श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने मंगलवार देर रात आपातकाल को तत्काल प्रभाव से हटा दिया. देश में बढ़ते संकट के बीच एक अप्रैल को आपातकाल लागू किया गया था. मंगलवार देर रात जारी गजट अधिसूचना संख्या 2274/10 में राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने आपातकाल नियम अध्यादेश को वापस ले लिया है, जिससे सुरक्षाबलों को देश में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए व्यापक अधिकार मिले थे.


सत्ता पर कमजोर हुई राजपक्षे की पकड़!
इससे पहले राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाले श्रीलंका के सत्तारूढ़ गठबंधन की मुश्किलें मंगलवार को तब और बढ़ गई थीं, जब नव-नियुक्त वित्त मंत्री अली साबरी ने इस्तीफा दे दिया. उनके अलावा दर्जनों सासंदों ने भी सत्तारूढ़ गठबंधन का साथ छोड़ दिया. उधर देश के सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौरान राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला भी जारी रहा.


राष्ट्रपति राजपक्षे ने अपने भाई बासिल राजपक्षे को बर्खास्त करने के बाद साबरी को नियुक्त किया था. बासिल सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन के भीतर आक्रोश की मुख्य वजह थे. राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र में साबरी ने कहा कि उन्होंने एक अस्थायी उपाय के तहत यह पद संभाला था.


गिर जाएगी सरकार?
सत्तारूढ़ गठबंधन ने 2020 के आम चुनावों में 150 सीटें जीती थीं और विपक्ष के सदस्यों के पाला बदलने से उसकी संख्या में और बढ़ोतरी हुई थी. हालांकि, इनमें से 41 सांसदों ने समर्थन वापस ले लिया है. इन 41 सासंदों के नामों की घोषणा उनके दलों के नेताओं ने संसद में की. 


वह अब स्वतंत्र सदस्य बन गए हैं, जिससे राजपक्षे के खेमे में सासंदों की संख्या 113 से कम हो गई है, जो 225 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिये जरूरी है. हालांकि, सरकार ने दावा किया कि उसके पास साधारण बहुमत है. 


आर्थिक संकट
बता दें कि श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी लाइन, आवश्यक वस्तुओं की कम आपूर्ति और घंटों बिजली कटौती से जनता महीनों से परेशान है.


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