Sri Lanka's President Gotabaya Rajapaksa Resign: आर्थिक संकट, विद्रोह और प्रदर्शनों का सामना कर रहे श्रीलंका में अशांति का दौर थमने में नहीं आ रहा. भारत के इस पड़ोसी देश को इस स्थिति की तरफ धकेलने वाले राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने आखिरकार इस्तीफा (Resign) दे दिया है. इससे पहले उन्होंने 13 जुलाई को ही इस्तीफा देने की बात कही थी. हालांकि उन्होंने आज इस्तीफे का एलान किया है. 


खबर है कि इस्तीफे के बाद वो सिंगापुर पहुंच चुके हैं. मौजूदा वक्त में वहां कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) ने आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी है. यहां विद्रोह प्रदर्शनों से निपटने के लिए सेना और पुलिस को खुली छूट दे दी गई है. ऐसे में श्रीलंका में आगे भी शांति बहाल होने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. दूसरी तरफ गो गोटा गो (Go Gota Go) के प्रदर्शनकारियों की मांग को देश की सत्ता में काबिज लोगों ने पूरी तरह से नकार दिया है. प्रदर्शनकारी राजपक्षे और विक्रमसिंघे में से किसी को भी सत्ता में दोबारा नहीं देखना चाहते हैं. श्रीलंका सत्ता पर घमंड का नशा छा जाने और उसके खतरनाक नतीजों का बेहतरीन उदाहरण है. यहां जानते हैं कैसे बद से बदतर होते गए यहां के हालात. 


साल 2022 शुरुआत से ही बिगड़ने लगे थे हालात


2.2 करोड़ की आबादी वाला देश श्रीलंका में मौजूदा संकट तुरंत ही नहीं पैदा हो गया. यहां के हालात कोविड महामारी के बाद से ही बिगड़ने शुरू हो गए थे. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आती गई. हालात ये हो गई कि देश के पास दवाई, ईंधन आयात करने के लिए तक विदेशी मुद्रा की कमी पड़ने लगी. मई में सात करोड़ 80 लाख डॉलर की कर्ज की किश्त श्रीलंका के गले की फांस बन गई. उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लगभग 3.5 अरब डॉलर की बेलआउट राशि की मांग कर डाली और इस सबके लिए वहां की जनता ने केवल और केवल वहां के सत्ताधारियों के बेसिर-पैर की फैसले जवाबदेह ठहराया. आज जनता सड़क पर उतर आई है,वह अपनी परेशानियों का जवाब कभी राष्ट्रपति भवन में कब्जा कर तो कभी पीएम आवास में आग लगाकर तलाश रही है. देश के टीवी चैनल्स को भी जनतंत्र ने नहीं बख्शा है. सरकार के बस में जनता पर निगरानी रखने के लिए सेना-पुलिस, हवाई फायर, आंसू गैस और हेलीकॉप्टर और आपातकाल का ही विकल्प ही बचा रह गया.


अप्रैल में भी लगी थी अस्थाई इमरजेंसी


आज पहली बार नहीं है जब श्रीलंका में आपातकाल की घोषणा की गई है, इसके पहले इस्तीफा देने वाले राष्ट्रपति और देश में इस संकट के सूत्रधार गोटाबाया राजपक्षे ने अप्रैल में भी अस्थाई तौर पर आपातकाल लगाया था. इस दौरान भी बाया राजपक्षे ने आपातकाल की अस्थायी स्थिति की घोषणा की थी. इस वक्त भी सुरक्षा बलों को सरकार की तरफ से खुली छूट दी गई थी. वह संदेह के आधार पर ही आम नागरिक को हिरासत में लेने के साथ ही गिरफ्तार कर सकते थे. हालात इतने बदतर हो गए की देर रात हुई एक बैठक में  लगभग सारी कैबिनेट ने इस्तीफा दिया. इससे राष्ट्रपति राजपक्षे  और उनके भाई महिंदा जो देश के प्रधानमंत्री थे पूरी तरह से अकेले रह गई. रही-सही कसर केंद्रीय बैंक के गवर्नर के इस्तीफे की घोषणा ने पूरी कर दी. इसके बाद तो जैसे यहां इस्तीफों का दौर सा चल पड़ा. पद ग्रहण करने एक दिन बाद ही वित्त मंत्री अली साबरी ने इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति के पहले सहयोगी रहे दलों ने उनसे तब ही इस्तीफा देने का अनुरोध किया था, लेकिन राजपक्षे कहा माननने वाले थे वह अपने पद पर डटे रहे. हालांकि इसके बाद उन्होंने आपातकाल हटा दिया था. इसके बाद देश में जीवन रक्षक दवाओं की बेहद कमी हो गई. हालांकि इस दौरान भी जनता का गुस्सा विद्रोह प्रदर्शनों के तौर पर लगातार फूटता रहा. इस दौरान पुलिस की गोली से एक प्रदर्शनाकारी मारा गया और हालात और खराब होते चले गए.


