हिंद महासागर की घटती टूना को बचाने के लिए बातचीत शुरू, 30 देश हुए बैठक में शामिल
पर्यावरणविदों का मानना है कि गर्म पानी की प्रजातियों की कमी का खतरा पैदा हो गया. इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और आबादी समेत मछली पकड़ने के उपकरण जिम्मेदार हैं.
मंगलवार को तीस देशों के प्रतिनिधियों की बैठक में तेजी से घटती टूना को बचाने के तरीकों पर विचार किया गया. हिंद महासागर में टूना मछली का जखीरा तेजी से कम हो रहा है क्योंकि एशिया और पश्चिम में उसकी मांग बढ़ी है. हिंद महासागर टूना आयोग ने येल्लोफिन टूना के कोटा पर चर्चा के लिए वर्चुअली बैठक बुलाई थी. आपको बता दें कि येल्लोफिन टूना मछली की एक प्रजाति है. पर्यावरणविद् कहते हैं कि गर्म पानी की प्रजातियों की संख्या के कम होने का खतरा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन और आबादी से मछली पकड़ने के खतरे तेज हो गए हैं.
हिंद महासागर में टूना मछली को बचाने की कवायद
ब्रिटिश सुपरमार्केट टेस्को और को-ओप के अलावा अन्य ने हिंद महासागर की येल्लोफिन खरीदारी को रोकने के लिए पिछले साल प्रतिज्ञा की. उनका कहना था कि संयुक्त राष्ट्र अधिकृत आयोग के मंसूबा लाने तक जखीरा की दोबारा जमाखोरी नहीं करेंगी. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ करीब एक दशक से प्रजातियों को अपनी 'लाल लिस्ट' में रखा है. लंदन के एक ग्रुप का कहना है कि विश्व स्तर पर मछली पकड़ने में वृद्धि करीब 450,000 मीट्रिक टन सालाना हो गई है. उसका आकलन है कि अगर मछली पकड़ने में कटौती नहीं की जाए, तब येल्लोफिन टूना का जखीरा 'ध्वस्त' हो सकता है.
30 देशों के प्रतिनिधी वर्चुअली बैठक में हुए शामिल
इसका मतलब हुआ कि रिकवरी के लिए उनकी संख्या बहुत कम हो जाएगी. फ्रांस और स्पेन मछली पकड़ने के बेड़े अधिकतर मछली को ले जाते हैं. इसके लिए औद्योगिक तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं. तटीय राष्ट्र यूरोपीय पानी के बेड़े की दूरी की सीमा तय करना चाहते हैं. मिसाल के तौर पर, केन्या और श्रीलंका टूना और अन्य प्रजातियों को जाल की तरफ आकर्षित करनेवाली डिवाइस पर ज्यादा लगाम चाहते हैं.
ग्रीनपीस यूके के एक अधिकारी का कहना है, "ये देश किसी अन्य के मुकाबले ज्यादा क्षमता के साथ मछली पकड़ रहे हैं और ये न्यायसंगत मामले नहीं हैं." यूरोपीय यूनियन ने कुल पकड़ में कमी का प्रस्ताव 2019 में करीब 438,000 मीट्रिक टन से 380,000 मीट्रिक टन तक रखा था. ग्रीनपीस के मैककुलम ने बताया कि ज्यादा मछली पकड़ने का मुद्दा कोविड-19 महामारी के दौर में रुक गया था और प्रजातियों को अपरिवर्तनीय क्षति से बचाने के लिए कठोर कार्रवाई की जरूरत है.
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