Rajapaksa Dynasty In Sri Lanka's Politics: श्रीलंका के हालात पूरी दुनिया के लिए चिंता बने हुए हैं. इस देश को इस संकट की तरफ धकेलने वाला और कोई नहीं बल्कि एक ऐसा शख्स है, जो वंशवाद (Dynasty) की राजनीति की उपज है. हम यह नहीं कहते कि वंशवाद की राजनीति हमेशा ही बेड़ा गर्क करती है, लेकिन सत्ता की हनक वैसे ही है जैसे कि शेर के मुंह में खून लग जाना. एक बार सत्ता में आने के बाद यह किसी नशे की तरह सिर चढ़कर बोलती है. यही वजह है कि कई बार इस्तीफे की मांग के बाद भी गोटाबाया राजपक्षे  (Gotabaya Rajapaksa) राष्ट्रपति का पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. उनके वंश को दक्षिण एशिया (South Asia ) में भाई-भतीजेवाद (Nepotism) को पालने-पोसने के लिए जाना जाता है. उनके परिवार के इस रवैये की वजह से आज श्रीलंका में हाहाकार मचा है. इसी राजपक्षे वंश के उत्थान से लेकर पतन पर भारत के इस पड़ोसी देश की राजनीति घूमती हैं तो आज हम आपको इसी राजपक्षे वंश की कहानी बताने की कोशिश कर रहे हैं. 


पिता से मिली से राजनीतिक विरासत


गोटाबाया राजपक्षे के खून में राजनीति शायद उनके जन्म से ही दौड़ रही थी. इसकी एक बड़ी वजह उनका जन्म है. गोटबाया राजपक्षे का जन्म मतारा (Matara) जिले के पलातुवा (Palatuwa) में नौ भाई-बहनों में पांचवें भाई के तौर हुआ था. उनका पालन-पोषण हंबनटोटा (Hambantota) के दक्षिणी ग्रामीण जिले के वीरकेतिया (Weeraketiya) में हुआ था. गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के एक मशहूर राजनीतिक परिवार से आते हैं.


20 जून 1949 को वह डी.ए. राजपक्षे (D.A. Rajapaksa ) और दिसानायके (Dissanayake) के घर जन्में थे. गोटाबाया के दादा डॉन डेविड राजपक्षे विदनाराची (Don David Rajapaksa Vidanarachchi) इस देश के औपनिवेशिक सामंती पद पर रहे थे. उनके पिता  डी.ए. राजपक्षे ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाया. वह एक प्रमुख राजनेता, संसद सदस्य, स्वतंत्रता सेनानी और विजयानंद दहनायके (Dahanayake) की सरकार में कृषि और भूमि मंत्री थे, उन्होंने श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (Sri Lanka Freedom Party) बनाई थी.


गोटाबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) पहली बार इस पार्टी के सदस्य के तौर पर संसद के लिए चुने गए थे. उनके भाई महिंदा में वह 2004 में प्रधानमंत्री और 2005 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने. राजपक्षे के परिवार के 73 वर्षों के इतिहास में उनके दादा से लेकर ताऊ डॉन मैथ्यू राजपक्षे (Don Mathew) से लेकर चाचा, भाई-बहन तक श्रीलंका की राजनीति में छाए रहे. अब गोटाबाया राजपक्षे अपने परिवार की इस राजनीतिक परंपरा को आगे बढ़ा रहे है और इस राजनीतिक विरासत को वो कतई छोड़ना नहीं चाहते हैं. यही वजह है कि राष्ट्रपति पद का मोह उनसे छुड़ाए नहीं छूट रहा.


उनके भाई महिंदा (Mahinda), बासिल ( Basil) और चमल (Chamal) भी सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. उनके शासन उनके सबसे छोटे भाई बासिल आर्थिक विकास के प्रभारी मंत्री थे जो श्रीलंका में सभी निवेशों को नियंत्रित करते थे. सबसे बड़े भाई चमल स्पीकर थे. उनके अन्य भाई-बहनों में तुलसी, गांधीनी, जयंती, प्रीति, डुडले राजपक्षे और चंद्र ट्यूडर राजपक्षे शामिल हैं.


गोटाबाया का राजनीतिक कद और सैन्य करियर 


गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के 8वें राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने 13 जुलाई, 2022 को देश में हाल के राजनीतिक संकट के बीच मालदीव चले गए. श्रीलंका के इस राष्ट्रपति की कुल संपत्ति 10 मिलियन डॉलर आंकी गई है और देश के आर्थिक संकट में डूबने के बाद पूरे देश में व्यापक विरोध के कारण श्रीलंकाई राष्ट्रपति की इस संपत्ति की जमकर आलोचना की जा रही है. आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका के कुछ हिस्सों में मार्च में ही विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. 31 मार्च की रात को प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे के निजी आवास को आग के हवाले कर दिया और बाद में ये प्रदर्शन आगे हिंसक होता गया.


पूरा नाम नंदसेना गोटाबाया राजपक्षे


गोटाबाया राजपक्षे का पूरा नाम नंदसेना गोटाबाया राजपक्षे है. श्रीलंका की राजनीति में उनका कद भी उनके नाम जैसा ही बड़ा है. वह एक राजनेता और एक पूर्व सैन्य अधिकारी हैं, जिन्होंने 2019 से 2022 तक श्रीलंका के आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. गौरतलब है कि साल 2009 में लिट्टे (LTTE) की सैन्य हार के वक्त वह अपने भाई महिंदा राजपक्षे की सरकार में रक्षा सचिव थे. हालांकि उन्होंने सेना से जल्दी रिटायरमेंट ले लिया था. साल 1998 में संयुक्त राज्य अमेरिका जाने से पहले सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रहे थे.


