Turkiye Presidential Election 2023: इस्लामिक मुल्क तुर्किये (तुर्की) में रविवार 28 मई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहली बार वोटिंग का एक और दौर होने जा रहा है. यहां बीते 14 मई को भी वो​ट डाले गए थे, लेकिन तब किसी भी उम्मीदवार को 50% से ज्यादा वोट नहीं मिले थे, जिससे रन-ऑफ दौर की नौबत आ गई. मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) को फर्स्ट फेज की वोटिंग में अपने प्रतिद्वंदी कमाल केलिकदारोग्लू (Kemal Kilicdaroglu) से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा.


कमाल केलिकदारोग्लू 74 साल के पूर्व नौकरशाह हैं. उनको "तुर्किये का गांधी" माना जाता है. स्थानीय मीडिया उन्हें ‘गांधी कमाल’ कहता है. वह महात्मा गांधी की तरह ही चश्मा पहनते हैं, उन्हीं की तरह राजनीतिक शैली भी विनम्र है. तुर्किये में मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) की ओर से उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में रेसेप तैयप एर्दोगन के ख़िलाफ़ खड़ा किया गया.




20 साल से सत्ता पर काबिज़ रेसेप का विजय रथ रोका
अब कमाल की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि उन्हें तुर्किये में 6 विपक्षी दलों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया है. जिसके चलते वो तुर्किये में पिछले 20 साल से सत्ता पर काबिज़ राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. तुर्किये में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए किसी उम्मीदवार को 50% वोट चाहिए होंगे, लेकिन कमाल के बढ़ते प्रभाव की वजह से एर्दोगन इतने वोट हासिल नहीं कर पाए. पहले राउंड की वोटिंग में उन्हें 49.52% वोट ही मिल सके. जिसके चलते एर्दोगन दोबारा जोर लगा रहे हैं. कल यानी कि 28 मई को वहां एक बार फिर वोटिंग होगी.


महात्मा गांधी की तरह सैकड़ों किमी की पदयात्रा
तुर्किये में एर्दोगन की छवि जहां एक सख्त इस्लामिक लीडर की है, वहीं कमाल केलिकदारोग्लू की पहचान अब ‘तुर्किये के गांधी’ के तौर पर बन चुकी है. कमाल ने वहां महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह आंदोलन का ही तरीका अपनाया. उन्होंने अंकारा से इस्तांबुल तक 450 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करके राष्ट्रपति एर्डोगन की निरंकुशता के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करते हुए लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा. इसी तरह वह विपक्ष के एक बड़े नेता बनकर उभरे. 


लोकतंत्र की वकालत करने वाली बड़ी आवाज
कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कमाल की इमेज एक ईमानदार और विनम्र नेता की है और चूंकि वह देश में नागरिक आधिकार, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की वकालत करने की एक बड़ी आवाज माने जाते हैं, तो वो एर्दोगन को हरा सकते हैं. यही वजह है कि जब उन्हें छह-दलीय विपक्षी गठबंधन की ओर से नेता चुना गया तो पूरे देश में उनके समर्थकों का जोश व उत्साह सातवें आसमान पर था. 


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