पाकिस्तान की ईसाई और हिन्दू महिलाओं के साथ चीन में कैसा होता है सलूक? जानिए अमेरिकी राजनयिक का दावा
अमेरिकी राजनयिक एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें पूछा गया था कि धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन में पाकिस्तान को विशेष चिंता वाले देशों की सूची में रखा गया है जबकि भारत इससे बाहर है.
चीन में उईगर मुसलमानों और महिलाओं के साथ उसका बर्बरतापूर्ण व्यवहार दुनिया से छिपा हुआ नहीं है. उसके अत्याचार की लगातार खबरें आती रहती हैं. अब अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिकि ने यह दावा किया है कि पाकिस्तान की धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक ईसाई और हिंदू महिलाओं को चीन में दुल्हन बनने के लिए मजबूर किया जाता है. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि उनकी वहां स्थिति अच्छी नहीं है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है.
राजनयिक एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें पूछा गया था कि धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन में पाकिस्तान को विशेष चिंता वाले देशों की सूची में रखा गया है जबकि भारत इससे बाहर है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन सरकार द्वारा किया जाता है जबकि भारत में ऐसी बातें सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ही देखने को मिलती हैं.
गौरतलब है कि अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने सोमवार को पाकिस्तान और चीन समेत 8 अन्य देशों को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आरोप में चिंताजनक देशों की सूची में शामिल किया था. दरअसल, अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआइआरएफ) ने विदेश विभाग को चिंताजनक देशों की सूची में भारत को शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन विदेश विभाग ने उसकी यह सिफारिश स्वीकार नहीं की. भारत यूएससीआइआरएफ की वार्षिक रिपोर्ट में देश के खिलाफ की गई टिप्पणियों को पहले ही खारिज कर चुका है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अप्रैल में एक सवाल के जवाब में कहा था कि भारत के खिलाफ आयोग की पक्षपाती टिप्पणियां नई नहीं हैं. हालांकि उसने इस बार गलत व्याख्या की सभी सीमाओं का पार कर दिया है. हम अमेरिकी आयोग को विशेष चिंता का संगठन का मानते हैं और उसी के अनुसार उसके साथ व्यवहार करेंगे.'
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अमेरिका के राजदूत सैमुअल ब्राउनबैक ने मंगलवार को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्रवाई का बचाव किया. उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के बहुत से सारे काम स्वयं सरकार द्वारा किए जाते हैं. जबकि भारत में इसी तरह के मामले सांप्रदायिक हिंसा के दौरान देखने को मिलते हैं.
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