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H1-B वीजा इस्तेमाल करने की बजाय लोकल टैलेंट को मौका दे भारतीय आईटी कंपनियां: नारायण मूर्ति
नई दिल्ली: अमेरिका फर्स्ट नीति पर चलते हुए ट्रंप सरकार ने H1B वीज़ा को लेकर जो फैसले लिए हैं उसपर भारत की दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के को-फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति ने कई बड़े बयान दिए हैं. उन्होंने कहा है कि भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों को भारतीयों को H1B वीज़ा पर अमेरिका भेजना बंद करना चाहिए. वहीं उनका मानना है कि नए नियमों के बाद अमेरिका में भारतीयों को नहीं बल्कि अमेरिका के लोकल टैलेंट को नौकरी देने पर ज़ोर होना चाहिए.
भारतीय कंपनियों के रुख पर बड़ा बयान देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय कपंनियों का रुख हमेशा आसान विकल्प चुनने का रहा है. उन्होंने आगे कहा कि बहु-सांस्कृतिक बनना आसान नहीं बल्कि बेहद कठिन विकल्प है. वे कहते हैं, "उन्हें (भारतीय कंपनियों को) अमेरिका में अमेरिका के लोगों को, कनाडा में कनाडा के लोगों को और ब्रिटेन में ब्रिटेन के लोगों को नौकरी देने पर ज़ोर देना चाहिए. ये एक मात्र रास्ता है जिससे हम सच में मल्टीनेशनल कंपनी बन सकेंगे. हमें H1B वीज़ा का इस्तेमाल बंद करना चाहिए और बड़ी संख्या में भारतीयों को अमेरिका में सेवा देने के लिए भेजना भी बंद करना चाहिए."
नारायण मूर्ति का मानना है कि भारतीय कंपनियों में भर्तियां देश के कॉलेजों से होनी चाहिए और यहां के लोगों को इसके लिए ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. वहीं उन्होंने भारतीय कंपनियों को महत्व दिया जाने की भी बात कही है. नारायण मूर्ति ये सारी बातें उन चिताओं के बीच कही हैं जो ट्रंप की नई H1B वीज़ा नीति के बाद भारतीय कंपनियों को सता रही है.
एक और बिल के लाए जाने ने से यही चिताएं और बढ़ गई हैं. दरअसल यूएस में Lofgren Bill नाम का एक विधेयक लाया गया है. इस बिल के सहारे H1B वीज़ा वाले कर्मचारियों की सैलरी दोगुनी करने की कोशिश है. अभी H1B वीज़ा होल्डर्स को 60,000 डॉलर्स मिलते हैं लेकिन इस बिल के पास होने के बाद ये रकम 120,000 डॉलर हो जाएगी. इससे आईटी कंपनियों की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं.
बीज़ा नियमों में कोई बदलाव भारत की 110 बिलियन डॉलर वाली आईटी इंडस्ट्री पर बेहद प्रभावकारी साबित हो सकता है. नरायणमूर्ति ने इसी से जुड़े एक बयान में कहा कि अगर H1B वीज़ा नियमों में बदलाव होते हैं तो हमें इसे अवसर की तरह देखना चाहिए ना कि किसी अवरोध की तरह. भारतीय कंपनियों को इन नियमों के बदलने के बाद बहु-सांस्कृतिक बनने की कोशिश करनी चाहिए.
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