भारत में वक्फ बोर्ड, पर्सनल लॉ बोर्ड, मंदिरों के लिए कुछ क्यों नहीं? पाकिस्तानी एक्सपर्ट ने UCC को लेकर उठाए सवाल
धीरज शर्मा ने कहा कि भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों को सिर्फ समान नहीं उससे भी ज्यादा अधिकार दिए हैं. इस वजह से यहां अल्पसंख्यक अच्छी स्थिति में हैं और वह सिर्फ सरवाइव नहीं कर रहे बल्कि संपन्न हैं.
UCC in India: यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मुद्दा भारत में ही नहीं पाकिस्तान में भी चर्चा का विषय बना हुआ है. पाकिस्तान के एक एक्सपर्ट ताहिर गोरा ने भी इस पर बात की. उन्होंने कहा कि भारत में मुस्लिमों के लिए वक्फ बोर्ड और पर्सनल लॉ बोर्ड है, लेकिन मंदिरों के लिए इस तरह का कोई बोर्ड नहीं है.
ताहिर गोरा ने अपने यूट्यूब चैनल पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर धीरज शर्मा से इन मुद्दों को लेकर चर्चा की. धीरज शर्मा ने कहा कि यूसीसी की इस समय काफी जरूरत है. साथ ही वक्फ बोर्ड और पर्सनल लॉ बोर्ड पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इन बोर्ड्स में किसी नॉन-मुस्लिम को अपॉइंट नहीं किया जाता, जबकि हिंदू मंदिरों की ट्रस्ट में नॉन-हिंदू भी मिलेंगे. धीरज शर्मा ने कहा कि दूसरे देशों में माइनॉरिटी मैजॉरिटी को एक्वायर या ग्रहण करती है, लेकिन भारत इकलौता ऐसा देश है, जहां मैजॉरिटी ने माइनॉरिटी को एक्वायर किया है.
संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए समान से भी ज्यादा अधिकार हैं, बोले धीरज शर्मा
धीरज शर्मा ने संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करते हुए कहा कि भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए समान अधिकार नहीं हैं, बल्कि समान अधिकार से भी ज्यादा दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि संविधान में दो चीजें हैं. एक तो कॉमन डोमेन हैं, जिसमें सभी नागरिकों के लिए कुछ अधिकार हैं और अलग से डोमेन है, जिसमें अल्पसंख्यकों को अलग से कुछ और अधिकार मिले हैं. इसकी वजह से अल्पसंख्यक भारत में सिर्फ जी नहीं रहे हैं, बल्कि संपन्न भी हैं.
वक्फ बोर्ड में कोई नॉन-मुस्लिम अपॉइंट नहीं हो सकता?
ताहिर गोरा ने सवाल किया कि मस्जिदों और मुस्लिम प्रॉपर्टी और उनके रेवेन्यू को वक्फ बोर्ड कंट्रोल करता है, लेकिन मंदिरों के लिए ऐसी कोई संस्था नहीं है. उन्हें सीधा सरकारें डायरेक्ट करती हैं. इस पर प्रोफेसर धीरज शर्मा ने कहा कि वक्फ बोर्ड की तो राज्य स्तर पर छोड़िए, जिला स्तर और मंडल स्तर पर कमेटी होती हैं, जिनमें आपको कोई नॉन-मुस्लिम नहीं मिलेगा, सिर्फ मुस्लिम ही अपॉइंट होगा. उन्होंने आगे कहा, 'कितने ही हिंदू मंदिर के ट्रस्ट में आपको नॉन-हिंदू मिल जाएंगे. अमरनाथ से तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट है, जो सबसे बड़ी ट्रस्ट में से एक है. इन सब में जो बोर्ड हैं उनमें सिविल सर्वेंट से लेकर राजनेताओं और नौकरशाहों को दखल होता है.'
