भारत के खिलाफ एर्दोगन का मास्टर प्लान! तुर्किए पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर क्या कर रहे प्लानिंग
रेचेप तैयप एर्दोगन की इस्लामिक दुनिया का नेता बनने की महत्वाकांक्षा बांग्लादेश पर केंद्रित है. तुर्किए ने बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ाते हुए भारत की भूमिका को बदलने की योजना बनाई है
Turkey-Bangladesh Strategy: तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन की महत्वाकांक्षा तुर्किए को इस्लामिक दुनिया का नेता बनाने की है. इस दिशा में उनका ध्यान बांग्लादेश पर केंद्रित है. प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में हुए राजनीतिक बदलावों के कारण एर्दोगन को वहां अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर दिख रहा है. तुर्किए अब बांग्लादेश में भारत की घटती भूमिका का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय ताकतों के बीच नया समीकरण उभर सकता है.
हाल के वर्षों में तुर्किए ने बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति को तेजी से बढ़ाया है. तुर्किए ने व्यापार, रक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया है. तुर्किए के व्यापार मंत्री ओमेर बोलात के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने 9 जनवरी, 2025 को बांग्लादेश के अंतरिम सरकार प्रमुख मोहम्मद यूनुस से मुलाकात की. इस मुलाकात ने यह स्पष्ट किया कि तुर्किए बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को और गहरा करने के लिए तैयार है, खासकर तब जब भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध कमजोर हो गए हैं.
बांग्लादेश में निवेश करने का अनुरोध
चर्चा के दौरान मोहम्मद यूनुस ने तुर्किए से बांग्लादेश में निवेश करने का अनुरोध किया और तुर्किए से उनके देश के युवा कार्यबल का उपयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही उन्होंने तुर्किए से बांग्लादेश के रक्षा उद्योग को विकसित करने में मदद की मांग की, जिससे क्षेत्र में नई शक्ति संतुलन उभर सकता है.
बांग्लादेश में तुर्किए का रक्षा सहयोग
तुर्किए-बांग्लादेश वार्ता के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की संभावनाएं थीं. मोहम्मद यूनुस ने खुलकर कहा, "आप प्रौद्योगिकी के नेता हैं. आप यहां रक्षा उद्योग स्थापित कर सकते हैं. चलिए शुरुआत करते हैं." यह बयान बांग्लादेश की रक्षा क्षमता को मजबूत करने की उसकी इच्छा को दर्शाता है, और तुर्किए इस परिवर्तन में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार है.
तुर्किए के व्यापार मंत्री ओमेर बोलात ने इस सहयोग की संभावनाओं पर जोर दिया और कहा कि दोनों देश कपड़ा उद्योग से परे जाकर अपने सहयोग का विस्तार कर सकते हैं. तुर्किए ने पहले से ही बांग्लादेश को ड्रोन आपूर्ति की है और अब दोनों देशों के बीच 26 तुलपर लाइट टैंक हासिल करने के लिए बातचीत हो रही है. यह सहयोग तुर्किए-बांग्लादेश संबंधों को एक नई दिशा में ले जा रहा है, जहां तुर्किए बांग्लादेश के प्रमुख रक्षा सहयोगी के रूप में उभर रहा है.
भारत की जगह लेने की तुर्किए की योजना
तुर्किए की महत्वाकांक्षा केवल रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं है. अंकारा अब बांग्लादेश के आयात बाजार में भारत की जगह लेने की योजना बना रहा है. ओमेर बोलात ने स्पष्ट रूप से कहा, "हम बांग्लादेश के आयात में भारत और अन्य बाजारों की जगह ले सकते हैं." तुर्किए आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में बांग्लादेश के साथ व्यापक सहयोग स्थापित करने का इच्छुक है. वर्तमान में, बांग्लादेश में लगभग 20 प्रमुख तुर्किए कंपनियां विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जिनमें कपड़ा, रसायन, इंजीनियरिंग और ऊर्जा शामिल हैं.
तुर्किए-पाकिस्तान-बांग्लादेश गठजोड़
तुर्किए का बांग्लादेश में बढ़ता प्रभाव हाल ही में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के बाद देखा जा सकता है. इस समझौते के तहत दोनों देशों की नौसेनाएं 2025 के फरवरी महीने में सैन्य अभ्यास करेंगी, जो 1971 के बाद से पहली बार हो रहा है. यह गठजोड़ न केवल क्षेत्रीय संबंधों में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है, बल्कि भारत के लिए एक नई चुनौती भी है. तुर्किए-पाकिस्तान-बांग्लादेश का यह नया गठजोड़ भारत के लिए रणनीतिक रूप से चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है. इस गठजोड़ से इन देशों के बीच सैन्य और रक्षा सहयोग और भी मजबूत हो सकता है, जो भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चुनौती बन सकता है.
भारत के लिए क्या है खतरा?
तुर्किए के बांग्लादेश के साथ बढ़ते संबंध और पाकिस्तान के साथ उसके गहरे रिश्ते भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं. दशकों से भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत व्यापार और रक्षा सहयोग रहा है, लेकिन हाल के राजनीतिक बदलावों और बांग्लादेश की विदेशी साझेदारियों में विविधता लाने की रुचि के कारण भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है.
तुर्किए की रक्षा तकनीक
तुर्किए की रक्षा तकनीक और उपकरणों जैसे ड्रोन और टैंकों की आपूर्ति, बांग्लादेश की सैन्य क्षमताओं को मजबूत कर सकती है, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है. भारत को इस उभरते हुए समीकरण का सावधानीपूर्वक आकलन करना होगा और अपनी क्षेत्रीय रणनीति में बदलाव करना होगा ताकि वह इस चुनौती का सामना कर सके.
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