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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Explained: पाकिस्तानी तालिबान ने युद्धविराम समझौता खत्म किया, इस्लामाबाद के लिए इसके क्या मायने?

Pakistan News: पाकिस्तान के अंदरूनी हालात, राजनीतिक उथल-पुथल और नए सेना प्रमुख की ताजपोशी से पहले भीतर के ही एक आतंकी संगठन ने देश को दहलाने की धमकी दी है.

TTP Vs Pakistan Govt: आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर मुसीबतों से घिरे पाकिस्तान (Pakistan) के लिए एक समस्या और खड़ी हो गई है. उसे देश के अंदर के ही एक आतंकी संगठन से निपटना है. आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने देशव्यापी हमले करने का फरमान अपने गुर्गों को दे दिया है. यह वही आतंकी संगठन है जिसने मलाला युसुफजई (Malala Yousafzai) पर हमला किया था. 2014 के पेशावर आर्मी स्कूल पर हुए भयानक हमले को कौन भूल सकता है, जिसमें 130 से ज्यादा स्टूडेंट्स समेत करीब 150 लोगों की मौत हो गई थी. 

दिसंबर 2007 से अस्तित्व में आया यह आतंकी संगठन पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना हुआ है. पाकिस्तान सरकार को इस आतंकी संगठन से कई बार युद्धविराम के लिए समझौता करना पड़ा है. पिछली बार अनिश्चितकाल के लिए युद्धविराम का समझौता हुआ था लेकिन एक बार फिर वह टूट गया. आतंकी संगठन के युद्धविराम तोड़ने के इस्लामाबाद के लिए क्या मायने हैं, आइए समझते हैं.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) क्या है?

करीब 14 साल पहले टीटीपी बना था. यह कई छोटे उग्रवादी समूहों से मिलकर बना संगठन है. बेयतुल्लाह महसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने साथ आकर तहरीक (मुहिम) चलाने का फैसला किया था. अगस्त 2009 में खबर आई थी कि बेयतुल्लाह महसूद अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया लेकिन बाद में संगठन की ओर से उसके नेता के मारे जाने की खबर का खंडन किया गया था. 2013 में इसके नेता हकीमुल्लाह मेहसूद के अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने की भी खबर आई थी. संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक उमर खालिद खुरासानी करीब चार महीने पहले अफगानिस्ताान के पक्तिका प्रांत में कार धमाके में मारा गया था. 

टीटीपी पाकिस्तान में कट्टर इस्लामिक कानून लागू करने की वकालत करता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीटीपी अफगानिस्तान सीमा से लगे जनजातीय (कबायली) इलाकों पर अपना वर्चस्व चाहता है, इसलिए लगातार मांग कर रहा है कि उन जगहों से सेना हटाई जाए और संगठन के सदस्यों को रिहा किया जाए. फाटा और खैबर पख्तूनख्वा जैसे कबायली क्षेत्रों में अपनी सरकार चलाने के मंसूबे के चलते टीटीपी का पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्ष होता रहता है. इन इलाकों में शिया पठान अल्पसंख्यक हैं. उनसे टीटीपी की बनती नहीं है. अफगानिस्तान के तालिबान के साथ के साथ टीटीपी का विचारधारा का नाता है. अमेरिकी सेना के साथ लड़ाई में टीटीपी अफगान तालिबानियों और हक्कानी नेटवर्क का साथ देता रहा है.

क्या कहकर आतंकी संगठन ने तोड़ा सीजफायर?

28 नवंबर को टीटीपी के रक्षा प्रमुख मुफ्ती मुजाहिम ने एक पत्र के जरिये पाकिस्तानी सरकार खिलाफ युद्धविराम खत्म करने का एलान कर दिया. टीटीपी के बयान में कहा गया कि खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बन्नू और लक्की मारवात इलाकों में सेना की ओर से संगठन के खिलाफ बेहिसाब हमले किए जा रहे हैं, इसलिए पांच महीने पुराना सीजफायर खत्म किया जा रहा है.

बयान में कहा गया कि टीटीपी सेना की ओर से किए जाने वाले युद्धविराम उल्लंघन को लेकर चेताता रहा है और बगैर किसी जवाबी हमले के संयम का परिचय देता रहा ताकि शांति को नुकसान पहुंचाने का आरोप उस पर न लगे. बयान में कहा गया कि टीटीपी की खामोशी का पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों ने फायदा उठाया और उसके सदस्यों पर हमले करती रहीं. संगठन ने आगे कहा कि अब वह जवाबी कार्रवाई शुरू कर रहा है और पूरे देश में इसकी गूंज सुनाई देगी. 

कब-कब हुआ सीजफायर समझौता

पाकिस्तान सरकार अफगानिस्तान की अंतरिम तालिबान सरकार की मदद से टीटीपी को बातचीत की मेज पर लाने में सफल हुई थी. 9 नवंबर 2021 को टीटीपी और पाकिस्तान सरकार ने एक महीने के लिए युद्धविराम की घोषणा की थी. सैकड़ों टीटीपी आतंकियों को रिहा कर दिया गया था. इससे टीटीपी को संगठित होने का मौका मिल गया. 10 नवंबर 2021 को टीटीपी सरगना नूर वली मेहसूद ने एक साक्षात्कार में कहा कि पाकिस्तानी सरकार के साथ बातचीत में कोई तरक्की नहीं हुई है. 

29 अप्रैल 2022 को नूर वली महसूद के हवाले से एक और बयान आया जिसमें कहा गया कि ईद से पहले पाकिस्तानी सरकार के साथ 11 दिनों के लिए सीजफायर किया जा रहा है. मई के पहले हफ्ते में टीटीपी ने युद्धविराम टूटने पर पाकिस्तान के खिलाफ अभियान तेज करने की घोषणा की लेकिन इसके बाद पांच दिन का सीजफायर घोषित कर दिया.

