Turkish Presidential Election 2023: पश्चिम एशियाई देश तुर्किये (तुर्की) में राष्ट्रपति पद के चुनाव में मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) को जीत नहीं मिली. वहीं, उनके मुकाबले में 6 विपक्षी दलों की ओर से घोषित उम्‍मीदवार कमाल केलिकदारोग्लू (Kemal Kilicdaroglu) को भी बहुमत नहीं मिला. बहुमत न मिलने पर अब तुर्किये में दोबारा राष्ट्रपति पद के चुनाव की संभावना है.


तुर्किये की अनादोलु एजेंसी के मुताबिक, अब देश में 28 मई को फिर से चुनाव होंगे. दोबारा चुनाव कराने की वजह यह है कि वोटों की काउंटिंग में कोई भी उम्मीदवार 50% से अधिक वोट हासिल नहीं कर पाया. जबकि, राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए  50% से अधिक वोट चाहिए होंगे. अनादोलू के शुरूआती परिणामों में तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन विपक्षी प्रतिद्वंद्वी कमाल केलिकदारोग्लू की तुलना में आगे थे, लेकिन फिर अंतर कम होता चला गया. बता दें कि कमाल केलिकदारोग्लू को तुर्किये का गांधी माना जाता है. इसलिए लोग उन्हें 'कमाल गांधी' भी कहते हैं.


दो सप्ताह में फिर कराया जाएगा मतदान
तुर्कियन प्रेसिडेंट इलेक्शन फॉरकास्ट (600vekil.com) के ओपनियन पोल में रविवार, 14 मई की सुबह को कमाल केलिकदारोग्लू को फर्स्ट राउंड में 49.3% जबकि एर्दोगन को 47% वोट मिलते दिखाए गए थे. उसके बाद अधिकांश मतों की गिनती होने पर एर्दोगन ने दावा किया कि वह अभी भी देश का राष्ट्रपति चुनाव जीत सकते हैं. उन्होंने कहा कि यदि ये चुनाव दो सप्ताह में फिर से कराए जाते हैं तो वे देश के उस फैसले का भी सम्मान करेंगे. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, एर्दोगन उन दो हफ्तों का इस्तेमाल अपने वोटर्स को मनाने में करेंगे. 





  • एर्दोगन 20 सालों में से 11 साल तक तुर्किये के प्रधानमंत्री और 9 साल तक राष्ट्रपति रहे हैं.


भारत विरोधी, पाकिस्तान समर्थक रहे हैं एर्दोगन
पिछले करीब 20 वर्षों से तुर्किये की सत्ता में काबिज रेसेप तैयप एर्दोगन का रवैया भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक रहा है. उन्होंने हमेशा कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के समर्थन वाली भाषा बोली. उन्होंने यूएन में कहा था कि कश्मीर में अवाम पर जुल्म हो रहे हैं. उसका निपटारा यूएन चार्टर के मुताबिक होना चाहिए.


भूकंप से मची तबाही का चुनाव पर बड़ा असर
गौरतलब है कि तु​र्किये में इसी साल फरवरी के महीने में 7.8 तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया था. उस भूकंप ने वहां करीब 50 हजार लोगों की जानें ले लीं. भूकंप का 11 शहरों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था. जिनमें से 8 शहरों को एर्दोगन का गढ़ माना जाता है. पिछले 2 चुनावों में उन्हें इन शहरों से 60% से ज्यादा वोट मिले थे. मगर, इस बार एर्दोगन नहीं जीत पाए. भूकंप से तुर्किये की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा बुरा असर पड़ा है. देश में विस्थापन और बेरोजगारी काफी बढ़ गई. लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके पास अपने पक्के घर नहीं बचे हैं.


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