तालिबान सरकार के एलान ने UN व्यवस्था को कराया शीर्षासन, पाबंदियों को लेकर सुरक्षा परिषद को करना होगा फैसला
सुरक्षा परिषद के लिए मौजूदा हालात में सीधे तौर पर एक राय से कोई फैसला लेना आसान नहीं होगा. क्योंकि तालिबान के तेवरों और ऐलानों ने हाल ही में सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव को भी ठेंगा दिखा दिया है.
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अफगानिस्तान में नई तालिबानी सरकार के ऐलान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध सूची और अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों की मौजूदा व्यवस्था को शीर्षासन करवा दिया है. जो व्यवस्था आतंकी गतिविधियों में लिप्त तत्वों पर सख्ती के लिए बनाई गई थी उसे अब सरकार में आए तालिबानियों के सरकार बन जाने पर कामकाजी व्यवहार के गलियारे निकालने होंगे.
ऐसे में नजरें 21 सितंबर तक यात्रा रियायतें पा रहे तालिबान नेताओं के लिए यह सहूलियतें बढ़ाए जाने और प्रतिबंध सूची में मौजूद अन्य नेताओं को भी यह सुविधाएं देने के बाबत फैसले पर होंगी. सुरक्षा परिषद को यह फैसला लेना होगा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध सूची में मौजूद हसन अखुंद, सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे नेताओं को किस तरह बाहर किया जा सकता है. साथ ही दोहा शांति वार्ता के लिए यात्रा पाबंदियों से बाहर किए गए एसएम स्तनिकजई और मुल्ला बिरादर समेत 14 नेताओं के लिए यह सहूलियत किस तरह आगे बढ़ाई जाए.
इतना ही नहीं, अमेरिका, रूस जैसे सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को तालिबान संगठन के लिए नई रियायतों की जगह बनाने से पहले अपने यहां आतंकी संगठनों की सूची से इसका नाम हटाना पड़ेगा. गौरतलब है कि अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार में प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद, गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी जैसे तालिबानी नेताओं के नाम प्रतिबंध सूची में हैं. वहीं उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बिरादर और उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई जैसे नेताओं को दी गई रियायत कई मियाद भी 22 सितंबर को खत्म हो रही है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि रहे सैय्यद अकबरुद्दीन कहते हैं कि यह अपने आप में पहली ऐसी स्थिति है जब सुरक्षा परिषद को प्रतिबंधित सूची वाले व्यक्तियों और संगठन के एक देश की सरकार बन जाने के बारे हमें फैसला करना होगा. यह देखना होगा कि इस बारे में परिषद के सदस्य देश क्या रुख अपनाते हैं. अफगानिस्तान को मदद और उसके साथ सम्पर्क रखना है तो कोई रास्ता निकालना होगा.
ज़ाहिर है सुरक्षा परिषद के लिए मौजूदा हालात में इस मामले पर सीधे तौर पर एक राय से कोई फैसला लेना आसान नहीं होगा. क्योंकि तालिबान के ताजा तेवरों और ऐलानों ने हाल ही में सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव को भी ठेंगा दिखा दिया है. जिसमें कहा गया था कि अफगानिस्तान में एक समावेशी और शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान का रास्ता बनाया जाना चाहिए. साथ ही महिलाओं, बच्चों और समाज के विभिन्न वर्गों का मानवाधिकार संरक्षित होना चाहिए.
गौरतलब है कि अगस्त 2021 में भारतीय अध्यक्षता में सँयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 2593 पारित कर आतंकवाद के मुद्दे पर स्थिति को स्पष्ट कर दिया था. अगस्त 30 कई बैठक में पारित इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में चीन और रूस ने भाग नहीं लिया था. इसके अलावा एक बड़ा सवाल अफगानिस्तान में यूएन के प्रतिनिधत्व का भी है. अफगानिस्तान के नए नेतृत्व को मान्यता दिए जाने और उसकी तरफ से नियुक्त प्रतिनिधियों के बारे में भी यूएन की एक्रीडिटेशन कमेटी को फैसला करना होगा. वहीं यदि अपने को राष्ट्रपति घोषित करने वाले अरुल्लाह सालेह तालिबानी सरकार के समानांतर प्रतिद्वंद्वी दावा करते हैं तो मामला यूएन महासभा के फैसले ले लिए जाएगा. ऐसे में अफगानिस्तान की नुमाइंदगी का मामला उलझ सकता है.
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