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तख्तापलट 5 : पाकिस्तान का वो प्रधानमंत्री, जिसने भारत में दंगे करवा हजारों लोग मरवा दिए

1953 में जब अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे सैयद मोहम्मद अली चौधरी उर्फ मोहम्मद अली बोगरा प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सुहरावर्दी को अपनी कैबिनेट ऑफ टैलेंट में कानून मंत्री की जिम्मेदारी दी.

पाकिस्तान के चौथे वजीर-ए-आजम चौधरी मोहम्मद अली के साथ उनकी ही पार्टी मुस्लिम लीग के नेताओं ने बगावत कर दी थी और नतीजा ये हुआ था कि चौधरी मोहम्मद अली को वजीर-ए-आजम के पद से तो हटना ही पड़ा, उनके पास पार्टी के अध्यक्ष का भी पद नहीं रहा. ये सब तब हुआ जब गवर्नर जनरल इस्कंदर मिर्जा खुद चौधरी मोहम्मद अली का समर्थन कर रहे थे और फिर मुस्लिम लीग के साथ ही अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने हुसैन शहीद सुहरावर्दी को अपना नेता चुनकर उन्हें पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम बना दिया. पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों पर आधारित खास सीरीज तख्तापलट में आज बात पाकिस्तान के पांचवे वजीर-ए-आजम हुसैन शहीद सुहरावर्दी की.

बंटवारे के वक्त सुहरावर्दी का था अलग प्लान
हुसैन शहीद सुहरावर्दी भी पाकिस्तान के कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के करीबियों में शुमार थे. इसकी वजह ये थी कि आजादी से ठीक पहले 1946 में जब बंगाल में चुनाव हुए थे तो सुहरावर्दी के नेतृत्व में ही मुस्लिम लीग ने कुल 119 सीटों में से 113 सीटों पर जीत दर्ज की थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने सुहरावर्दी को इसका इनाम भी दिया था और उन्हें बंगाल का प्रधानमंत्री बना दिया था. तब तक भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की बात पूरी तरह से अमल में आती दिखने लगी थी. ये साफ तौर पर नज़र आने लगा था कि मुस्लिमों को अलग देश चाहिए और हिंदुओं को अलग देश. लेकिन बंगाल के प्रधानमंत्री सुहरावर्दी का अलग प्लान था. उनका प्लान था बंगाल को एक अलग देश के तौर पर देखना, जिसमें अभी का पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, असम और बिहार के कुछ हिस्से आते थे. सुहरावर्दी इस प्लान को अमल में नहीं ला सके, क्योंकि इसके लिए न तो मुस्लिम लीग राजी हुई, न कांग्रेस और न ही अंग्रेज. इस बीच मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना ने 16 अगस्त, 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान किया.

इस एक्शन डे के ऐलान ने बंगाल में दंगे शुरू कर दिए. करीब एक हफ्ते तक चले इस दंगे में हजारों लोग मारे गए. लाखों लोगों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा. इसका सीधा इल्जाम आया हुसैन शहीद सुहरावर्दी पर, क्योंकि वही उस वक्त बंगाल के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. लेकिन जब 1947 में बंटवारा हो गया तो हुसैन शहीद सुहरावर्दी को जिन्ना ने किनारे लगा दिया. जिन्ना सुहरावर्दी का डायरेक्ट एक्शन डे पर कारनामा देख चुके थे और जानते थे कि सुहरावर्दी के मन में बंगाल को लेकर क्या प्लान है.

लेकिन 1953 में जब अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे सैयद मोहम्मद अली चौधरी उर्फ मोहम्मद अली बोगरा प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सुहरावर्दी को अपनी कैबिनेट ऑफ टैलेंट में कानून मंत्री की जिम्मेदारी दी. लेकिन जब पाकिस्तान के कार्यवाहक गवर्नर जनरल इस्कंदर अली मिर्जा ने बोगरा को पद से बर्खास्त कर चौधरी मुहम्मद अली को वजीर-ए-आजम बना दिया तो सुहरावर्दी पाकिस्तानी संसद में विपक्ष के नेता बनाए गए. तब तक उन्होंने अवामी लीग जॉइन कर ली थी. अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने मिलकर पाकिस्तान के चौथे वजीर-ए-आजम चौधरी मोहम्मद अली को भी पद से हटा दिया था और फिर सैयद शहीद सुहरावर्दी अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी के गठबंधन के नेता के तौर पर उभरे और पाकिस्तान के पांचवे वजीर-ए-आजम बन गए.

सुहरावर्दी की राजनीति पर भारी पड़ी ये कोशिश
सुहरावर्दी ने पाकिस्तान में आर्थिक सुधार करने की कोशिश की. पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के बीच की बढ़ती खाई को पाटने की कोशिश की. कोशिश की कि पश्चिमी पाकिस्तान चार प्रांतों यानी कि खैबर पख्तूनवा, सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब में न बंटे बल्कि एक ही यूनिट रहे, जिसकी हिमायत मोहम्मद अली बोगरा भी करते थे. लेकिन यही कोशिश सुहरावर्दी की राजनीति पर भारी पड़ गई. विपक्ष में बैठी मुस्लिम लीग कभी पश्चिमी पाकिस्तान को एक यूनिट के तौर पर नहीं देखती थी. इसके अलावा सुहरावर्दी जो पूर्वी पाकिस्तान को अमेरिका से लाकर आर्थिक मदद दे रहे थे, वो भी पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं और बड़े-बड़े बिजनेसमैन को हजम नहीं हो रहा था. गवर्नर जनरल के बाद पाकिस्तान में लागू हुए संविधान के तहत देश के पहले राष्ट्रपति बने इस्कंदर अली मिर्जा भी सुहरावर्दी के इन फैसलों के खिलाफ थे. लिहाजा राष्ट्रपति ने सुहरावर्दी को इस्तीफा देने को कहा. सुहरावर्दी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और कहा कि संसद में वो बहुमत साबित कर सकते हैं.

लेकिन उन्हें बहुमत साबित करने का मौका ही नहीं मिला. इस्कंदर अली मिर्जा ने उन्हें धमकी दी कि या तो वो पद छोड़ें या फिर उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा. लिहाजा सुहरावर्दी ने 17 अक्टूबर, 1957 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मुस्लिम लीग ने अपनी पार्टी के नेता और चौधरी मुहम्मद अली की सरकार में कानून मंत्री रहे आई आई चुंदरीगर उर्फ इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश किया. विपक्षी पार्टियों अवामी लीग और मुस्लिम लीग के साथ ही दूसरी छोटी पार्टियों के समर्थन से वो पाकिस्तान के छठे वजीर-ए-आजम बने. लेकिन वो अपने पद पर महज 55 दिन ही कायम रह सके.

तख्तापलट सीरीज के अगले एपिसोड में पढ़िए कहानी पाकिस्तान के छठे वजीर-ए-आजम इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर की, जिनकी चुनाव सुधार की कोशिशों ने उन्हें पाकिस्तान में महज 55 दिन का वजीर-ए-आजम साबित किया. 

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तख्तापलट सीरीज 1: जब लाखों की भीड़ में हुई थी पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री की हत्या, पढ़ लीजिए पूरी कहानी

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