Taiwan Elections: चीन संग तनाव के बीच ताइवान में चुनाव, कौन हैं उम्मीदवार और क्यों दुनिया की टिकी है इस इलेक्शन पर निगाहें?
Taiwan Election News: चीन के साथ तनातनी के बीच ताइवान में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव के लिए कई सारे उम्मीदवार मैदान में हैं.
Taiwan Election: ताइवान में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए अभी से ही तैयारियां शुरू हो गई हैं. ताइवान में 13 जनवरी, 2024 को वोटिंग होगी, जिसके लिए उम्मीदवारों ने अपना नामांकन कर दिया है. भले ही इस द्वीपीय देश की गद्दी पर जिस भी नेता को आसन होने का मौका मिले, मगर उसके लिए सबसे जरूरी काम चीन के साथ रिश्तों को बैलेंस करके चलना होगा. ताइवान पर चीन की वर्षों से नापाक नजर रही है.
एशिया के इस छोटे से द्वीप और चीन के पड़ोस में मौजूद इस देश में हो रहे चुनाव पर बीजिंग के अलावा भी दुनियाभर की नजर है. ताइवान में होने वाली छोटी से छोटी हरकत पर चीन की नजर रहती है और ऊपर से अगर बात चुनाव की हो जाए, तो बीजिंग एकदम एक्टिव मोड में आ जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि चीन-ताइवान के रिश्ते कैसे हैं, इस बार चुनाव में उम्मीदवार कौन हैं और इस चुनाव का असर दुनियाभर पर क्या रहने वाला है.
चीन संग कैसे हैं ताइवान के रिश्ते?
ताइवान चीन के पास मौजूद एक छोटा सा द्वीप है, जिसकी आबादी 2.3 करोड़ है. चीन ताइवान पर अपना दावा करता है. बीजिंग का कहना है कि जापान ने जब तक ताइवान पर कब्जा नहीं किया था, तब तक ताइवान चीन का ही हिस्सा था. जापान ने 1895 से लेकर 1945 तक ताइवान पर कब्जा किया हुआ था. ताइवान के लोग चीन के दावे के खिलाफ रहते हैं. द्वितीय विश्व युद्ध में जब जापान की हार हुई, तो ताइवान पर कब्जे के लिए चीन की दो पार्टियों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया.
माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) 1949 में नेशनलिस्ट पार्टी या कुओमितांग (केएमटी) को हराकर विजयी हुई. फिर चियांग काई शेक के नेतृत्व में केएमटी पार्टी ताइवान चली गई और यहां अपना शासन स्थापित किया. उन्होंने 1975 में अपनी मौत तक ताइवान पर शासन चलाया. इसके बाद ताइवान एक बहु-दलीय व्यवस्था वाला देश बना और यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई. ताइवान में हर चार साल में चुनाव होते हैं.
दुनिया के लिए क्यों मायने रखता है चुनाव?
संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक आजाद मुल्क नहीं मानता है. सिर्फ 12 ऐसे देश हैं, जो उसे देश की मान्यता देते हैं. हालांकि, चीन के साथ ताइवान के रिश्तों का बड़ा प्रभाव देखने को मिलता है. चीन कहता आया है कि वह आज नहीं तो कल ताइवान को अपने में मिला लेगा. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में कहा था कि ताइवान को मिलना ऐतिहासिक प्रवृत्ति है और यही सही चीज है. 2022 में संविधान में बदलाव कर चीन ने ताइवान को बलप्रयोग से कब्जाने की बात भी कही.
चीन के साथ दुनिया के कई मुल्कों के रिश्ते खराब चल रहे हैं. ताइवान की ओर चीन लगातार लड़ाकू जहाज भी भेजता रहता है. दुनिया को इस बात का डर सता रहा है कि अगर दोनों देशों के बीच टेंशन बढ़ती है, तो दक्षिण चीन सागर में व्यापार प्रभावित होगा. चीन ताइवान पर सैन्य शासन के लिए उस पर धावा बोल सकता है. इसकी वजह से ठीक वैसा ही होगा, जैसा यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद हुआ है. तेल, खाने की वैश्विक कीमतों में उछाल आ सकता है.
इसके अलावा अगर यहां पर जंग छिड़ती है या फिर चीन ताइवान पर आक्रमण करता है, तो एक और बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है. दरअसल, ताइवान दुनिया के सबसे बड़े सेमीकंडक्टर्स मैन्यूफेक्चर्स में से एक है. इन सेमीकंडक्टर्स का इस्तेमाल कई सारी चीजों में होता है. मोबाइल फोन से लेकर सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में इसका इस्तेमाल होता है. ऐसे में सेमीकंडक्टर्स की कमी के चलते दुनिया में बड़ी मुसीबत पैदा हो सकती है.
चुनाव में कौन-कौन उम्मीदवार हैं?
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की लाई चिंग-ते दो बार राष्ट्रपति बन चुकी हैं. कानून के मुताबिक, वह तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकती हैं. हालांकि, इस बार पर वह ताइवान के उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मैदान में हैं.
कुओमितांग (केएमटी) पार्टी के होउय यू-आईएच न्यू ताइपे सिटी के मेयर रह चुके हैं. 66 साल के होउय ने पिछले साल ही मेयर चुनाव जीता है. वह इस बार राष्ट्रपति चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं. उनकी पार्टी चीन के साथ बातचीत की पक्षधर रही है.
ताइवान पीपुल्स पार्टी (टीपीपी) के को वेन-जे ताइपे के पूर्व मेयर हैं. पहले ये पार्टी केएमटी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली थी. मगर फिर गठबंधन को लेकर बात नहीं बनी, तो पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
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