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एबीपी न्यूज पर उत्तर कोरिया के लोगों की जुबानी तानाशाह के अत्याचारों की दास्तां

उत्तर कोरिया के सख्त कानूनों और अत्याचारों से त्रस्त होकर दक्षिण कोरिया पहुंच गए हैं. इनमें से दो लड़कियां हैं और एक युवक है. तीनों की कहानी लगभग एक जैसी है. तीनों ही उत्तर कोरिया में लोगों के पैरों में पड़ी जंजीरों को तोड़कर भाग खड़े हुए.

 

दक्षिण कोरिया: उत्तर कोरिया के तानाशाह के जुल्मों-सितम की कहानियां जो आज तक दुनिया सुनती आई थी उसकी हकीकत आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं. ये जुल्मों-सितम की सच्ची दांस्ता उत्तर कोरिया से भागकर आए लोगों ने एबीपी न्यूज के सामने बंया की है. ये वे लोग हैं जो उत्तर कोरिया के तानाशाह के तुगलकी नियम-कानून और प्रतिबंधों को धत्ता बताकर दक्षिण कोरिया भाग आए हैं.

दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में एबीपी न्यूज ने मुलाकात की उन तीन नौजवानों से जो उत्तर कोरिया के सख्त कानूनों और अत्याचारों से त्रस्त होकर दक्षिण कोरिया पहुंच गए हैं. इनमें से दो लड़कियां हैं और एक युवक है. तीनों की कहानी लगभग एक जैसी है. तीनों ही उत्तर कोरिया में लोगों के पैरों में पड़ी जंजीरों को तोड़कर भाग खड़े हुए.

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उत्तर कोरिया में लड़कियां लंबे बाल नहीं रख सकती

इनमें से एक युवती बताती है कि, "उत्तर कोरिया में लड़कियां ना तो लंबे बाल रख सकती हैं और ना ही उन्हें डाई यानि रंग सकती हैं. लड़कियों के टाइट-जींस और स्कर्ट पहनने पर भी रोक है. लड़कियों के बाल माथे पर नहीं आने चाहिए, ये भी उत्तर कोरिया के नियम कानून में शामिल है. "

हमने इन तीनों युवक-युवतियों की पहचान आपको नहीं बता सकते क्योंकि भले ही इन्हे दक्षिण कोरिया आए तीन-चार साल से ज्यादा हो चुका है लेकिन इनकी जान को अभी भी खतरा बना हुआ है. क्योंकि उत्तर कोरिया का तानाशाह कतई बर्दाश्त नहीं करता कि उसके देश की सच्ची तस्वीर दुनिया के सामने आए. यही वजह है कि अगर कोई देशवासी उसके हुकुम की तालीम नहीं करता या उसका विरोध करता है तो उसे मौत के मुंह में धकेल दिया जाता  है.

30 हजार उत्तर कोरियाई नागरिकों में करीब 70 प्रतिशत महिलाएं

ये तीनों युवा उन 30 हजार (30,000) उत्तर कोरियाई शरणार्थियों में से हैं जो दक्षिण कोरिया भाग आए और अब यहीं पर शरण लिए हुए हैं. इन जैसे लोगों के जरिए ही दुनिया को उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाहों की कहानी सुनाई पड़ती है. चाहे वो सनकी तानाशाह किम जोंग उन हो या फिर उसके पिता और दादा. दक्षिण कोरिया में शरण ले रखे 30 हजार उत्तर कोरियाई नागरिकों में करीब 70 प्रतिशत महिलाएं हैं.

उत्तर कोरिया से आए इन शरणार्थियों ने बताया कि उत्तर कोरिया में या तो बहुत अमीर आदमी हैं या फिर बहुत गरीब. मिडिल क्लास यानि मध्यम आय वाला कोई परिवार नहीं है. यही वजह है कि वहां अधिकतक युवक-युवतियों को दसवीं के बाद पढ़ाई करने का मौका नहीं दिया जाता है. एबीपी न्यूज से मिली एक युवती हायर स्टीडज़ और अपने सपने पूरे करने के इरादे से ही उत्तर कोरिया से भाग खड़ी हुई. उसने बताया कि "उत्तर कोरिया में उच्च शिक्षा सिर्फ अमीर लोगों को ही मिल पाती है. उसके पिता नहीं थे और मां एक फैक्ट्री में काम करती थी. पैसों की तंगी के चलते वो आगे नहीं पढ़ पाई और फिर एक दिन वर्ष 2009 में वो नदी के जरिए चीन पहुंच गई.  वहां तीन साल रहने पर उसे दक्षिण कोरिया की बढ़िया जीवन-शैली के बारे में जानकारी मिली तो वो वहां से थाइलैंड और लाओस के रास्ते दक्षिण कोरिया भाग आई." इसी रूट से अधिकतर लोग उत्तर कोरिया से दक्षिण कोरिया भागकर आते हैं.

