Coronavirus: अमेरिका में कोरोना वायरस महामारी लगातार भयावह रूप लेती जा रही है. गुरुवार को अमेरिका में 26,946 नए केस सामने आए और 1,711 कोरोना पीड़ितों की मौत हुई है. जबकि इससे एक दिन पहले अमेरिका में 21,712 नए केस आए थे और 1,772 लोगों की मौत हुई थी. पूरी दुनिया के एक तिहाई कोरोना मरीज अमेरिका में ही हैं. यहां 14 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से प्रभावित हो चुके हैं. न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, कैलिफॉर्निया में सबसे ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं.


अमेरिका में अबतक 86,908 लोगों की मौत
वर्ल्डोमीटर के मुताबिक, अमेरिका में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या शुक्रवार सुबह तक बढ़कर 14 लाख 57 हजार 293 हो गई. वहीं कुल 85,197 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि तीन लाख लोग ठीक भी हुए हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में सबसे ज्यादा 353,096 केस सामने आए हैं. सिर्फ न्यूयॉर्क में ही 27,426 लोग मारे गए हैं. इसके बाद न्यू जर्सी में 144,024 कोरोना मरीजों में से 9,946 लोगों की मौत हुई. इसके अलावा मैसाचुसेट्स, इलिनॉयस भी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.


बुजुर्ग बिगाड़ सकते हैं अमेरिका का चुनावी समीकरण
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में मौतों का आंकड़ा एक लाख के पास पहुंच गया है. इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप गंभीर नहीं लग रहे हैं. शायद उन्हें चुनावों और अर्थव्यवस्था की चिंता ज्यादा सता रही है. अमेरिका में इस महामारी से बुजुर्ग और गरीब लोग सबसे ज्यादा त्रस्त हैं. ताजा रिपोर्ट की मानें तो अमेरिका के ओल्ड एज होम्स और अन्य जगहों पर लगभग 26 हजार बुर्जुर्ग और कर्मचारियों की मौत हुई है.


अमेरिका में उम्रदराज लोगों की मौत का आंकड़ा यह दर्शाता है कि ट्रंप सरकार उन्हें बीमारी के चंगुल में फंसने से बचाने में नाकामयाब रही है. उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंचे लोगों की स्थिति बहुत दयनीय हो रही है. बताया जाता है कि अब तक अमेरिका में हुई कुल मौतों का एक तिहाई से ज्यादा बुजुर्ग हैं. भले ही अमेरिका सरकार ने अब तक इस तरफ ज्यादा ध्यान न दिया हो. पर चुनाव नजदीक हैं ऐसे में बुजुर्गों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. माना जाता है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बुजुर्गों के मतों पर निर्भर रहते आए हैं. वहीं विपक्षी डेमोक्रेट्स उम्मीदवार युवाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय हैं.


हालिया रिपोर्ट कहती है कि बुजुर्गो के साथ कोरोना वायरस महामारी के दौरान जो व्यवहार किया गया है, उससे यह वर्ग नाराज है. ऐसे में आने वाले चुनावों पर कुछ न कुछ असर तो जरूर पड़ेगा.


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