नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब रिपलब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति पद का कैंपेंन चला रहे थे तब उन्होंने वादा किया था कि वे 30 दिनों में ISIS को ख़त्म कर देंगे. जब उनसे इसके प्लान के बारे में पूछ जाता तब वे इसके जवाब में कहते कि ये एक सीक्रेट है जिसे वे सबके साथ साझा नहीं करना चाहते. MoAB हमले के बाद तो यही लगता है कि राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने जो वादा किया था, बीती रात उसे पूरा करने को लेकर सबसे बड़ा कदम उठाया. इसी के तहत अमेरिका ने अफगानिस्तान में ISIS के आतंकियों के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए कल रात सबसे बड़ा गैर-परमाणु बम गिरा दिया.


बीती रात ट्रंप अपने मंसूबे साफ कर दिए हैं. यकीनन पूरी दुनिया में दहशत का चेहरा बने ISIS पर हुए इस सबसे बड़े हमले का असर अन्य मुल्कों पर भी पड़ेगा. इसका दंश झेल रहे लोगों को राहत मिलेगी और चुपके-चुपके इसकी मदद कर रहे लोगों को झटका लगेगा. अमेरिका के इस हमले के साथ मिडिल ईस्ट ही नहीं बल्कि दुनिया की कुटनीति एक नया मोड़ ले सकती है.

ट्रंप ने अफगानिस्तान में कथित ISIS ठिकानों पर 1000 किलो का बम गिराए जाने की अनुमति दी

कल रात अफगानिस्तान में छिपे कथित ISIS आतंकियों पर अमेरिका ने सबसे बड़े गैर परमाणु बम से हमला किया है. सुरंग और बंकरों पर अमेरिका ने 10 हजार किलो का बम गिराया है. ये बम अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत के अचिन जिले में गिराया गया है. ये जगह पाकिस्तान के पेशावर से सिर्फ 115 किलोमीटर दूर है. यानि की जगह पाकिस्तानी बॉर्डर से सटी हुई है. वहीं ये जगह दिल्ली से 1000 किलोमीटर दूर हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान में बम गिराए जाने की अनुमति दी थी और उन्होंने इस अभियान को ‘अत्यंत सफल’ करार दिया.

ट्रंप ने शुरुआती भाषण में ही रैडिकल इस्लाम पर बोला था हमला

राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने रैडिकल इस्लाम यानि इस्लाम के चरमपंथी धड़े पर हमाल बोला था और इसे जड़ से मिटाने की बात कही थी. संभव है कि ये उनके इसी रणनीति का हिस्सा हो. बताते चलें कि अमेरिका ने वॉर ऑन टेररिज़्म के नाम पर अफगानिस्तान पर साल 2001 में हलमा बोला था और तब लड़ाई अलकायदा और तालिबान के खिलाफ थी. लादेन के मारे जाने के बाद अलकायदा लगातार कमज़ोर पड़ता गया, वहीं तालिबान शुरुआत में कमज़ोर हुआ लेकिन फिल्हाल वापस से मज़बूत स्थिति में है. वहीं ISIS के उदय ने आतंकवाद की परिभाषा और उसके खिलाफ़ लड़ाई को पूरी तरह बदल दिया.

ISIS की ताकत का अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि सीरिया और इराक के बीच का एक हिस्सा ISIL है जिसे कब्ज़ा करके ISIS ने अपना राज कायम किया था. इस हिस्से को भले ही आंतरष्ट्रीय मान्यता ना मिली हो लेकिन एक तरह से ये आतंकियों को गैर-मान्यता प्राप्ते देश है. इराक और सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध के बीच ISIS पहले मजबूत और बाद में कमज़ोर हुआ है लेकिन विश्व पटल पर अभी भी ये सबसे मज़बूत आतंकी संगठन है और इसे पाकिस्तानी, अफगानिस्तानी आतंकी संगठनों से लेकर अफ्रीका के आतंकी संगठन बोको हरम तक अपना प्रमुख संगठन मानते हैं.

इसके पहले सीरिया पर भी 60 के करीब मिसाइलें दगवा चुके हैं ट्रंप

मेक्सिको वॉर्डर पर दीवार बनाने, नॉर्थ कोरिया और सीरिया जैसे देशों के केमिकल और न्यूक्लियर हथियार ख़त्म करने, चीन की बढ़ती ताकत को कम करने और अमेरिकी नागरिकों को प्रथमिकता देने जैसी बातों के बीच ISIS का खात्मा ट्रंप की विदेश नीति का सबसे अहम हिस्सा है. आपको पता होगा कि इसी महीने सीरिया में हुए रासायनिक हमले के बाद अमेरिका ने सीरिया पर 60 के करीब क्रूस मिसाइलें दागी थीं. इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने अफगानिस्तान में सबसे बड़ा नॉन न्यूक्लियर बम गिराया है जिससे साफ है कि ट्रंप अब नहीं रुकने वाले.

बीते दिनों में एशियाई देश नॉर्थ कोरिया भी ट्रंप के निशाने पर रहा है. जैसे ओबामा प्रशासन से लेकर ट्रंप प्रशासन तक सीरिया के केमिकल हथियार समाप्त करने के लिए रूस से अपील करता रहा है उसी तर्ज पर हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने चीन से नॉर्थ कोरिया के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की है. ट्रंप ने कहा है कि अगर चीन नॉर्थ कोरिया की परमाणु क्षमता पर लगाम नहीं लगाता तो अमेरिका अपने सहियोगी देशों के साथ मिलकर नॉर्थ कोरिया के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.

बताते चलें कि नॉर्थ कोरिया एक परमाणु समपन्न देश है और किसी परमाणु समपन्न देश के खिलाफ अफगानिस्तान और सीरिया जैसे हमले विकल्प नहीं होते बल्कि ऐसे देशों पर आर्थिक पाबंदी और दुनिया के बाकी देशों से उसे अलग करने जैसे दांव अपनाए जाते हैं, इन्हीं तरीकों को अमेरिका नॉर्थ कोरिया के खिलाफ लंबे समय से इस्तेमाल करता आया है. संभव है कि नए कदमों में ट्रंप प्रशासन नॉर्थ कोरिया के खिलाफ पाबंदियों को और कठोर करे. वैश्विकरण के बाद से कूटनीति में लिया गया कोई फैसला दो देशों तक सीमित नहीं रहता. ऐसे में ट्रंप के इन तमाम फैसलों का भारत पर भी असर देखने को मिल सकता है.