धीरज शर्मा ने कहा, भारत अकेला देश जहां मैजॉरिटी ने माइनॉरिटी को एक्वायर किया
धीरज शर्मा ने कहा, 'आप देखेंगे कि कनाडा में हमारे पंजाब के लोग वहां जाते हैं तो वह कनाडा के कल्चर को फॉलो करते हैं और नाम भी वहीं के हिसाब से रखते हैं. वहां माइनॉरिटी मैजॉरिटी को एक्वायर करती है या ग्रहण करती है. भारत एक अकेला ऐसा देश है, जहां मैजॉरिटी माइनॉरिटी को एक्वायर करती है.' उन्होंने आगे कहा कि अगर आप पंजाब जाएंगे तो वहां लोग नमस्ते नहीं सत श्री अकाल बोलते हैं या जम्मू-कश्मीर जाएंगे तो वहां ज्यादातर अस्सालुमअलैकुम बोलते हैं और हिंदू उन्हें नमस्ते नहीं कहते, वह भी सत श्री अकाल या अस्सालुमअलैकुम में ही जवाब देते हैं.
धीरज शर्मा ने कहा, 'बाहर के देशों में सभी धर्मों के लोग भी वहां के फेस्टिवल मनाते हैं. मुझे ऐसा लगता है कि सच्ची संस्कृति वो है जब सब लोग भारत के बड़े त्योहारों को सेलिब्रेट करें. वक्फ बोर्ड इसका उदाहरण है, जहां सरकारों ने कई सालों तक कई संशोधन करके उन्हें इमारतों और प्रॉपर्टी के अधिकार दिए. ऐसे कई सारे वाकिए हैं.' प्रोफेसर धीरज शर्मा ने कहा, 'अगर आप भारत में सर्वे करवा लें न तो आप देखेंगे कि एक शामलात जमीन बोली जाती है, जिस पर लोग अपनी रिलिजियस चीज रख देते थे और वह जगह धार्मिक स्थल बन जाती थी. फिर उसको खाली करवाना असंभव हो जाता था. आप आम लोगों से पूछ सकते हैं कि कैसे खाली जमीनों के ऊपर धार्मिक स्थल बनाए जाते हैं.'
UCC इस समय की जरूरत है, बोले धीरत शर्मा
ताहिर गोरा ने कहा, 'तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेक्यूलरिज्म को संविधान में घसीटा और फिर साथ ही सरकारें मुस्लिम पर्नल लॉ ला रहे हैं, जिसे मैं सेमी शरिया लॉ भी कह सकता हूं, जिसका सेक्यूलरिज्म के साथ कोई ताल्लुक ही नहीं था तो क्या ये एक बहुत बड़ा विरोधाभास साथ-साथ नहीं चल रहा था.' इस पर प्रोफेसर धीरज शर्मा ने कहा कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात हो रही है, जो इस समय की जरूरत है.
उन्होंने कहा, 'हम इक्वैलिट की बात करते हैं. मैं भारत सरकार से 2-3 स्टडी करवाना चाहूंगा. यहां भारत 75 साल से जो सिस्टम चला रहा है, उसमें मुस्लिमों को अपने धर्म आधारित एजुकेशनल इंस्टीट्यूट जैसे मदरसे बनाने का हक है. इसकी स्टडी होनी चाहिए कि 75 साल में इन इंस्टीट्यूट का मुस्लिमों के उत्थान में क्या योगदान है. क्या इनसे भारत के मुसलमानों को हायर एजुकेशन स्टैंडर्ड मिले. क्या ये हाई लेवल इंजीनियर, डॉक्टर या अन्य प्रोफेशनल बनाने के योग्य हैं. क्या ये बेस्ट, थिंकर्स या पॉलिसी मेकर्स बना सकते हैं. इनकी स्टडी होनी चाहिए.'
धीरज शर्मा ने आगे कहा, 'मुझे डर है कि इसके जो साक्ष्य हैं वह इस ओर संकेत करते हैं कि ऐसा नहीं हुआ है तो 75 सालों में मस्लिमों के लिए अल्पसंख्यक एजुकेशनल सिस्टम बनाने में जो काम हुए हैं वह शायद फेल हुए हैं. मुस्लिमों को इससे क्या फायदा मिला है. हो सकता है कि यूसीसी वह सिस्टम हो, जहां एजुकेशनल इंस्टीट्यूट सबके लिए हों और उन्हें इन धर्म आधारित इंस्टीट्यूट की तुलना में ज्यादा लाभ पहुंचाएं.'
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