देनजर इस होटल में दाखिल नहीं हो पाए.


इस बीच सूत्रों के मुताबिक भारत ने काफी दिन पहले ही श्रीलंका सरकार को संभावित आतंकी हमले को लेकर खुफिया जानकारी दी थी. वहीं भारतीय सूत्र बताते हैं कि अभी भी खतरा टला नहीं है, भारतीय संपत्तियां अब भी निशाने पर हैं. लिहाजा राजनयिक मिशन में मौजूद स्टाफ और अन्य संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है.


हालांकि भारतीय मिशन और ताज होटल भले ही बच गए हों लेकिन रविवार के सिलसिलेवार 8 बम धमाकों में सबसे ज्यादा नुकसान भारत ने झेला है. अब तक ११ भारतीयों के मारे जाने की तस्दीक हो गई है जिसमें से आठ लोग अकेले कर्नाटक के हैं. सूत्र बताते हैं कि कर्नाटक से छुट्टियां मनाने आए ये लोग शांगरी ला होटल के रेस्त्रां में इस जगह से सबसे करीब की टेबल पर ही बैठे थे जहां आत्मघाती हमलावर ने अपने को उड़ा लिया. ईस्टर के त्यौहार पर चर्च और होटलों को निशाना बनाते हुए इस हमले में 35 से ज्यादा विदेशी नागरिक मारे गए. सूत्र इस बात को मानते हैं कि अगर आतंकी हमलावर ताज होटल में दाखिल होने में कामयाब हो जाता तो भारतीय जानों का नुकसान इससे कहीं ज्यादा हो सकता था.


इस बीच श्रीलंका की फिजां में तनाव का आलम यह है कि अधिकतर बड़े बाजार और मॉल बंद हैं. सड़कों को यातायात भी काफी कम है. वहीं गाहे-बगाहे किसी वाहन में बम का शक होने से हड़कंप मच जाता है. मंगलवार शाम को सभी पुलिस थाने को विस्फोटकों से लदे एक वाहन को लेकर अलर्ट किया गया. वहीं ताज समुद्र होटल के बाहर एक संदिग्ध गाड़ी की खबर के बाद बम डिस्पोजल स्क्वाॉड और स्पेशल टास्कफोर्स की टीमें पहुंच गई. हालांकि बाद में संदिग्ध वाहन में कुछ नहीं मिला.


सूत्र बताते हैं कि भारत की तरफ से लगातार श्रीलंका सरकार के साथ खुफिया सूचनाओं की साझेदारी जारी है. इसके अलावा भारत २१ अप्रैल के हमले की जांच में हर तरह के सहयोग की पेशकश कर चुका है. श्रीलंका के नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोवाल के फोन संपर्क के दौरान भारत ने मदद के इस प्रस्ताव को जाहिर भी किया.


हालांकि इस बीच यह सवाल रह रह के उठ रहे हैं कि भारत से मिली पुख्ता पूर्व सूचना के बावजूद श्रीलंका में इस भीषण हमले पर आखिर क्यों कोई कार्रवाई नहीं की गई. इस बीच दुनिया के दुर्दांत आतंकी संगठन आईएसआईएस के श्रीलंका में हमले की जिम्मेदारी लेने ने हालात को और पेचीदा बना दिया है. करीब तीन साल पहले ढाका के होली बेकरी में हुए आतंकी हमले की तरह श्रीलंका के हमले ने दक्षिण एशिया को हिला दिया है.


श्रीलंका के उप रक्षा मंत्री रुवान विजेवर्धने ने संसद में दिए बयान में कहा कि न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में १५ मार्च को हुए हमले का बदला लेने के लिए तौहीद जमात ने इस हमले को अंजाम दिया. विजेवर्धने ने तौहीद जमात के साथ जुड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसमें जेएमआई नामक आतंकी गुट भी शामिल था. हालांकि इस संगठन के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने जेएमआई के बारे में अधिक कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. ऐसे में फिलहाल इस गुट की असली पहचान को लेक केवल कयास ही लगाए जा रहे हैं कि.


श्रीलंका के राजनीतिक हालात ने भी स्थिति की जटिलता को और बढ़ाया है. बीते आठ महीनों से प्रधानमंत्री औऱ राष्ट्रपति के बीच चल रहे तनाव के चलते स्थिति यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी सरकार के भीतर गहरे मतभेद हैं. सोमवार को मीडिया से बातचीत में श्रीलंका सरकार के मंत्री रजिथा श्रीसेना ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति के अगुवाई वाली राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे और उनके मंत्रियों को अक्सर अंधेरे में रखती है. श्रीलेना के मुताबिक बम धमाकों के बाद राष्ट्रपति के देश के होने के कारण जब प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई तो अधिकारियों ने आने से ही इनकार कर दिया.