Underground Ocean: धरती के 700 किलोमीटर नीचे मिला नया महासागर, वैज्ञानिकों के दावे पढ़ हो जाएंगे हैरान
Underground Ocean: स्टीव जैकबसेन ने बताया कि, 'रिंगवुडाइट में स्पंच जैसी चीज है, जो पानी को सोख लेता है. इसकी क्रिस्टल संरचना में कुछ विशेष गुण हैं जो हाइड्रोजन को आकर्षित करते हैं.
Underground Ocean: हाल के दिनों में हुई कई वैज्ञानिक खोजों ने दुनिया को चौंका दिया है. इसी क्रम में अब एक ऐसी खोज सामने है, जिसको सोचा भी नहीं जा सकता. इस खोज में पृथ्वी से तीन गुना ज्यादा पानी का पता चला है. वैज्ञानिकों ने बताया है कि जितना पानी धरती के ऊपर है, उससे तीन गुना अधिक पानी धरती के 700 किलोमीटर नीचे होने का अनुमान है.
नई खोज में पता चला है कि धरती की शख्त सतह के 700 किलोमीटर नीचे रिंगवुडाइट नाम की चट्टान में विशाल महासागर है, जिसमें धरती के सागरों समेत कुल पानी से तीन गुना ज्यादा पानी हो सकता है. 'डिहाइड्रेशन मेल्टिंग एट द टॉप ऑफ लोअर मेंटल' शीर्षक से साल 2014 में एक वैज्ञानिक शोध छपा था, जिसमें इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इसमें रिंगवुडाइट के गुणों के बारे में भी जानकारी दी गई है. शोध करने वाली टीम के प्रमुख भूभौतिकीविद् स्टीव जैकबसेन ने बताया कि, 'रिंगवुडाइट में स्पंच जैसी चीज है, जो पानी को सोख लेता है. इसकी क्रिस्टल संरचना में कुछ विशेष गुण हैं जो हाइड्रोजन को आकर्षित करते हैं और पानी को अपने अंदर ट्रैप कर लेते हैं.'
इस तरह हुई पृथ्वी के अंदर महासागर की खोज
स्टीव जैकबसेन ने कहा, 'मुझे लगता है कि हम पूरी पृथ्वी पर जलचक्र का सबूत देख रहे हैं, जिसकी वजह से हम अनुमान लगा सकते हैं कि पृथ्वी पर कितना पानी है. वैज्ञानिक कई दशक से गहरे पानी की तलाश कर रहे हैं.' रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी के अंदर छिपे इस महासागर का पता लगाने के लिए अमेरिका में 2000 से अधिक भूकंपमापी संयत्रों को लगाया गया और 500 से अधिक आए भूकंपों की तरंगो का डेटा तैयार किया गया. इस दौरान भूकंप की तरंगो को चट्टानों से गुजरने के दौरान धीमा होने का अनुभव किया गया, जो एक बड़े जल भंडार का संकेत देता है.
भूकंपीय डेटा इकट्ठा करने में लगे वैज्ञानिक
जैकबसेन ने बताया कि इतनी गहराई में चट्टानों के बीच मिला पानी का भंडार हमारे जलचक्र के समझ को बदल सकता है. उन्होंने बताया कि इस पानी का पृथ्वी के अंदर ही रहना ठीक है. अगर इतना पानी धरती पर आ गया तो पहाडड़ों की चोटियों के अलावा कुछ नहीं दिखेगा, पूरी पृथ्वी पानी से डूब जाएगी. अब दुनिया के वैज्ञानिक भूकंपीय डेटा इकट्ठा करना चाहते हैं, जिससे पानी की समझ को और मजबूत किया जा सके.
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