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जारी है दबाव की रणनीति: अमेरिका ने ईरान के साथ समाप्त 1955 की संधि

अमेरिका ने बुधवार को कहा कि वह 1955 की संधि को अपने तत्कालीन सहयोगी ईरान के साथ खत्म कर रहा है. तेहरान के अंतरराष्ट्रीय अदालत में वॉशिंगटन की प्रतिबंध नीति के खिलाफ गवाही देने के बाद यह कदम उठाया गया है.

वॉशिंगटन: अमेरिका ने बुधवार को कहा कि वह 1955 की संधि को अपने तत्कालीन सहयोगी ईरान के साथ खत्म कर रहा है. तेहरान के अंतरराष्ट्रीय अदालत में वॉशिंगटन की प्रतिबंध नीति के खिलाफ गवाही देने के बाद यह कदम उठाया गया है.

विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने वर्ष 1979 की इस्लामिक क्रांति का हवाला देते हुए पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं अमेरिका की ईरान के साथ 1955 की मित्रता संधि खत्म करने की घोषणा कर रहा हूं. सच कहूं तो यह एक ऐसा निर्णय है जो 39 सालों से लंबित पड़ा था.’’

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने बुधवार को अमेरिका को आदेश दिया कि वह ईरान के लोगों को मुहैया कराए जाने वाले आवश्यक सामान पर से प्रतिबंध हटाए. फैसले को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक झटका माना जा रहा है लेकिन पोम्पिओ ने इसे ‘ईरान के लिए हार’ बताया है.

इसके पहले अमेरिका ने उठाया था ये कदम इसके पहले अमेरिका ने 11 देशों से कहा था कि वो ईरान से तेल लेना बंद कर दें. इन 11 देशों की लिस्ट में भारत का भी नाम शामिल है. अमेरिका ने ईरान पर जो ताज़ा प्रतिबंध लगाए हैं उसके तहत वो चाहता है कि ये 11 देश और इससे जुड़ी कंपनियां ईरान से तेल लेना बंद कर दें. ट्रंप के देश ने भारत और चीन को भी उन देशों की लिस्ट में शामिल किया है जिनसे ईरान से तेल का कारोबर बंद कर देने की उम्मीद जताई जा रही है.

भारत और चीन इस लिस्ट में सबसे बड़े और ज़रूरी देश हैं क्योंकि उनकी एनर्जी की ज़रूरतें बहुत ज़्यादा हैं. ऐसे में ईरान पर लगे प्रतिबंध का इन देशों और इनकी कंपनियों को पालन करना होगा. साल 2015 के पहले भी अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा रखे था. ताज़ा प्रतिबंधों के तहत ये तय किया जाएगा कि भारत और चीन जैसे देशों का ईरान के साथ तेल व्यापार शून्य पर चला जाए.

अमेरिका का मानना है कि भारत-चीन समेत लिस्ट में शामिल 11 देशों और इनसे जुड़ी कंपनियों को अभी से ईरान के साथ तेल के व्यापार में कमी लाना शुरू कर देना चाहिए और चार नवंबर तक इसे ज़ीरो पर ले आना चाहिए.

मई में परमाणु समझौते से अलग हुआ था अमेरिका अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई महीने में ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने की घोषणा की थी. ओबामा के समय के इस समझौते की ट्रंप पहले ही कई बार आलोचना कर चुके हैं. समझौते से अलग होते हुए ट्रंप ने कहा था, ‘‘मेरे लिए यह साफ है कि हम ईरान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोक सकते. ईरान समझौता कई खामियों से भरा और एकतरफा है.’’

अलग होने के बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे और बाकी के देशों को ईरान के विवादित परमाणु कार्यक्रम पर उसका साथ देने के खिलाफ चेतावनी दी थी. ट्रंप ने कहा था कि इस समझौते ने ईरान को बड़ी मात्रा में धन दिया और इसे परमाणु हथियार हासिल करने की तरफ बढ़ने से नहीं रोक सका.

अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही ट्रंप ने ओबामा के कार्यकाल में किए गए ईरान परमाणु समझौते की कई बार आलोचना की थी. उन्होंने समझौते को खराब बताया था. इस समझौते की मध्यस्थता करने वाले तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी थे. जुलाई 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी (P5+1) के अलावा यूरोपीय यूनियन के बीच वियना में ईरान परमाणु समझौता हुआ था.

क्या था समझौता और क्यों हुआ फेल ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था, बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में रियायत दी गई थी.

डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाए कि ईरान समझौते के बाद भी दुनिया से छिपकर अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखे हुए है जिसके बाद ईरान ने चेतावनी दी है कि अगर समझौता फेल हुआ तो वो पहले से कहीं ज्यादा यूरेनियम का संवर्धन करेगा. इसी सब के बीच अमेरिका चाहता है कि भारत और चीन जैसे दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले दो बड़े देश ईरान से तेल लेना बंद कर दें.

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