ब्रिटेन सरकार का दावा- भारत में मिले कोरोना के B.1.617.2 वेरिएंट से बचाव के लिए वैक्सीन की दोनों डोज लगवाना जरूरी
कोविड-19 का ये स्वरूप सबसे पहले भारत में अक्टूबर 2020 में देखा गया. डब्ल्यूएचओ के अनुसार B.1.617 वेरियेंट अब 44 देशों में मौजूद है.
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ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग के अध्ययन के अनुसार भारत में पाए गए कोरोना के वेरियेंट B.1.617.2 के संक्रमण से बचाव के लिए कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज लगवाना बेहद जरूरी है. इसके अनुसार वैक्सीन की दो डोज लगवाने से B.1.617.2 वेरिएंट के संक्रमण से आप 81 प्रतिशत तक सुरक्षित हो जाते है. वहीं वैक्सीन की एक डोज से केवल 33 प्रतिशत ही सुरक्षा मिलती है. आंकड़ों के अनुसार भारत में अब तक कुल जनसंख्या में से केवल 3 प्रतिशत (लगभग चार करोड़ तीस लाख) लोगों को ही वैक्सीन की दोनों डोज लगी हैं. वहीं 15 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन की एक डोज लगवा चुके हैं.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग और उसकी कार्यकारी इकाई पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) ने एस्ट्राजेनेका और फाइजर-बायोनटेक इन दोनों वैक्सीन को आधार बनाते हुए अपना अध्ययन किया है. B.1.617.2 के साथ साथ दक्षिण-पूर्वी इंग्लैंड में स्थित केंट श्रेत्र में पाए गए B.1.1.7 वेरियेंट को भी इसमें शामिल किया गया था. भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड के नाम से ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का निर्माण करता है. इस डाटा के अनुसार B.1.617.2 के मुकाबले B.1.1.7 के खिलाफ सिंगल डोज से ज्यादा सुरक्षा मिलती है. B.1.1.7 से दोनों डोज लगवाने पर 87 प्रतिशत और सिंगल डोज लगवाने पर 51 प्रतिशत तक सुरक्षा मिलती है.
डब्ल्यूएचओ भी जता चुका है चिंता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी भारत में मिले कोरोना के B.1.617 वेरियेंट को लेकर अपनी चिंता जता चुका है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोविड-19 की जो वैक्सीन बनाई जा रही है वह इस नए वेरियेंट पर कम असर करेगी. डब्ल्यूएचओ अभी इस पर और स्टडी कर रहा है और यह समझने की कोशिश कर रहा है कि दुनियाभर में दी जा रही वैक्सीन इस वैरिएंट पर कितना असर करेगी. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अगर वायरस का प्रसार रोक दिया जाए तो उसका म्यूटेशन भी रुक जाएगा.
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