पहले कोई निर्वाचित पद नहीं संभाला


गोटबाया राजपक्षे अपने राष्ट्रपति अभियान में अपने भाई की सहायता के लिए 2005 में श्रीलंका लौट आए. उनकी राजनीति में सक्रियता इस कदर थी कि वह साल 2018 में श्रीलंका के  2019 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में उभरे थे, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक लड़ा था. गोटबाया राजपक्षे 2019 में सैन्य पृष्ठभूमि वाले श्रीलंका के पहले राष्ट्रपति बने और पहले कोई निर्वाचित पद नहीं संभालने वाले पहले राष्ट्रपति होने का तमगा भी उनके नाम गया.


इस्तीफे की थी सूचना


श्रीलंका के मौजूदा संकट के चलते  9 जुलाई, 2022 को, गोटबाया राजपक्षे ने संसद के अध्यक्ष को अपने 13 जुलाई, 2022 पद से इस्तीफा देने की सूचना दी. उन्होंने अपने जीवनसाथी के तौर पर इओमा राजपक्षे (Ioma Rajapaksa) को चुना. उनका एक बेटा बेटा मनोज राजपक्षे है जिसने 2011 में सेवावंडी लियानाराची से शादी रचाई और वो कैलिफोर्निया सिस्टम इंजीनियर है.


सेना में दी थी सेवा


गोटाबाया ने 1971 से लेकर 1991 में सेना में अपनी सेवाएं दी. वह 26 अप्रैल, 1971 को कैडेट अधिकारी के रूप में श्रीलंकाई सेना में शामिल हुए थे, जब देश अभी भी ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का प्रभुत्व था और 1971 के जेवीपी (JVP ) विद्रोह के बीच में था. सेना के बाद  गोटाबाया राजपक्षे ने कोलंबो विश्वविद्यालय से सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की पढ़ाई की और  1998 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए.


 राजपक्षे वंश का सत्ता अभियान


11 अगस्त, 2019 को पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व में श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (Peramuna Podujana)ने घोषणा की कि गोटबाया राजपक्षे 2019 के राष्ट्रपति चुनावों के लिए उनके उम्मीदवार होंगे. गोटबाया राजपक्षे ने द्वीप के मुख्य रूप से सिंहली इलाकों में बहुमत हासिल किया और राष्ट्रपति चुने गए. इन इलाकों में मतारा, गाले, कालूतारा और बादुल्ला जिले शामिल थे, जबकि विपक्षी उम्मीदवार साजिथ प्रेमदासा ने तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में बहुमत हासिल किया जो गृहयुद्ध से प्रभावित इलाका है.


नई सहस्राब्दी के पहले दो दशक राजपक्षे वंश के उदय (Rise) के गवाह रहे हैं. चार साल पहले के 2015 चुनाव की हार के बाद 2018-19 उन्होंने सत्ता में शानदार वापसी की. महिंदा राजपक्षे की सत्ता साल 2004 में चमकनी शुरू हुई.जब उन्हें चंद्रिका कुमारतुंगा भंडारनायके ( Chandrika Kumaratunga Bandaranaike) ने उन्हें पीएम का पद सौंपा. इसके बाद गोटाबाया के महिंदा अजेय रहे.


उन्होंने 2005 का राष्ट्रपति चुनाव जीता, और फिर लिट्टे के खिलाफ उत्तर और पूर्व जंग का एलान किया. लिट्टे(LTTE) पर जीत ने राजपक्षे की सत्ता हनक बढ़ा दी. इसके बाद सिंहली के दक्षिण (Sinhalese south) में महिंदा और गोटाबाया बहुसंख्यक सिंहल-बौद्ध समुदाय में भगवान की तरह लिए गए. इसका नतीजा महिंदा ने राष्ट्रपति के दूसरा कार्यकाल हासिल किया.


इस दौरान दो-अवधि (Two-Term ) के प्रतिबंध को हटाने के लिए संविधान में संशोधन किया. उन्हें विश्वास था कि वह आजीवन राष्ट्रपति रहेंगे. महिंदा के रक्षा सचिव के रूप में गोटबाया एक बराबर पावर हाउस बन कर उभरे. 


राजनीति में वंशवाद की परंपरा श्रीलंका के पड़ोसी देश में भी


यह आश्चर्य की बात है कि केवल श्रीलंका में ही नहीं बल्कि उसके पड़ोसी देशों में भी राजनीति में वंशवाद की परंपरा है. भारत (India) में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और यूपीए (UPA )को लीड करने वाला घराना भी राजनीति में वंशवाद का उदाहरण है. यहां यह परंपरा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) से लेकर उनकी बेटी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) तक पहुंची. इसके बाद उनके बेटे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi)और संजय गांधी ( Sanjay Gandhi ) ने इस वंश को राजनीति में आगे बढ़ाया. अब नेहरू के परपोते-पोती राहुल गांधी (Rahul Gandhi ) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)ने अपनी राजनीतिक विरासत को बचा कर रखा है.


उधर पाकिस्तान (Pakistan) में भुट्टो परिवार में भी राजनीति में वंशवाद चला आ रहा है. जुल्फ़िक़ार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और इसके बाद उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो (Benazir Bhutto) पाकिस्तान की दो बार प्रधानमंत्री रही थी. अब उन्हीं बेनजीर के बेटे पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री हैं. बिलावल के पिता आसिफ़ अली ज़रदारी (Asif Ali Zardari) पाकिस्तान के 11 वें राष्ट्रपति का पद संभाल चुके हैं. 


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