यूक्रेन पर हुए हमले के बाद रूस में रह रहे भारतीय छात्रों को भी शुरूआत में मुश्किल का सामना करना पड़ा था. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक पाबंदी लगने के बाद छात्रों को भारत में रह रहे अपने परिवारों से फीस इत्यादि के लिए ऑनलाइन ट्रांजेक्शन में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. हालांकि रूस सरकार ने विदेशी छात्रों के लिए खास इंतजाम किए जिसके चलते उनका रूस में रहना आसान हो गया.


रूस की राजधानी मॉ‌स्को में एबीपी न्यूज ने यहां के सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, रुडन विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे भारतीय छात्रों से यूक्रेन युद्ध के चलते आई परेशानियों के बारे में पूछा तो कुछ चौंकाने वाले जवाब मिले. इंटरनेशनल रिलेशन यानि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही चारू मूलत दिल्ली की रहने वाली हैं और पिछले पांच सालों से यहां रह रही हैं. चारू का कहना है कि यूक्रेन के साथ जब युद्ध शुरु हुआ तो सभी छात्र बेहद डरे हुए थे. कुछ छात्रों ने तो वापस भारत जाने का मन तक बना लिया था लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने सभी की काउंसलिंग की जिसके चलते अधिकतर छात्रों ने मॉस्को में रहकर ही अपनी पढ़ाई करने की ठान ली.


खाने पीने के सामान के दामों में हुई वृद्धि


चारू की मानें तो यूक्रेन से युद्ध शुरु होने के बात से यहां उन्हें एक और परेशानी का सामना करना पड़ा. वो परेशानी थी रोजमर्रा की चीजों और खाने पीने के सामान के दामों में हुई वृद्धि की. उनका कहना है कि पिछले एक डेढ़ महीने में महंगाई थोड़ी बढ़ी है. आगरा के रहने वाले अली छह महीने पहले ही पढ़ाई के लिए मॉस्को आए थे. उनका कहना है कि वे युद्ध से ज्यादा इस बात को लेकर ज्यादा परेशान थे कि अब वे अपनी फीस कैसे भर पाएंगे. क्योंकि आर्थिक पाबंदी के चलते इंटरनेशनल ट्रांजेक्शन नहीं हो पा रहे हैं जिसके चलते उनका परिवार उन्हें फीस और जरूरत के खर्च के लिए पैसे नहीं भेज पा रहे थे. हालांकि अली की मानें तो इस दौरान यूनिवर्सिटी प्रशासन उनकी मदद के लिए सामने आया. यूनिवर्सिटी ने सभी विदेशी छात्रों को फीस की व्यवस्था नहीं होने तक रियायत दे दी. यहां तक कि कॉलेज ने खर्च और दूसरे जरूरी सामान भी मुहैया कराया.


सोशल-मीडिया साइट्स बंद हुई- छात्र


आपको बता दें कि मॉस्को की रुडन यूनिवर्सिटी सोवियत संघ के जमाने की है और इसमें 150 देशों के करीब 25 हजार छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा ले रहे हैं. यही वजह है कि रुडन यूनिवर्सिटी को पीपुल्स फ्रेंडशिप यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है. बताते हैं कि सोवियत संघ के समय में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इस विश्वविद्यालय में एक बार आए थे. चारू और अली की तरह ही लाडली भी रुडन यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं और लिंग्युस्टिक की पढ़ाई कर रही हैं. उनका कहना है कि यूक्रेन युद्ध के चलते उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. इसका कारण ये है कि उनके रिश्तेदार यहां रहते हैं लेकिन उन्हें इस बात से परेशानी हुई कि प‍श्चिमी देशों की पाबंदियों के चलते रशिया में इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसी सोशल-मीडिया साइट्स बंद हो गई हैं.


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