Israel-Hamas War: अमेरिका के आगे इन दिनों नई मुसीबत खड़ी हो गई है. उसे एक साथ दो जंग को सपोर्ट करना पड़ रहा है, जो कहीं से भी आसान नहीं है. जहां एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है. इस जंग में अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा हुआ है. वहीं, दूसरी ओर मिडिल ईस्ट में इजरायल और हमास के बीच युद्ध हो रहा है. यहां पर अमेरिका इजरायल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है. इन युद्धों के बीच अमेरिका दोनों मुल्कों की मदद करने में कठिनाई झेल रहा है.
अमेरिका के रुख की भी दुनियाभर में आलोचना की जा रही है. जहां एक तरह अमेरिका ने यूक्रेन में रूस के हमले का विरोध किया है. वहीं जब गाजा में इजरायल ने कार्रवाई की तो वह उसके साथ खड़ा रहा. अरब जगत में अमेरिका को लेकर एक नकारात्मक छवि बनती जा रही है. ऊपर से चीन ने भी अमेरिका की इस बिगड़ी छवि का फायदा उठाकर रूस का साथ देना शुरू कर दिया है. मिडिल ईस्ट में भी चीन की दखलअंदाजी हर दिन बढ़ती जा रही है, जो चिंतित करने वाली है.
यूक्रेन और गाजा में अमेरिकी क्या चाहते हैं?
इजरायल से लौटने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कांग्रेस से कहा कि वह हमास और रूस से लड़ने के लिए फंड जारी करे. उन्होंने कुल मिलाकर 106 अरब डॉलर मांगे, जिसमें से 61 अरब यूक्रेन और 14.3 अरब इजरायल के लिए थे. बाकी के पैसा अन्य कामों के लिए है. रिपब्लिकन पार्टी इसके खिलाफ है. बाइडेन ने हमास औ रूस दोनों को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है. उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन्हें फंड के लिए विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा.
दोनों युद्धों को लेकर अमेरिका का मकसद भी अस्पष्ट है. यूक्रेन में तो कम से कम वह यह चाहता है कि कीव अपने उन इलाकों को आजाद करा ले, जिस पर रूस ने कब्जा किया हुआ है. लेकिन गाजा में ये मालूम ही नहीं चल रहा है कि अमेरिका चाहता क्या है. ऊपर से इजरायल ने भी अभी अपने प्लान पूरी तरह से उजागर नहीं किए हैं. सिर्फ इतना बताया है कि वह हमास को खत्म करना चाहता है. अगर युद्ध तेज होता है, तो अरब मुल्कों के संबंध अमेरिका के साथ बिगड़ने भी वाले हैं.
युद्ध को सपोर्ट करना क्यों हो रहा मुश्किल?
दरअसल, अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में अभी कोई स्पीकर नहीं है, जो बाइडेन की फंड के लिए लगाई गुहार को पुरा कर सके. ऊपर से रिपब्लिकन पार्टी के सांसद यूक्रेन को और ज्यादा मदद करने के मूड में नहीं हैं. उनका कहना है कि अमेरिका को अब अपने जखीरे को भरने की जरूरत है. ऊपर से भले ही अमेरिका कह रहा है कि वह दोनों युद्ध को सपोर्ट कर सकता है. मगर मिडिल ईस्ट में हालात बिगड़ने पर उसे यूक्रेन को भूलकर यहां हालात संभालने पड़ सकते हैं.
इसकी सबसे प्रमुख वजह ये है कि लंबे समय से मिडिल ईस्ट में शांति रही है. अगर यमन में चल रहे संघर्ष को हटा दें तो ज्यादातर अरब मुल्कों में शांति हैं. हालांकि, जब से हमास और इजरायल का युद्ध शुरू हुआ है. उसने सभी का ध्यान अपनी ओर कर लिया है. इजरायल की कार्रवाइयों के विरोध में अब सभी अरब मुल्क इकट्ठा भी होने लगे हैं. ऐसे में अमेरिका का इजरायल को फंड देना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि वह अरब मुल्कों से भी अपने रिश्ते खराब नहीं कर सकता है.
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