कोलंबो: भारत के दक्षिण और हिंद महासागर के उत्तरी भाग में एक छोटा-सा द्वीप है, जो पहाड़ों की चोटियों और तटीय मैदानों को अपने सीने में समेटे अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए दुनिया को अपनी ओर खींचता है. बड़ी संख्या में दुनियाभर के सैलानी इस द्वीप की सैर करने के लिए आते हैं. ये द्वीप कभी 'सीलोन' के नाम से भी जाना जाता था. आज इसे श्रीलंका के नाम से जाना जाता है. लेकिन, आज ये देश अपनी खूबसूरती नहीं, बल्कि चरमपंथी हमले के लिए सुर्खियों में है. हालांकि, ये देश अपने अतीत में भी इस तरह की हिंसा को समेटे हुए है, लेकिन इस बार का चरमपंथी हमला बिल्कुल अलग है, क्योंकि हमले में चर्च को निशाना बनाया गया है.


आज ईसाईयों के पवित्र त्योहार ईस्टर के मौके पर देश की राजधानी कोलंबो और बाहरी इलाकों में एक के बाद एक 8 सिलसिलेवार बम धमाके हुए. अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, 190 जानें जा चुकी हैं और करीब 500 लोग जख्मी हुए हैं, जिनमें कई की हालत गंभीर है. ऐसे में आशंका है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है.


आइए इस घटना के बीच श्रीलंका के अतीत में चरमपंथी हमले और अलगाववादी इतिहास और धार्मिक ताने-बाने की तह में जाते हैं.


श्रीलंका का परिचय
ये देश एक द्वीप है यानि चारों तरफ पानी ही पानी है. चारों ओर समुद्र से घिरे होने की वजह से यहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है. यानि यहां गर्मी खूब पड़ती है. ये दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश भारत का पड़ोसी है. इसका क्षेत्रफल 65,610 वर्ग किलोमीटर है.


धार्मिक ताना-बाना
2.1 करोड़ की जनसंख्या वाले श्रीलंका में 70 फ़ीसदी से अधिक सिंहला, 12 फ़ीसदी तमिल हिंदू और तकरीबन 10 फ़ीसदी मुस्लिम और 6 फीसदी ईसाई आबादी हैं. सिंहला की अधिकतर आबादी बौद्ध है. देश में कानून और संविधान में सिंहला को प्राथमिकता दी गई है.


चरमपंथी और अलगाववादी इतिहास
श्रीलंका में अलगाववाद का इतिहास काफी पुराना है, जबकि हाल के सालों में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं भी अंजाम दी गई हैं. अल्पसंख्यक मुसलमानों को बौद्ध चरमपंथियों ने अपने हमले का निशाना बनाया है. श्रीलंका में चरमपंथी संगठन 'बोदु बला सेना' ने बीते चंद सालों में मुसलमानों के विरुद्ध कई हिंसा की घटना को अंजाम दिया है. 'बोदु बला सेना' एक चरमपंथी और कट्टरपंथी बौद्ध संगठन है. ये संगठन मुस्लिम विरोधी अभियान चलाने के लिए जाना जाता है. इस संगठन पर मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान माहौल खराब करने के आरोप भी लग चुके हैं.


तमिल पृथकतावाद
श्रीलंका के इतिहास का सबसे काला अध्याय तमिल पृथकतावादी अभियान और इससे जुड़ी हिंसा का दौर है. श्रीलंका में 1980 के दशक में तमिल पृथकतावादी अभियान ने जोर पकड़ा और इस दौरान देश गृह युद्ध की स्थिति में आ गया. 'लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम' यानि लिट्टे या 'तमिल टाइगर्स' ने उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में अलग तमिल राज्य की स्थापना को लेकर आंदोलन किया है और ये सशस्त्र संघर्ष 30 साल तक चला. इस हिंसा के दौरान सिंहला और तमिल समुदायों के बीच भी संघर्ष हुआ. श्रीलंका सेना द्वारा मई 2009 में लिट्टे को हराया गया. तभी श्रीलंका सेना ने विद्रोही नेता प्रभाकरण को मौत के घाट उतार दिया. इस गृह युद्ध में 1.5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए.


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