पाकिस्तान के दूसरे वजीर-ए-आजम ख्वाजा नजीमुद्दीन के शासन के दौरान 1953 में जब अहमदिया मुस्लिमों के खिलाफ जमात-ए-इस्लामी ने दंगे शुरू किए तो ऐसे हालात से निपटने के लिए गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने अमेरिका से एक शख्स को कराची बुलाया. उस शख्स का नाम था साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी, जिसने पाकिस्तान को अमेरिका परस्त बनाने में खासी मदद की थी. तब साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुआ करते थे.


वो कराची वापस तो इसलिए लौटे थे, ताकि अहमदिया मुस्लिमों के खिलाफ चल रहे दंगे को रोकने में गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद और वजीर-ए-आजम ख्वाजा नजीमुद्दीन की मदद कर सकें. पर जब वो कराची आए तो गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने वजीर-ए-आजम ख्वाजा नजीमुद्दीन को पद से बेदखल कर दिया और वजीर-ए-आजम के पद पर साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी को बिठा दिया. इतना ही नहीं मलिक गुलाम मोहम्मद ने साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी को पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया और पार्टी में इसके खिलाफ कोई बगावती सुर भी नहीं उठे.


हालांकि साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी या कहिए कि मुहम्मद अली बोगरा नेता नहीं थे, वो एक राजनयिक थे और पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम बनने से पहले वो अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुआ करते थे. उनका पाकिस्तानी अवाम से कोई सीधा वास्ता नहीं था, जबकि उस वक्त परिस्थितियां ऐसी थीं कि पाकिस्तानी अवाम को एक ऐसा चेहरा चाहिए था, जिसकी बात में वजन हो. मुहम्मद अली बोगरा ने जनता का यकीन जीतने के लिए अपनी सरकार की नई कैबिनेट का गठन किया, जिसमें बेहद ही काबिल लोगों को रखा गया. 


इसे मिनिस्ट्री ऑफ टैलेंट कहा गया. रक्षा मंत्री के तौर पर मुहम्मद अली बोगरा ने तब के पाकिस्तानी सेना के मुखिया जनरल अयूब खान को नियुक्त किया तो गृहमंत्री के तौर पर पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड जनरल इस्कंदर अली मिर्जा को चुना गया. मुहम्मद अली बोगरा की नई कैबिनेट की तारीफ जितनी पाकिस्तान में हुई, उससे भी ज्यादा अमेरिकी नेताओं ने बोगरा की तारीफ की. अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए अपने खजाने खोल दिए. वहीं बोगरा के वक्त में ही पाकिस्तान की नज़दीकी चीन से बढ़नी शुरू हुई थी.


तब भारत के साथ भी अमेरिका के संबंध थोड़े बेहतर हो रहे थे. नतीजा ये हुआ कि अमेरिका को खुश करने के लिए बोगरा ने तब के भारत के प्रधानमंत्री नेहरू को कराची बुलाया और खुद भी दिल्ली गए. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच संबंधों को सुधारने की भी बात हुई और इसके लिए कश्मीर एक अहम मसला था, जिसका सुलझना ज़रूरी था. दोनों देशों के नेताओं के बीच कश्मीर में जनमत संग्रह पर भी सहमति बन गई थी. इस बीच पाकिस्तान का संविधान बनने की कवायद भी शुरू हो गई थी. वजीर-ए-आजम साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी उर्फ मुहम्मद अली बोगरा ने पाकिस्तान के संविधान से जुड़ा एक बड़ा प्लान पेश किया, जिसे बोगरा फॉर्म्युला कहा गया.


इसके तहत कुछ बड़ी बातें थीं, जिसमें पाकिस्तान में नेशनल असेंबली और सीनेट बनाने की बात की गई थीं. नेशनल असेंबली में 300 सीटें और सीनेट में 50 सीटों का प्रस्ताव था. प्रस्ताव ये भी था कि पाकिस्तान के पांच प्रांतों यानी कि पंजाब, खैबर-पख्तूनवा, बलूचिस्तान, सिंध और बंगाल में से अगर पश्चिम के चार प्रांत से प्रधानमंत्री बनता है तो राष्ट्रपति अनिवार्य रूप से बंगाल से होगा. बोगरा फॉर्म्युले में सुप्रीम कोर्ट को भी काफी ताकत दी गई थी. बोगरा करीब-करीब अमेरिका जैसा संविधान पाकिस्तान में भी लागू करने की कवायद कर रहे थे.


आम जनता ने बोगरा के इस फॉर्म्युले का खुले दिल से इस्तकबाल किया. ये ऐसा फॉर्म्युला भी था, जिससे पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच बढ़ती हुई खाई को भी पाटा जा सकता था, जो भाषा के नाम पर बोगरा से पहले वजीर-ए-आजम रहे ख्वाजा नजीमुद्दीन के शासन के दौरान खुलकर सामने आ गई थी. हालांकि बोगरा का ये फॉर्म्युला पाकिस्तान में कभी लागू नहीं हो पाया. फिर बोगरा ने एक और सुझाव दिया कि पश्चिमी पाकिस्तान के सभी चार प्रांतों को एक कर दिया जाए. इसका भी विरोध हो गया. इस बीच पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने नासाज तबीयत का हवाला देकर कुछ दिनों के लिए छुट्टी मांगी, जिसे कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी. 7 अगस्त, 1955 को पाकिस्तानी कैबिनेट ने गृहमंत्री इस्कंदर अली मिर्जा को कार्यवाहक गवर्नर जनरल बना दिया.


इसी के साथ ही साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी उर्फ मुहम्मद अली बोगरा के बुरे दिन शुरू हो गए. आए दिन इस्कंदर अली मिर्जा और साहिबजादा सैयद मोहम्मद अली चौधरी के बीच झगड़े शुरू हो गए और नतीजा ये हुआ कि इस्कंदर अली मिर्जा ने मुहम्मद अली बोगरा को उनके पद से हटाकर वापस उन्हें अमेरिका में पाकिस्तान का एंबेसडर बना दिया. पाकिस्तान के अगले वजीर-ए-आजम बने मुहम्मद अली बोगरा की कैबिनेट में वजीर-ए-खजाना यानी कि वित्त मंत्री रहे मुहम्मद अली.


तख्तापलट सीरीज की चौथी किश्त में पढ़िए कहानी पाकिस्तान के चौथे वजीर-ए-आजम चौधरी मुहम्मद अली की, जिन्हें उनकी ही पार्टी के नेताओं ने उन्हें पद और पार्टी दोनों से हटा दिया था.


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