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"जब मैं बड़ी हुई तो पता चला कि जिंदगी उत्तर कोरिया में बहुत बदत्तर है”

उत्तर कोरिया से आई शरणार्थी ने कहा, "जब मैं बड़ी हुई तो पता चला कि जिंदगी उत्तर कोरिया में बहुत बदत्तर है. महिलाओं को घर में ही रहना पड़ता है और घर की देखभाल करनी पड़ती है. वहां पर मिड़िल क्लास जैसी कोई चीज नहीं है. या तो बहुत अमीर लोग हैं या फिर मजूदर हैं. उन्हें एक दिन दिहाड़ी के हिसाब से पैसा मिलता है. जिस दिन काम नहीं करते तो दिहाड़ी भी नहीं मिलती. चावल को छोडकर सबकुछ मंहगा है. बिजली तक नहीं है."

युवती ने बताया कि वो यहां आकर खुश तो है लेकिन उसे रह-रहकर अपनी मां की याद सताती है. क्योंकि उत्तर कोरिया में अगर कोई शख्स देश छोड़कर भाग जाता है तो उसके परिवार को बेहद यात्नाएं दी जाती हैं और उसके परिवार को जेल में डाल दिया जाता है. देशकर छोड़कर भागने की सजा उसके परिवार को दी जाती है. बीच में बैठी उत्तर कोरिया की दूसरी लड़की ने भी युवती की बातों की तस्दीक की. उसने बताया कि उत्तर कोरिया में अधिकतक लोग खेती करते हैं. वे फल और सब्जी उगाते हैं. लेकिन जिन लोगों को खाना नहीं मिलता उन्हें पहाड़ों पर जाकर जंगली फल-फूल खाने पड़ते हैं.

अब बारी थी उस युवक की

अब बारी थी उस युवक से बात करने की जो 2012 में दक्षिण कोरिया भाग आया था और सियोल की एक यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की पढ़ाई कर रहा है. ये युवक भी बाकी दोनों युवतियों की तरह ही हाना नाम के एनजीओ की कस्टडी में रहता है. सियोल स्थित हाना संस्था उत्तर कोरिया से आए शरणार्थियों की देखभाल करती है और उनकी पढ़ाई से लेकर नौकरी दिलाने में भी मदद करती है. युवक ने बताया कि उत्तर कोरिया में वो अपने अंकल और आंटी के साथ रहता था. लेकिन उत्तर कोरिया के खराब हालात को देखते हुए वो वहां से भाग खड़ा हुआ. उसने बताया कि वहां करप्शन और भ्रष्टाचार काफी चरम पर है.

थोड़ा सा पैसा देने पर ही मेडिकल चेपअप के दौरान आपको सेना में जरूरी नौकरी से छूट मिल जाती है. क्योंकि उत्तर कोरिया में सभी पुरूष नागरिकों के लिए सेना में कुछ साल अनिवार्य नौकरी है.युवक ने ये भी बताया कि उत्तर कोरिया के लोगों को सरकार के जरिए बताया जाता है कि दक्षिण कोरिया और अमेरिका मिलकर उनपर आक्रमण कर सकते हैं. इसीलिए वहां के तानाशाह पुरूष नागरिकों से अनिवार्य नौकरी कराते हैं और हथियारों का जखीरा इकठ्ठा करते हैं.

