नई दिल्ली: पाकिस्तान FATF में ब्लैक लिस्ट हो जाता अगर उसे तुर्की, मलेशिया और चीन का सहयोग नहीं मिलता. FATF की ब्लैक लिस्ट से बचने के लिए 39 में से कम से कम 3 देशों का समर्थन जरूरी होता है. तीनों देशों ने आतंक के खिलाफ पाकिस्तान के कदमों की तारीफ की और पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट होने से बचा लिया और यही है इमरान खान के इस्लाम का राग अलापने के पीछे की वजह.
चीन FATF संस्था का मौजूदा अध्यक्ष है. इस्लामिक देश तुर्की और मलेशिया दोनों संयुक्त राष्ट्र में भी कश्मीर के मसले पर इमरान के सुर में सुर मिला चुके हैं. इमरान इस्लामिक देश के तौर पर समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं और जब तुर्की और मलेशिया समर्थन देते हैं तो इमरान इस्लामिक एजेंडे में कामयाब हो जाते हैं.
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तुर्की और मलेशिया तो इस्लामिक देश हैं लेकिन चीन ने पाकिस्तान की मदद क्यों की? चीन के पाकिस्तान को बचाने के पीछे अपना स्वार्थ है. अगर पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट हो जाता तो सीपैक कॉरिडोर की महात्वाकांक्षी योजना फंस जाती जिसमें पाकिस्तान से सड़क का वो रास्ता तैयार हो रहा है जो ग्वादर से चीन तक जाएगा.
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सीपेक के लिए पाकिस्तान ने चीन से 62 अरब डॉलर यानि 4 लाख 41 हजार करोड़ का कर्ज लिया है. पाकिस्तान की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि वो चीन से लिए इस कर्ज को लौटा नहीं सकता. इसका मतलब ये है कि चीन पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे पर कब्जा कर सकता है.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान गुरुवार को कामयाब जवान प्रोग्राम की शुरुआत कर रहे थे यानि वो कार्यक्रम जिसमें देश के युवाओं को पाकिस्तान के विकास का हिस्सा बनाना है लेकिन इस कार्यक्रम में इमरान खान सिर्फ इस्लाम धर्म की बात कर रहे थे.
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21 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में 33 लाख की हिंदू आबादी भी रहती है लेकिन जिस देश का प्रधानमंत्री खुलेआम सिर्फ एक धर्म की बात करता हो उसकी नीयत आप समझ सकते हैं. इमरान खान आतंक के प्रति अपनी सोच बदलते तो शायद पाकिस्तान की जीडीपी ग्रोथ 5.5 फीसदी से गिरकर 3 फीसदी पर ना पहुंची होती.