यूक्रेन का सीमावर्ती शहर है लवीव या लीव. बेहद खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों वाला यह शहर इन दिनों युद्ध की विभीषिका झेलते हुए यूक्रेन में पलायन की दास्तान लिखता नजर आता है. शहर के रेलवे स्टेशन पर अभूतपूर्व भीड़ है तो वहीं लीव की गलियों में गाड़ियों का कभी न देखा गया मेला. जहां नजर जाती है वहां इस वक्त गाड़ियां ही गाड़ियां नजर आ रही है. सड़कों पर भारी जाम लग रहा है. यूक्रेन में लड़ाई के नुकसान से अपने और अपनों को बचाने की कोशिश करने वाला हर शख्स इसी लीव शहर का रुख कर रहा है. लीव से पोलैंड हंगरी रोमानिया के बॉर्ड चेकप्वाइंट करीब हैं. अमेरिका अपना दूतावास हटाकर पहले ही लीव में ला चुका है. वही कीव पर बढ़े हमलों के बाद अब भारत भी अपना कैम्प दूतावास इसी शहर में स्थानांतरित कर चुका है.


हालांकि गाड़ियों की भारी संख्या के बावजूद लीव में गाड़ियों की कमी पड़ रही है. शहर के स्टेशन पर जितने लोग पहुंच रहे हैं, उतनी संख्या में पर्याप्त वाहन नहीं हैं, जो लोगों को सुरक्षित बॉर्डर क्रॉसिंग पॉइंट तक ले जा पाएं. इसीलिए शहर के मेयर ने लोगों से और गाड़ियां जुटाने को कहा है, जो लोगों को जल्द से जल्द बॉर्डर तक ले जा सकें. वहीं शहर के भीतर आ रहे लोगों के लिए  नागरिक संगठन और संस्थाएं मदद के लिए कैम्प लगा रहे हैं.


भारतीय छात्रों के खारकीव से निकलने का सिलसिला जारी है. आज सुबह भी एक भारतीय स्टूडेंट्स का एक ग्रुप करीब 24 घण्टे का सफर तय कर खारकीव पहुंचा. सीट न मिली तो खड़े-खड़े और बिना खाना-पानी की कोई उचित व्यवस्था के यह छात्र सुरक्षित निकलने की आस में खारकीव से लीव पहुंचे. उनमें से कई छात्र बताते हैं कि उनके कई साथी अब भी खारकीव में फंसे हैं. सुरक्षित निकलना चाहते हैं, लेकिन रास्ता और साधन न मिलने के कारण मुश्किलें आ रही हैं. 


इन बच्चों से बातचीत के दौरान ही एयर रेड सायरन बज उठे. पूछा क्या इनको सुनकर डर लगता है? तो लगभग सब साथ बोल उठे, इसकी तो अब आदत सी हो गई है. सब शहरियों से यही कहना है कि बस जल्द से जल्द निकल जाएं. किसी के भरोसे ना रहें. लवीव शहर जहां एक तरफ शरणार्थियों और पलायन कर रहे लोगो की मदद के इंतजामों से जूझ रहा है तो साथ ही अपने बचाव को लेकर फिक्रमंद भी है. 


यह यूक्रेन के उन चुनिंदा शहरों में बचा है जहां फिलहाल बैंक, बाजार, सामान्य परिवहन के साधनों समेत रोजमर्रा की जिंदगी में रवानगी नजर आती है. ऐसे में बड़े पैमाने पर शहर में सुरक्षा निगरानी और सिविल डिफेंस के इंतजाम मजबूत किए का रहे हैं. इस कड़ी में शहर की एक बियर फैक्ट्री, अब बीयर की बोतलों में मोलटोवा बम बना रही है. वहीं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी अपने लोहे का इस्तेमाल रूसी टैंकों का रास्ता रोकने के लिए चेक हैजहॉग बना रही है. साथ ही सेना के लोग लोगों को टेरिटोरियल डिफेंस जैसी ट्रेनिंग देते नजर आ रहे हैं. हर कोशिश है किसी भी तरह से रूसी फौजी मंसूबों का रास्ता रोका जा सके.


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