NATO में शामिल होना चाहते हैं स्वीडन और फिनलैंड, तुर्की ने लगाया अड़ंगा, जानें क्यों खफा अर्दोआन?
Sweden और Finland ने यूक्रेन पर रूस के हमले शुरू होने के बाद नाटो सदस्य बनने के लिए अर्जी दी थी, जिस पर तुर्की ने कथित तौर पर अड़ंगा लगाया हुआ है. आखिर क्या है मामला, आइये जानते हैं.
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NATO News: 28 यूरोपीय और 2 उत्तरी अमेरिकी देशों वाले अंतर-सरकारी सैन्य संगठन 'नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ओर्गनाइजेशन' (NATO) में शामिल होने के लिए स्वीडन और फिनलैंड संघर्ष कर रहे हैं. दोनों देशों ने रूस-यूक्रेन की जंग (Russia-Ukraine War) छिड़ने के बाद नाटो में शामिल होने की अर्जी दी थी. 28 देश अर्जी को हरी झंडी दे चुके हैं लेकिन तुर्की और हंगरी ने अब तक सहमति नहीं जताई है. मेंबरशिप के लिए सभी 30 देशों की सहमति जरूरी है. ऐसे में स्वीडन और फिनलैंड कब नाटो का हिस्सा बनेंगे, इस बारे में उनकी उम्मीदें अधर में ही लटकी हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन (Recep Tayyip Erdogan) ने अपनी कुछ शर्तों के चलते स्वीडन और फिनलैंड के नाटो सदस्य बनने के रास्ते में अड़ंगा लगाया है. आखिर क्या है मामला, आइये जानते हैं.
इस वजह से खफा हैं अर्दोआन
स्वीडन और फिनलैंड से अर्दोआन की नाराजगी की वजह कुर्दों को लेकर हैं. बता दें कि तुर्की और मेसोपोटामिया के मैदानी इलाकों, उत्तर-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक, उत्तर-पश्चिमी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी आर्मेनिया के पहाड़ी इलाकों में वर्षों से एक बड़ा जातीय समूह रहता आ रहा है. इसे कुर्द के नाम से जाना जाता है. कुर्द अपना अलग देश कुर्दिस्तान बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. कुर्दों की लड़ाई के लिए 1978 में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) अस्तित्व में आई. बाद में इस पार्टी ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया. तुर्की इसे आतंकी गुट बताता है और संगठन पर देश में प्रतिबंध लगाया हुआ है.
तुर्की के मुताबिक, पीकेके में शामिल तुर्की के करीब डेढ़ सौ लोग स्वीडन और फिनलैंड में हैं. तुर्की ने शर्त रखी है कि अगर स्वीडन और फिनलैंड नाटो की अर्जी में उसकी सहमति चाहते हैं तो पहले वे उन 150 लोगों को उसके (तुर्की के) हवाले करें. वहीं, स्वीडन और फिनलैंड तुर्की की मांग पर यह कहते आए हैं कि पीकेके सदस्यों के प्रत्यर्पण पर अदालत फैसला लेगी. इस मसले पर तुर्की के साथ स्वीडन और फिनलैंड की बातचीत होती रही है. अगली बातचीत फरवरी यानी इस महीने प्रस्तावित है लेकिन फिलहाल संवाद नहीं हो रहा है.
नाराजगी की एक वजह ये भी
अर्दोआन के खफा होने की एक वजह यह बताई जाती है कि जनवरी में स्वीडन और फिनलैंड में तुर्की की सेना के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. कुर्दों पर तुर्की सेना के हमले के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा था. इस दौरान अर्दोआन के पुतले को फंदे पर लटकाया गया था. इन घटनाओं को देखते हुए अर्दोआन ने स्वीडन और फिनलैंड के साथ वार्ताएं रद्द कर दी थीं.
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