किम जोंग उन उत्तरी कोरिया का सबसे बड़ा नेता है उसे अपने पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया से नफरत है. उसकी नफरत के कई किस्से हैं. किम जोंग की नफरत की शिकार एक नन्हीं जिमनास्ट हुई थी. रियो ओलंपिक में उसने दक्षिण कोरिया की खिलाड़ी के साथ सेल्फी ली थी. किम जोंग ने जब सेल्फी वाली फोटो देखी तो उनसे अपने देश की खिलाड़ी के लिए सजा तय कर दी. हालांकि, कहा जाता है कि बाद में उसने लड़की को माफ कर दिया था. जोंग को गुस्सा इस बात का भी गुस्सा था कि उत्तर कोरिया के खिलाड़ियों ने दक्षिण कोरिया के खिलाड़ियों के मुकाबले कम मेडल जीते. किम जोंग उन उत्तरी कोरिया का सबसे बड़ा नेता है उसे अपने पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया से नफरत है. उसकी नफरत के कई किस्से हैं. किम जोंग की नफरत की शिकार एक नन्हीं जिमनास्ट हुई थी. रियो ओलंपिक में उसने दक्षिण कोरिया की खिलाड़ी के साथ सेल्फी ली थी. किम जोंग ने जब सेल्फी वाली फोटो देखी तो उनसे अपने देश की खिलाड़ी के लिए सजा तय कर दी. हालांकि, कहा जाता है कि बाद में उसने लड़की को माफ कर दिया था. जोंग को गुस्सा इस बात का भी गुस्सा था कि उत्तर कोरिया के खिलाड़ियों ने दक्षिण कोरिया के खिलाड़ियों के मुकाबले कम मेडल जीते.

2012 तक हर साल तीन हजार लोग उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया आते थे

हाना एनजीओ और कोरियाई इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल यूनिफिकेशन ने उत्तर कोरिया के शरणार्थियों पर जो रिसर्च किया है उसमें पाया है कि किम जोंग उन के गद्दी संभालने के बाद वहां से भागने वाले लोगों में कमी आई है. रिसर्च के मुताबिक, वर्ष 2012 तक हर साल करीब ढाई से तीन हजार लोग उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया आते थे. लेकिन उसके बाद से संख्या में कमी आई है. अब हर साल करीब एक से डेढ़ हजार लोग ही आ पाते हैं. क्योंकि जिस चीन सीमा के जरिए उत्तर कोरिया के लोग दक्षिण कोरिया आते थे, वहां अब किम जोंग उन ने कटीली तार लगवा दी हैं. साथ ही चीन सीमा पर चौकसी भी कड़ी कर दी गई है. इसीलिए लोग  वहां से नहीं भाग पाते हैं.

चीन सीमा पर चौकसी कड़ी होने के बावजूद उत्तर कोरिया के लोग दक्षिण कोरिया की सीमा से भी भागने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले महीने ही उत्तर कोरिया का एक सैनिक किस तरह से डि-मिलिट्राइजेड जोन यानि डीएमजेड़ से भागकर दक्षिण कोरिया आया वो सभी ने देखा. लेकिन उत्तर कोरिया की सेना नहीं चाहती थी कि वो सैनिक भागकर दक्षिण कोरिया जाए, इसलिए उसे गोली मार दी गई. ये सारी कारवाई डीएमजेड में लगे कैमरों में कैद हो गई थी. ये सैनिक अभी सियोल के अस्पताल में भर्ती है और उसने दक्षिण कोरिया आने पर अपनी खुशी जाहिर की है. माना जा रहा है कि वो उत्तर कोरिया की सेना में सैनिकों के साथ होने वाले व्यवहार से काफी दुखी था और इसीलिए वो डीएमजेड में लगे दक्षिण कोरिया के लाउडस्पीकर से प्रभावित होकर जान जोखिम में डालकर दक्षिण कोरिया की सीमा में भाग आया.

सेना में तैनात सैनिक भी तानाशाह से खुश नहीं है

ये सच है कि उत्तर कोरिया की सेना में तैनात सैनिक भी वहां के तानाशाह से खुश नहीं है. इस बात का खुलासा एबीपी न्यूज से कुछ महीने पहले वहां की नौसेना में काम कर चुकी एक महिला कैप्टन ने भी किया था. उसने बताया था कि वहां सैनिकों को ना तो सैलरी मिलती है और ना ही भरपेट खाना. ये महिला अधिकारी भी सेना छोड़ने के बाद उत्तर कोरिया से चीन और थाईलैंड के रास्ते दक्षिण कोरिया भाग आई थी.

साफ है कि उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन परमाणु हथियार और बैलेस्टिक मिसाइल बनाने में मशगूल है. लेकिन अपने नागरिकों के सुख-दुख का उसे कोई ध्यान नहीं है. वो देश की आम महिलाओं और लड़कियों को तो स्कर्ट पहनने नहीं देता है. लेकिन वो खुद ऐसी लड़कियों से घिरा रहता है जो छोटी स्कर्ट पहने देखी जा सकती हैं. वो खुद तो ठहाके लगाकर हंसता है लेकिन उसके देशवासियों के पास सिवाय आंसूओं के कुछ नहीं है.

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