18 मई को टीटीपी ने एक और बयान जारी कर युद्धविराम को 30 मई तक के लिए बढ़ा दिया. इसके बाद 31 मई को टीटीपी और पाकिस्तान सरकार दोनों ने घोषणा की कि युद्धविराम अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया है. इसके बाद हुए कुछ हमलों की जिम्मेदारी टीटीपी ने ली. 

खुद को पाक साफ दिखाकर टीटीपी मजबूत करता रहा नेटवर्क

टीटीपी के सीजफायर का पालन करने के दौरान लश्कर-ए-खुरासान और इत्तेहाद मुसल्लाह इस्लामी मुजाहिदीन जैसे छोटे उग्रवादी संगठन पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के खिलाफ हमले करते रहे. बताया जाता है कि ये संगठन अंदर से टीटीपी से मिले हुए हैं और टीटीपी खुद को पाक साफ बताकर हमले करवाता रहा है.

इन संगठनों को टीटीपी की 'बी टीम' कहा जाता है. छोटे आतंकी गुटों से हमले कराकर टीटीपी अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की नजर में भी सकारात्मक बना रहना चाहता है, जिन्होंने पाकिस्तान सरकार के साथ उसके सीजफायर में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी. 

अब जब टीटीपी ने आधिकारिक तौर पर सीजफायर के खात्मे का एलान किया है और देशव्यापी मुहिम के लिए धमकाया है तो खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से बाहर हमलों की आशंका बढ़ गई है. बलूचिस्तान और कराची दो प्रमुख इलाके टीटीपी के आतंकी मंसूबे की जद में माने जा रहे हैं. इन दोनों जगहों पर टीटीपी ने अपने स्लीपर सेल और नेटवर्क को बढ़ा लिया है. बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों टीटीपी के गुर्गों ने कराची में खूब उगाही की है. 

बलूचिस्तान में दिखा टीटीपी की धमकी असर

बलूचिस्तान में टीटीपी की धमकी का असर दिखाई भी देने लगा है. 30 सितंबर को क्वेटा में पुलिस के एक काफिले पर आत्मघाती हमला किया गया, जिसमें एक ट्रक पूरी तरह से तबाह हो गया. स्थानीय लोगों के मुताबिक कई पुलिसवालों समेत लोग मारे गए और 20 से ज्यादा लोग घायल हुए हो गए थे.

हमले की जिम्मेदारी लेते हुए टीटीपी ने बयान में कहा कि सीजफायर अवधि के दौरान उमर खालिद खुरासानी के मारे जाने की याद में हमलों की यह नई श्रृंखला जारी रहेगी. अफगानिस्तान में कार धमाके में हुई खुरासानी की मौत के लिए टीटीपी पाकिस्तान सरकार को जिम्मेदार ठहराता है. 

इस्लामाबाद के लिए टीटीपी की ओर से सीजफायर तोड़ने के मायने

टीटीपी ने ऐसे वक्त युद्धविराम तोड़ा है जब पाकिस्तान के भीतर सियासी गहमागहमी चरम पर है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सत्तारूढ़ पीएमएल-एन गठबंधन सरकार के खिलाफ लॉन्ग मार्च चला रहे हैं और पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष के रूप में असीम मुनीर पद संभालने जा रहे हैं. अगले आम चुनाव में भी अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है. अगले साल पाकिस्तान में आम चुनाव हो सकते हैं.

वहीं, 17 साल बाद इंग्लैंड क्रिकेट टीम पाकिस्तान में अपनी पहली टेस्ट सीरीज खेलने आई है. इन अहम हालात के मद्देनजर टीटीपी की ओर से सीजफायर तोड़ने और देशव्यापी हमले करने का एलान पाकिस्तान की सरकार और सेना के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. 

ऐसे की जा रही मामले को सुलझाने की कोशिश

गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को कहना पड़ा है कि मामले को सुलझाने में अफगानिस्तान तालिबान मदद कर सकता है, इसके लिए विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल भेजा गया है. बिलावल भुट्टो का यह भी कहना है चूंकि पश्चिमी देशों के साथ लड़ाई में टीटीपी ने अफगान तालिबान का साथ दिया है इसलिए वह उसे (टीटीपी को) नाराज नहीं करना चाहेगा. बकौल भुट्टो पाकिस्तान सरकार कबायली इलाकों को टीटीपी को नहीं दे सकती है.

क्या सेना उकसा रही टीटीपी को?

जानकार मानते हैं कि पाकिस्तानी विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति नाजुक है और फरवरी 2023 तक उसे बड़ा कर्ज चुकाना है. हालांकि, पीएम शहबाज शरीफ खराब हालत से इनकार करते हैं लेकिन टीटीपी की आक्रामता सरकार के लिए मुसीबत से कम नहीं है. जानकारों की राय में एक एंगल यह भी है कि पाकिस्तानी सेना के भीतर चरम स्तर पर गुटबाजी है. पिछले सीजफायर समझौते में रिटायर हो चुके सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का रोल बताया जाता है. कहा जा रहा है कि नए सेना प्रमुख मुनीर के लिए दिक्कत खड़ी करने में सेना के गुटों का ही हाथ है, जो टीटीपी को उकसा रहे हैं. जानकारों की राय में पाक सेना के नाराज गुटों की ओर से टीटीपी की मदद की जाती है.

यह भी पढ़ें- India China Relations: भारत की सीमा के पास सेना की चौकियां बना रहा चीन, अमेरिकी सांसद ने जताई चिंता

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