US Funds To China Labs: चीन और अमेरिका की दुश्मनी जगजाहिर है. पिछले दो दशक में दोनों ही मुल्क एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं. लेकिन फिर भी अमेरिका दरियादिली दिखाते हुए अपने 'दुश्मन' चीन को रिसर्च के लिए करोड़ों डॉलर दे रहा है. चीन की कई सारी लैब्स को जानवरों पर खतरनाक रिसर्च के लिए अमेरिका की तरफ से करोड़ों रुपये की फंडिंग मिल रही है. 


अमेरिका की तरफ से कुल मिलाकर चीन की 27 लैब्स को करोड़ों रुपये की फंडिंग दी जा रही है. अब तक 120 करोड़ रुपये की फंडिंग दी गई है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि चीन की वुहान लैब पर कोविड वायरस लीक करने का आरोप है. इस आरोप को खुद अमेरिका ने ही लगाया था. फिर भी वह चीनी लैब्स को पैसा देने में जुटा हुआ है. आइए जानते हैं कि आखिर अमेरिका की इस दरियादिली की वजह क्या है. 


चीन इस पैसे से कैसी रिसर्च कर रहा? 


डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, US स्पांसर रिसर्च में चीन की लैब्स मीट बाजारों से खतरनाक माने जाने वाले एवियन फ्लू वायरस को इकट्ठा करती हैं. इसके बाद इस वायरस के जरिए मुर्गियों, बत्तख और गिनी पिग्स को संक्रमित किया जाता है. इससे वायरस तेजी से फैलने वाला बनता है. चीन में रिसर्च के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर नियम अमेरिका जितने सख्त भी नहीं हैं. इसलिए खतरा बढ़ भी जाता है. 


चीन के किसी संस्थान में चूहों को टीबी बीमारी देकर उसके रिजल्ट देखे जाते हैं, तो किसी में मलेरिया के स्ट्रेन पर रिसर्च हो रहा है. एक जगह चूहों को मलेरिया से संक्रमित किया जा रहा है. कुछ ऐसी ही लैब्स हैं, जहां पर हेपेटाइटस और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों के लिए टेस्ट चल रहा है. एक ऐसी भी लैब हैं, जहां चूहों के दिमाग में ड्रिल कर उसमें वायरस छोड़े जा रहे हैं. 


वॉचडॉग ग्रुप 'व्हाइट कोट वेस्ट' (WWC) प्रोजेक्ट ने एक पूरा डाटा तैयार किया है, जिसमें बताया गया है कि किस संस्थान को पैसा मिला है. WWC कहना है कि 'हार्बिन वेटेरिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट', 'इंस्टीट्यूट पास्च्योर ऑफ शंघाई', 'क्यूचिन काउंटी झांगलियांग डिगिंग मशीन बिजनेस डिपार्टमेंट', 'वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी' जैसे संस्थानों को अमेरिकी संस्थाओं और यूनिवर्सिटी की तरफ से पैसा मिला है. 


चीन को पैसा देने की वजह क्या है? 


दरअसल, अमेरिका में अगर आपको रिसर्च करना है, तो सरकार के बनाए हुए नियम-कायदे मानने पड़ेंगे. फंडिंग और लाइसेंसिंग में भी काफी लंबा वक्त लगता है. अमेरिकी सरकार किसी भी ऐसी रिसर्च को अपनी जमीन पर करने से पहले कई बार सोचती है, जिसमें खतरा ज्यादा होता है. यही वजह है कि वह इस तरह रिसर्च के लिए चीन में मौजूद लैब्स का सहारा लेती है और उन्हें फंड करती है. 


अमेरिका के सरकारी संस्थान और नामी यूनिवर्सिटी के रास्ते चीन की यूनिवर्सिटी और लैब्स को पैसा दिया जाता है. अमेरिका का कहना है कि ऐसा दो देशों के बीच साइंटिफिक सहयोग बढ़ाने के लिए किया जाता है, ताकि रिसर्च के जो भी नतीजे सामने आए, उससे पूरी दुनिया का भला हो सके. अमेरिका को ये भी लगता है कि अगर चीन के साथ रिसर्च होगी, तो उसे वो जानकारी भी मिल पाएगी, जो अमूमन चीन छिपा लेता है. 


हालांकि, चीन को रिसर्च के लिए फंड करने के अपने भी नुकसान है. अमेरिका की एक बड़ी आबादी को लगता है कि चीन साइंटिफिक रिसर्च का इस्तेमाल अपनी सेना के फायदे के लिए कर सकता है. वह कुछ ऐसे हथियार बना सकता है, जिसका इस्तेमाल अमेरिका पर ही कर दिया जाए. 


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