US Submarines against China: दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका (America) के पास सैकड़ों पनडुब्बियां हैं. अमेरिकी नौसेना की तकनीकी रूप से सबसे उन्नत उपकरणों वाली कुछ पनडुब्बियां प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) में बहुत गहराई तक गश्‍त करती रहती हैं. प्रशांत महासागर दुनिया का सबसे बड़ा और गहरा समुद्र है, जो दुनिया के सबसे बड़े देशों की सीमाओं को छूता है. चीन, रूस, ऑस्‍ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका जैसे कई देशों के तट इससे घिरे हुए हैं. ऐसे में जबकि, चीन दूसरे देशों के समुद्री इलाकों तक पैठ बना रहा है तो अमेरिकी पनडुब्बियां उसकी हर हरकत पर नजर रख रही हैं.


CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी नौसेना की कई अत्‍याधुनिक पनडुब्बियां प्रशांत महासागर की सतह से सैकड़ों फीट नीचे पानी में हमेशा तैरती रहती हैं. यूएस पैसिफिक फ्लीट में सबमरीन फोर्स के कमांडर, रियर एडमिरल जेफ जैब्लन बताते हैं कि उनकी टीम को कई चुनौतियों से निपटना पड़ता है. और, वे दो सबसे बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं. जिनमें एक सोवियत संघ (USSR-जिसे अब रूस कहते हैं), और दूसरा है- चीन, ये दो ऐसे देश हैं जो परमाणु हथियारों से लैस हैं और अमेरिका के सबसे बड़े विरोधी हैं. मौजूदा समय में खासकर, चीन पर निगाह रखना ज्‍यादा जरूरी हो गया है, क्‍योंकि वह अपने क्षेत्रीय दावों को बढ़ाता रहता है, अब वह दक्षिण चीन सागर तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपने युद्धपोत और पनडुब्बियां भेजता रहता है.




पहले USSR था अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती, अब चीन
रियर एडमिरल जेफ जैब्लन यूएस पैसिफिक फ्लीट से संबंधित तेजी से हमला करने वाली परमाणु-संचालित पनडुब्बी यूएसएस मिसिसिपी के अगुआ हैं, उनका कहना है कि जैसे-जैसे एशिया में परमाणु हथियारों की होड़ से चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं, वे और सटीक निगरानी रखने के लिए अपनी पनडुब्बियाँ दूर-गहराइयों तक पहुंचा रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि USS मिसिसिपी समेत अमेरिकी बेड़े में 49 फास्ट-अटैक पनडुब्बियाँ हैं, वे किसी भी संभावित संघर्ष से वाशिंगटन का बचाव कर सकती हैं. उन्‍होंने कहा कि उनकी पनडुब्बियों का पता लगाना मुश्किल है, उन पर हमला करके उन्‍हें नष्ट करना कठिन है और वे बिना कोई रुकावट के हजारों मील दूर तक जाने में सक्षम हैं. 


चीन से निपटने के लिए ऑकुस गठबंधन किया
AUKUS डील के तहत, इस महीने की शुरुआत में, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया ने परमाणु-संचालित पनडुब्बी को लेकर बात की थी, इसे समझौते को चीन के तेजी से सैन्य विस्तार का मुकाबला करने के लिए उपयुक्‍त माना गया. AUKUS में ये तीन देशों शामिल हैं और इनके इस गुट को चीन से निपटने के नजरिए से ही देखा जाता है. AUKUS के तहत, ऑस्ट्रेलिया 2030 के दशक की शुरुआत में अमेरिका से तीन वर्जीनिया-कैटेगरी की पनडुब्बियां खरीदेगा, इसे यूएस कांग्रेस मंजूरी देगी.




AUKUS को लेकर चीन ने इन तीनों देशों पर "शीत युद्ध की मानसिकता" में उलझने का आरोप लगाते हुए समझौते की आलोचना की है, और कहा है कि ऐसे कदम से दुनिया में खतरे बढ़ जाएंगे.


अमेरिकी नौसेना के अधिकारी चीन के आरोपों का खंडन करते हैं और कहते हैं कि दुनिया को चीन से सावधान रहने की जरूरत हैं. वे कहते हैं कि पहले परमाणु क्षमता से लैस सोवियत संघ हमारा विरोधी था, हम अब इस देश चीन का भी सामना कर रहे हैं, जिसने अपनी परमाणु क्षमताओं का तेजी से विस्तार और आधुनिकीकरण किया है."




अंतरराष्ट्रीय इलाके में चीन से बार-बार हुआ आमना-सामना
अमेरिका और उसके सहयोगियों ने पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य महत्वाकांक्षाओं और क्षेत्रीय दावों पर भी तेजी से चिंता जताई है. पिछले महीने, दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय जल सीमा के ऊपर एक अमेरिकी नौसेना का टोही जेट उड़ान भर रहा था, तो एक चीनी लड़ाकू जेट ने उसे रोकने के लिए कुछ ही दूरी से उड़ान भरी. ऐसा दोनों देशों के बीच कई बार हुआ है.




पनडुब्बियों का लगभग 60% बेड़ा अब प्रशांत क्षेत्र में तैनात
सबमरीन फोर्स का संचालन करने वाले रियर एडमिरल जैबलॉन ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के लिए एक संक्षिप्त नाम का उपयोग करते हुए कहा, "हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बताती है कि पीआरसी हमारा बढ़ता खतरा है, और रूस हमारे देश के लिए एक गंभीर खतरा है."




जैबलॉन ने कहा, "हमारी पनडुब्बी सेना का अधिकांश हिस्सा अब प्रशांत क्षेत्र में स्थित है." उन्‍होंने कहा, "इस समय, हमारी (ऑपरेशनल) पनडुब्बियों का लगभग 60% बेड़ा उन चुनौतियों से निपटने के लिए ही तैनात किया गया है."


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