Britain: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने सोमवार (13 नवंबर) को अपनी कैबिनेट में बड़ा बदलाव किया. इस दौरान उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी. उन्हें जेम्स क्लेवरली की जगह नया विदेश मंत्री नियुक्त किया गया है. वहीं, जेम्स क्लेवरवी को सुएला ब्रेवरमैन की जगह देश का गृह मंत्री नियुक्त किया गया है. सोमवार को ही सुनक ने भारतीय मूल की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन को बर्खास्त किया था. 


डेविड कैमरन ने विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति के बाद अपनी पहले बयान में कहा, "मैं पिछले सात साल से राजनीति से बाहर हूं, मुझे उम्मीद है कि मेरा अनुभव प्रधानमंत्री की मदद करने में मेरी सहायता करेगा." 


गौरतलब है कि कैमरन ने 2010 से 2016 बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला. इस दौरान वह अपने कई फैसलों की वजह से विवादों में रहे. आज हम आपको उनके कुछ ऐसे ही विवादित फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं. 


लीबिया में नाटो के बल प्रयोग का फैसला 
डेविड कैमरन ने साल 2011 में फ्रांस के साथ मिलकर लीबिया में हवाई हमले किए. उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा था कि तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी की सेनाओं को उखाड़ फेंकने में ब्रिटेन की भूमिका पर उन्हें गर्व है. हालांकि, कैमरन को अपने इस फैसले की वजह से जमकर आलोचना झेलनी पड़ी थी. 


दरअसल, गद्दाफी के तख्तापलट के बाद लीबिया में हिंसा बढ़ गई. इतना ही नहीं वहां इस्लामिक स्टेट ने भी अपने पैर जमा लिए. वहीं, विदेशी मामलों की समिति ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन पर हवाई अभियान के लिए सुसंगत रणनीति की कमी का आरोप लगाया. समिति ने कहा कि उन्हें हस्तक्षेप के बारे में सटीक खुफिया जानकारी नहीं दी गई थी और इससे उत्तरी अफ्रीका में तथाकथित इस्लामिक स्टेट का उदय हुआ.


चीनी राष्ट्रपति के साथ कैमरन की बियर वाली तस्वीर 
डेविड कैमरन ने अपने पीएम कार्यकाल में चीन के साथ ब्रिटेन के संबंधों के स्वर्ण युग की शुरुआत की. कैमरन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संबंधों को बेहतर बनाने और ट्रेड को मजबूत करने के लिए साल 2015 में गोल्डन एरा पॉालिसी बनाई थी. जिसकी घोषणा डेविड कैमरन ने शी जिनपिंग की ब्रिटेन विजिट से पहले कर दी थी.


हालांकि, आठ साल बाद सुनक ने चीन से संबंधों में बदलाव को लेकर रणनीति को बदलने की बात कही. उन्होंने कहा कि चीन लगातार दुनिया में अपने दबदबे के लिए हर ताकत का इस्तेमाल कर रहा है. इसी दौरान शी जिनपिंग और डेविड कैमरन की एक फोटों भी खूब चर्चा में रही थी, जिसमें दोनों नेताओं के हाथ में बियर भरी ग्लास थी.


हाल के दिनों में दोनों देशों के रिश्ते खराब हुए हैं. विपक्ष लगातार सुनक पर आरोप लगाता रहा है कि वो चीन को लेकर सख्त नीति नहीं अपना रहे हैं. 


जनमत संग्रह के बाद दिया था इस्तीफा 
गौरतलब है कि 57 वर्षीय कैमरन ने  ‘ब्रेक्जिट' (यूरोपीय संघ से अलग होने पर) जनमत संग्रह के बाद 2016 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इतना ही नहीं इसके बाद भी उन्होंने कहा कि उन्हें जनमत संग्रह करवाने का कोई अफसोस नहीं है. यह वादा उन्होंने 2015 के आम चुनाव से पहले किया था.


वीटो का इस्तेमाल कर आलोचकों के निशाने पर आ चुके हैं कैमरन
इससे पहले कैमरन को 2011 में उस समय कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी, जब उन्होंने नई ईयू-व्यापार संधि रोकने के लिए वीटो का इस्तेमाल किया था. इसको लेकर तत्काली प्रधानमंत्री ने कहा था कि उन्होंने ये फैसला देश हित में लिया है.


गाजा पट्टी को 'एक जेल शिविर' कह फंसे थे कैमरन
2010 में डेविड कैमरन ने गाजा पट्टी को 'एक जेल शिविर' कहकर विवाद खड़ा कर दिया था. उन्होंने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान की वकालत की भी थी. हालांकि, वह इजरायल  के कट्टर समर्थक भी रहे हैं.


हाल ही में उन्होंने इजरायल के पक्ष में एक्स पर अपने पोस्ट में नीले और सफेद इजरायली झंडे को शामिल करते हुए कहा था, "मैं इस सबसे चुनौतीपूर्ण समय में इजरायल के साथ पूरी एकजुटता से खड़ा हूं और प्रधानमंत्री और यूके सरकार को उनके स्पष्ट और दृढ़ समर्थन में पूरी तरह से समर्थन देता हूं."


ऐसे में उनका युद्ध के समय विदेश मंत्री बनना मध्य पूर्व के प्रति ब्रिटेन की नीतियों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.


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