इस बड़े कदम से भी नहीं हुआ गुस्सा शांत


मई में सरकार समर्थकों और प्रदर्शनकारी आपस में भिड़ गए. ये हालात तब संजीदा हो गए जब दोनों तरफ के लोग हिंसा पर उतर आए और नौ लोगों की मौत हो गई. नतीजन भीड़ ने इसके लिए जवाबदेह लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया. हिंसा की वजह बने लोगों के घरों को आग के हवाले करने में जनता ने कोई कसर नहीं छोड़ी. कई सांसदों के घर आग के हवाले कर दिए गए. ये सब देखते हुए महिंदा राजपक्षे महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. हजारों की संख्या में लोग कोलंबो (Colmbo) में प्रधानमंत्री के घर में घुस गए. अगर सैनिक उन्हें बचाने नहीं आते तो शायद वो प्रदशर्नकारियों (Protesters) के गुस्से की भेंट चढ़ गए होते. इसके बाद रानिल विक्रमसिंघे को पीएम बनाया गया, लेकिन जनता को सरकार का ये फैसला भी रास नहीं आया. देश में कर्फ्यू  का एलान करने के साथ ही रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों को लूटपाट या जिंदगी को हानि में शामिल किसी भी शख्स को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए. प्रदर्शनकारियों ने सरकार की एक नहीं सुनी और कर्फ्यू  का उल्लंघन किया. कोलंबो में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को मारमीट कर उनकी वाहन को आग लगा दी गई. अंत में हारकर सरकार को कर्फ्यू  हटाना पड़ा. हालात इतने खराब हो गए कि संयुक्त राष्ट्र (UN) ने श्रीलंका में  गंभीर मानवीय संकट की चेतावनी दे डाली. 


जब लगी ईंधन की बिक्री पर रोक


देश के बिगड़ते हालातों के बीच ईंधन की कमी ने आग में घी डालने का काम किया 27 जून को श्रीलंका की सरकार ने आवश्यक सेवाओं को छोड़कर पेट्रोल की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा की. इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया कि देश में लगभग ईंधन खत्म हो गया है. इसके बाद तो जैसे जनता आपे से बाहर हो गई. इसके 12 दिनों बाद ही देश के कोने-कोने से लोग कोलंबो में राष्ट्रपति भवन की तरफ अपना विरोध जताने के लिए चल पड़े. हालांकि सूचना पहले ही मिल जाने से राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे शुक्रवार 8 जुलाई को ही वहां से निकल गए. गौरतलब है कि राजपक्षे पर मार्च से ही इस्तीफा देने का दबाव था. अप्रैल में प्रदर्शनकारियों के उनके कार्यालय के प्रवेश द्वार पर कब्जा करने के बाद से ही वह राष्ट्रपति भवन को अपने आवास और कार्यालय की तरह इस्तेमाल कर रहे थे. विद्रोह की आशंका को देखते हुए उस दौरान वहां कर्फ्यू  लगाया गया था, लेकिन इसका कोई असर नाराज प्रदर्शनकारियों पर नहीं पड़ा. गोटा गो होम के नारों के साथ जनता राष्ट्रपति भवन पर काबिज हो गई. प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करते हुए मध्य कोलंबो के अति सुरक्षा वाले फोर्ट इलाके में अवरोधकों को हटाकर यहां पहुंच गए. उस दौरान यहां से आई कई  वीडियो फ़ुटेज में प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में लगी कुर्सियों और स्वीमिंग पूल नहाते और वहां के किचन में रॉयल लंच का लुत्फ उठाते देखे गए.


आनन-फानन में बुलाई गई स्पीकर के घर बैठक


शनिवार नौ जुलाई को हुए इस उपद्रव से सत्ताधारियों की चूलें हिल गई और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्धने (Mahinda Yapa Abeywardena) के घर पर पार्टी नेताओं की आपात बैठक बुलाई गई. इस बैठक में देश में सर्वदलीय सरकार बनाने और राष्ट्रपति गोटाबाया सहित पीएम रानिल विक्रम सिंघे (Ranil Wickremesinghe) भी इस्तीफा देने की बात कहीं थी. इसी बैठक में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के 13 जुलाई को इस्तीफा देने की घोषणा की गई थी, लेकिन प्रदर्शनकारी इस पर भी शांत नहीं हुए और उन्होंने प्रधानमंत्री के घर में भी आग लगा दी और कर उस पर कब्जा कर लिया. यहां से भी प्रदर्शनकारियों के कई वीडियो सामने आए थे. इसमें पीएम के एंटीक बेड पर प्रदर्शनकारियों की मॉक कुश्ती एक वीडियो खासा वायरल हुआ. राष्ट्रपति गोटाबायाा में अफवाहें थीं कि वह एक नौसैनिक जहाज या विमान से देश छोड़कर भाग गए हैं या एक सैन्य शिविर में छुपे हुए हैं. हालांकि वह मंगलवार 5 जुलाई  के बाद से ही सार्वजनिक तौर पर नहीं देखे गए थे. राष्ट्रपति राजपक्षे अपनी वाइफ और दो बॉडीगार्ड के साथ मालदीव भाग गए हैं. उन्हें 13 जुलाई को इस्तीफा देना था. पीएम रानिल विक्रमसिंघे के देश में आपातकाल घोषणा करने के बाद वहां विरोध प्रदर्शन और तेज हो गए हैं.  


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