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Ukraine Russia War: रूस यूक्रेन संकट का मास्को पर कितना असर, क्या पुतिन के हमले ने अमेरिका के ग्लोबल रोल को दी है चुनौती?

Ukraine Russia War: पुतिन की ऐसी नीयत से 1930 का वह दशक याद आता है, जिसने दुनिया को एक भयंकर युद्ध में धकेल दिया था.

Ukraine Russia War: रूस और यूक्रेन के बीच 13 दिनों से युद्ध जारी है. इस दौरान रूस यूक्रेन के कई बड़े शहरों पर लगातार हमला कर रहा है. हाल में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह बता रहे हैं कि यूक्रेन के कई शहरों में बमबारी की जा रही है. पिछले 13 दिनों में कईं बार राजधानी कीव में धमाके की आवाज और साइरन गूंजे हैं. इस जंग के बीच नाटो के महासचिव जेंस स्टोलटेन बर्ग कहते हैं, 'हमारे महाद्वीप पर शांती भंग हो चुकी है, यूरोप में युद्ध हो रहा है, ऐसा युद्ध जो इतिहास में कभी होता था.' 

रूसी राष्ट्रपति के इस कदम का यूक्रेन के अलावा कई लोकतांत्रिक देशों पर भी असर हो रहा है. अमेरिका में गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. माहौल ऐसा बन गया है कि यह युद्ध सिर्फ यूक्रेन और रूस तक सीमित नहीं है, बल्कि रूस और अमेरिका के बीच में एक नया गतिरोध पैदा हो गया है. दोनो ही देश परमाणु शक्ति वाले देश हैं. हाल ही में को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने संबोधन में बताया कि रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं. 

यूक्रेन के गृहमंत्री के सलाहकार का कहना है कि कीव में मिलिट्री हेडक्वाटर्स और एयर फील्डस पर मिसाइल स्ट्राइक शुरू हो चुकी है. अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि इससे हजारों नागरिकों की मौत हो सकती है. दरअसल बीते 24 फरवरी को पुतिन ने अचानक एक टेलीविजन संबोधन में ये दावा किया था कि यूक्रेन के पूर्वी इलाकों में रूसी मूल का नरसंहार हो रहा है. इसके बाद उन्होंने यूक्रेन को 'डीमिलिट्राइज' करने वाले एक ऑपरेशन का ऐलान कर दिया.

पुतिन की ऐसी नीयत से 1930 का वह दशक याद आता है, जिसने दुनिया को एक भयंकर युद्ध में धकेल दिया था. यूक्रेन, जो सभी सोवियत संघ का एक देश हुआ करता था. USSR के पतन के बाद यूक्रेन ने अपने रास्ते अलग कर लिए और अपने न्यूक्लियर हथियार तक त्याग दिए. अब यूक्रेन अपने भविष्य को पश्चिम देशों के साथ जोड़कर देखता है, लेकिन पुतिन यूक्रेन को अपने तानाशाही के शासन को खतरे के तौर पर देखते हैं. वह चाहते हैं कि वो कभी नाटो का सदस्य न बने. 

अचानक अमेरिका झेलने लगा है बड़ा संकट 

यूक्रेन पर रूस के हमले से अमेरिका के नेतृत्व वाले वर्ल्ड ऑर्डर को चुनौती तो मिली है. साथ ही अमेरिकी लोगों को भी कीमत चुकानी पड़ रही है. अमेरिका में गैस कीमतों में इजाफा और मुद्रास्फीर्ती तो निश्चित तौर पर होने वाली है. कच्चे तेल की कीमत इस जंग के बाद 100 डॉलर के पार हो चुका है. इसके अलावा पुतिन, जिस तरह से पूर्व सोवियत देशों से नाटो के पीछे हटने की मांग कर रहे हैं. अमेरिका के लिए ये भी बड़ा संकट हो सकता है. 

वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन रूस की लड़ाई में अमेरिका सीधे तौर पर अपने सैनिक तो नहीं भेजेगा क्योंकि यूक्रेन फिलहाल नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन अमेरिका को यूरोप में अपने सहयोगी देशों के लिए सैनिकों भेजने पर मजबूर होना पड़ेगा. 

किन देशों में और क्यों भेजने पड़ेंगे सैनिक?

लातविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया जैसे देश अचानक से कमजोर दिखने लगे हैं और ये सभी नाटो के सदस्य भी हैं. ऐसे में संधि के तहत अमेरिका और अन्य नाटो देश को इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही अब यूक्रेन में अमेरिका द्वारा वित्त पोषित विद्रोह की भी आशंका जारी हो रही है. जिससे वाशिंगटन और मॉस्को के बीच एक नये युद्ध की आशंका बढ़ गई है. 

बड़े स्तर की बात करें तो पुतिन के हमले ने अमेरिका के ग्लोबल रोल को चुनौती दी है. उदारवादी लोकतांत्रिक देशों को अब सिर्फ रूस ही नहीं एक और सुपर पावर चीन की चुनौती का सामना भी करना पड़ सकता है. वो भी ऐसे समय में जब पहले की तरह माहौल नहीं है और एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ही अमेरिकी राष्ट्रपति को धमका रहे हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में पुतिन को जीनियस कहा था और आरोप लगाए थे कि अमेरिकी चुनाव में गड़बड़ी हुई थी. ये सब बताता है कि अमेरिका अब पहले की तरह एकजुट नहीं रहा है. 

पुतिन के लिए क्या खतरे हैं?

यूक्रेन में रूस का हमला कब तक चलेगा और कितने रूसी सैनिक लगेंगे, फिलहाल इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता. जिस तरीके का प्रतिरोध रूस को झेलना पड़ रहा है, शायद उसकी कल्पना रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने नहीं की होगी. दरअसल, नाटो के पूर्वी विस्तार को चीन अपने लिए चुनौती के तौर पर देखता है. 

यह सालों से चला आ रहा था और यूक्रेन में रूस के हमले की एक वजह नाटो और अमेरिका को चुनौती देना भी है. यूक्रेन के लोगों के प्रतिरोध को ध्यान में रखें, तो अगर यूक्रेन में सरकार बदल भी जाती है तो भी रूस की सेना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा. ऐसी स्थिति भी पैदा होगी जिससे पुतिन के शासन को चुनौती मिल सकती है.

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