RecepTayyip Erdogan Vs Kemal Kilicdaroglu: तुर्किए के आधुनिक इतिहास के सबसे निर्णायक चुनावों को लेकर रविवार (14 मई) को वोटिंग हुई. ये चुनाव इस मायने में भी अहम हैं क्योंकि इसके नतीजों के बाद ही यह तय होगा कि 20 साल सत्ता पर काबिज रहे इस मुल्क के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन कुर्सी पर बने रहेंगे या नहीं. ‘अल जजीरा’ टीवी चैनल की रिपोर्ट कहती है कि यहां अच्छी खासी वोटिंग हुई है, लेकिन आधिकारिक तौर पर वोटिंग कितनी फीसदी हुई है इस पर अभी स्थिति साफ नहीं है.


यहां चुनाव के नतीजों को आने में 3 दिन भी लग सकते हैं. जहां 69 साल के राष्ट्रपति अर्दोआन ने वोटिंग के बाद समर्थकों को मतदान पेटियों की हिफाजत करने और उन पर नजर रखने को कहा है. वहीं उनके अहम प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू ने राष्ट्रपति अर्दोआन के 2016 में एक नाकाम तख्तापलट से बचने के बाद हासिल की गई कई शक्तियों को रद्द करने का वादा किया है.


कैस बदला 20 साल में तुर्किए?


74 साल के कलचदारलू के जीतने का एक वास्तविक मौका भी है,क्योंकि 29 अक्टूबर,1923 में बने तुर्किए गणराज्य के कई वोटर दो दशक बाद बदलाव के तौर पर इस चुनाव को देख रहे हैं. इस मुल्क के साढ़े आठ करोड़ बाशिंदों को दो मुद्दों बढ़ती महंगाई और भूकंप ने खासा परेशान किया है. इस मुल्क के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क थे. उन्हें आधुनिक तुर्की का संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष और तुर्क राष्ट्रवादी मुल्क के तौर पर इस गणराज्य की नींव रखी थी.


तब इस्लामिक कानून पर चलने वाले 'दौर-ए-उस्मानिया' के तुर्क साम्राज्य का पतन हो गया था, लेकिन बीते 20 सालों में तुर्किए अतातुर्क के बनाए तुर्किए गणराज्य से बिल्कुल अलग मुल्क में तब्दील हो गया. माना जाता है कि 2003 में राष्ट्रपति अर्दोआन के हुकूमत की कमान संभालने के बाद से ही वो इस मुल्क को रूढ़िवादी सोच वाला बनाने की कोशिशों में हैं. यहां अर्दोआन 2003 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे बाद में वो राष्ट्रपति बने.


उधर दूसरी तरफ उनके प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू ने इस नाटो सदस्य मुल्क को एक पश्चिमी समर्थक अधिक लोकतांत्रिक रुख वाले दौर में वापस लाने का वादा किया है. वहीं राष्ट्रपति अर्दोआन की इस्लामवादी सरकार ने पश्चिमी देशों पर उनकी सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया है.



सत्ता में बदलने को आतुर तुर्किए के लोग


यहां सत्ता को बदलने के लिए लोग इतने आतुर हैं कि वो मतदान केंद्रों के खुलने से पहले ही कतार में लग गए. फरवरी में आए भूकंपों से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक अंताक्या से आपदा से विस्थापित लोगों को लाने के लिए 100 से अधिक बसें लगाई गई थीं, ताकि वे मतदान कर सकें. इससे इस मुल्क के 11 प्रांत सबसे अधिक  प्रभावित हुए हैं.


रविवार को हुए मतदान में सीधे जीत हासिल करने के लिए विजेता को 50 फीसदी से अधिक मतों की जरूरत होती है. अन्यथा यह दो हफ्ते के वक्त में रन-ऑफ हो जाता है. मतलब कि एक टाई या अनिर्णायक नतीजों के बाद आगे लिए चुनाव होना. दरअसल पहले दौर में चुनाव जीतने के लिए एक उम्मीदवार को 50 फीसदी से अधिक वोटों की जरूरत होती है. वहीं जरूरत होने पर तुर्किए में चुनाव का दूसरा चरण 28 मई को होगा. 


तुर्किए की 600 सीटों की संसद में जाने के लिए एक पार्टी के पास 7 फीसदी वोट होना जरूरी है. वोटों की पर्याप्त संख्या वाले गठबंधन का हिस्सा होने पर भी पार्टी को संसद में प्रवेश मिल सकता है. यहां ये नियम है कि एक शख्स केवल दो टर्म तक ही राष्ट्रपति बन सकता है और अर्दोआन के ये टर्म पूरे हो चुके हैं. यहां 2017 में राष्ट्रपति के हकों को लेकर रेफरेंडम लाया गया था. इस वजह से अर्दोआन का पहला टर्म  जल्दी खत्म हो गया था. यहीं वजह रही की वह  तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल हैं. 


कमाल कलचदारलू ने अंकारा स्कूल के खचाखच भरे मतदान केंद्र पर पहुंचने पर "सब ठीक हो जाएगा" का नारा लगाया. इस दौरान एक वोटर ने "दादाजी" कहकर उन्हें पुकारा. उनका ये नाम वहां युवा मतदाताओं के लिए प्यार का लफ्ज बन गया है. इस दौरान उनका स्वागत करने अपने दोस्त पिल्ले के साथ आई एक वोटर सिमा ने कहा कि वह 20 से अधिक साल के बाद बदलाव के विचार से उत्साहित हैं.




कलचदारलू को क्यों कहते हैं तुर्किए में गांधी? 


तुर्किए में राष्ट्रपति अर्दोआन को इस बार कलचदारलू कड़ी टक्कर दे रहे हैं. यहां छह विपक्षी दलों ने मिलकर रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के नेता कमाल कलचदारलू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. वो पोल्स में अर्दोआन से बढ़त बनाए रहे हैं. वो वहां 'तुर्क गांधी' के नाम से मशहूर हैं. तुर्किए का लोकल मीडिया उन्हें ‘गांधी कमाल’ कहता है. महात्मा गांधी की तरह ही चश्मा पहनने के साथ ही उनका राजनीतिक स्टाइल भी विनम्रता भरा है.


गांधी जी की दांडी यात्रा से प्रेरणा लेकर कमाल ने 2017 में अर्दोआन के खिलाफ अंकारा से इस्तांबुल तक (450 किमी) ‘मार्च फॉर जस्टिस’ निकाला था. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इसमें 10 लाख से अधिक लोगों ने शिरकत की थी. तब अर्दोआन की सरकार ने 2 लाख लोगों को जेलों में ठूंस दिया था. आलम ये हुआ था कि मुल्क की सभी 372 जेलों में लोगों को रखने के लिए जगह नहीं बची थी. 


कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ रहे अर्दोआन


तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन का हमेशा ही कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के लिए नरम रुख रहा है. वो हमेशा इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते आ रहे हैं. यहां तक की फरवरी में यहां आए विनाशकारी भूकंप में भारत की मदद को भी उन्होंने दरकिनार कर दिया. दरअसल भारत ने भूकंप के दौरान तुर्किए में ऑपरेशन दोस्त ही नहीं चलाया, बल्कि उसे हर तरह की मदद की.


अर्दोआन कहते रहे हैं कि कश्मीर का हल संयुक्त राष्ट्र (UN) के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए. बीते साल 2021 ही रहा जब वो यूएन में कश्मीर के मामले पर तटस्थ रहे थे. तब उन्होंने कहा, " 75 साल पहले भारत और पाकिस्तान आजाद हुए, लेकिन दोनों मुल्कों के बीच अमन-चैन एकता कायम नहीं हो पाई. हम उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही कश्मीर में उचित और स्थायी तौर पर अमन कायम होगा." 


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